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पेट की चिंता की क्या जरूरत? मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)
दुनिया के किसी भी जीव जंतुओं को खाने की इतनी नहीं पड़ी रहती, जितने कि आदमी को। कैसे जिस किसी काम के लिए जा रहे हों और खाने की फिक्र पहले करते हैं। कई लोग ऐसे हैं,जो बिना खाने के नहीं निकलते। इसी के चलते कई दफा अत्यावश्यक कार्यों में देरी हो जाती है।

संरक्षित रखने के बावजूद खाने की चिंता उन्हें हमेशा सताती रहती है। इसकी छोड़ कोई जीव इतना चिंता नहीं करता। लेकिन ईश्वर सबका पेट भरता है। लेकिन लोग ईश्वर पर यह चिंता छोड़ने की छोड़ खुद चिंता में लगे होते हैं, कि आने वाला पल में हमारा पेट कौन भरेगा?

सारा सुख सुविधा संपन्नता के बावजूद रोटी के एक टूकड़े किसी भूखे जीव को देने के लिए सोचना पड़े और दूसरी ओर आधुनिक जीवन जीते अन्यत्र फिजुलखर्ची में आपका धन जाये तो इससे बड़ी दरिद्रता कौन सी हो सकती है।

दुनिया के सबसे बड़े रसोई जगन्नाथ पुरी में कैसे भक्तों की जूठन खा कर वह ईश्वर का भक्त सबसे प्यारा बना। असीम प्रेम कि इस मंदिर के सामने स्थित पत्थर में जब वह हाथ रखा तो पत्थर भी धंस कर उंगलियों के निशान बन गए जिसे आज भी देखा जा सकता है। यहां की रसोई में खाना कभी कम नहीं होता न ही ज्यादा होता है।आशय कि बचता भी नहीं है,यह चमत्कार भी आज के युग में देखा जा सकता है।

विषय में आए कि जब भी घर से बाहर निकले या कही हो काम से भी ज्यादा लोगों को पेट सता रही होती है कि उन्हें खाना कहां खाना है, यह जानते हुए भी कि खाना सब जगह है। इसकी चिंता ईश्वर पर छोड़ना उचित होगा, कि आज का खाना जहां लिखा होगा वहीं ग्रहण करेंगे।

जगन्नाथ पुरी के साथ ही देश के कई धार्मिक जगहों पर विशाल प्रसादालय निश्चित रूप से स्थापित है,जहां अल्प दरों पर और तो और कई जगह निःशुल्क भी खाना मिलता है। इन जगहों पर जो भोजन प्रसाद मिलता है,उसमें जो तृप्ति होती है, बड़े-बड़े होटल रेस्टारेंट में नहीं होती। तिरूपति बालाजी,श्रीसत्य साई आश्रम पुट्टपर्ती, श्रीसाई प्रसादालय शिरडी बड़ी जगहों के साथ छत्तीसगढ़ आएं तो यदि आप डोंगरगढ़ में माता दर्शन को जा रहे हैं तो ऊपर मंदिर के बाजू में ही मात्र 10 रूपये में हाल में बिठाकर खाना खिलाया जाता है।

शिरडी साई संस्थान द्वारा तो प्रसादालय में आम भक्तों के साथ ही भिखारियों के लिए मुफत की भोजन व्यवस्था रखा है। बावजूद भिखारी घुमते रहते हैं। भिखारियों के लिए जो व्यवस्था रखी गयी है,उस पर नजर डाली जाय तो इन्हें भिक्षा मांगने का भी जरूरत न पड़े लेकिन यह भी सामाजिक बुराई के रूप में आज सामने है। जो लायक हो उन्हे  देना भी पड़ता है पर जो हट्टे कट्टे होकर अकमण्यता दिखाते भीख मांगते हैं,जबरदस्ती मुंह उतारे फिरते हैं,वह सब पता चलता है।

बाहर जा रहे हों तो आपके काम आपके उद्वेश्यों की चिंता होनी चाहिए। पेट की चिंता भगवान पर छोड़ दें। जब चींटी से हाथी तक किसी भी जीव को पेट की चिंता नही होती है, और सब अच्छे से जी रहे हैं तो सबकुछ होते आप मनुष्य को चिंता करने की क्या जरूरत है।

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