“परहित सरिस धर्म नहीं भाई” श्री तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’ वरिष्ठ साहित्यकार तनौद‚जांजगीर चाम्पा(छ.ग.)

तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’
पिता-श्री छत्तराम महिपाल
माता- श्रीमती छतबाई महिपाल
जीवन संगिनी– श्रीमती अंजू महिपाल
सन्तति-
2. प्रकाशित पत्रिका:-राष्ट्रीय हिंदी साहित्य अंचल मंच के मासिक पत्रिका (बिहार),किरण दूत(रायगढ़), कोलफील्ड मिरर (कलकत्ता), काव्य कलश वार्षिक पत्रिका(छत्तीसगढ़), विवेक एक्सप्रेस (मुंबई),मालवा हेराल्ड (उज्जैन,मध्यप्रदेश), साइंस वाणी पत्रिका(रायपुर)।
पिन :- 496001

“परहित सरिस धर्म नहीं भाई”
यह वाक्य अपने आप में वृहद अर्थ को समाहित किया हुआ है। ऐसे ही एक दोहा छंद-
वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर।
परमार्थ के कारने, साधुन धरा शरीर॥
-संत कवि कबीर दास
जिसके माध्यम से कवि, विचारक कहना चाहता है कि वृक्ष अपने डाली में लगा फल नहीं खाता और न ही नदी जल का संचय करता है ये दोनों निरंतर परहित में कार्य करते रहते हैं।
पेड़ जब ऐसा कर सकता है, तो क्या हम अपने स्वार्थ के लिए पेड़ नहीं लगा सकते?
क्या नदी को दूषित होने से नहीं बचा सकते?
बिल्कुल कर सकते हैं। बस हमें हमारा सोच को दिशा देना है।
मैं यह कार्य बचपन से करते आ रहा हूँ। समय-समय पर फलदार, छायादार व शोभादार पेड़-पौधे रोपते आया हूँ। यह कार्य मुझे आत्मीय आंनद प्रदान करता है। मेरे लगाए पौधा जब पेड़ बन जाता है तो मुझे बहुत खुशी होती है और इसमें फल लगता है तो खुशी दुगुनी और फल को मैं मेरे परिवार और आड़-पड़ोस के लोग खाते मैं तो खुशी चौगुनी हो जाती है। आज से करीब 25 साल पूर्व मेरे द्वारा रोपा गया नींबू का छोटा पौधा जो अब पेड़ बन चिड़ियों को बसेरा देने के साथ-साथ हमें इस भीषण गर्मी में रसीले फल दे रहा है। जिसे उपयोग कर हम राहत महसूस कर रहें हैं जो अत्यंत सुखद है।
इसके अलावा मेरे घर की शोभा बढ़ाता है मेरे द्वारा लगाए गए अशोक और विद्या (मोरपंखी) के पेड़-पौधे। साथ-साथ कुछ फूल और आयुर्वेदिक पौधे भी जो मन को प्रसन्न करता है तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक हैं।
मुझे बहुत दुख लगता है जब कोई इसे हानि पहुँचता, खेत की मेड़ में लगाया पौधा इतने बार कटता है कि आज तक पेड़ नहीं बन पाया इसे भी लगाए लगभग 25 साल हो गया। हर साल बरसात में अपनी ऊर्जा के साथ बढ़ता है जिसे गर्मी के मौसम आते-आते कुछ मूर्खो द्वारा काट दिया जाता है। जिसको देख कर मन व्यथित हो जाता है। ऐसे मूर्खो के लिए एक संदेश है अगर एक पेड़ लगा नहीं सकते तो जो लगा है उसे न काटे, उसे बढ़ने दे। वृक्ष बढ़ेगा तो वातावरण का ताप नियंत्रण में रहेगा साथ ही ऑक्सीजन,छाया और फल निरंतर मिलता रहेगा।
बिन तरु जीवन कल्पना, संभव नहीं सुजान।
जग आभूषण यह सुनो, रखना इसका ध्यान॥