(मनोज जायसवाल)
– किसी साहित्य कला प्रतिभा पर टिप्पणी से पहले खुद प्रतिभा संपन्न बनने की सोचे।
कोई पति अच्छा या अमीर भले ही ना हो पर समझदार हो यह जरूरी है। क्योंकि वह ही स्त्री की भावनाओं को समझ सकता है। भले ही कोई स्त्री पुरूष को ना समझे पर पुरूष का यह गुण ही जीवन संघर्ष में हमेशा काम आता है। लेकिन कभी-कभी पुरूषों को नहीं समझ पाने के चलते समाज में परिवार भी टूटते देखे जा सकते है।
ना जाने कितने ऐसे पुरूष हैं,खास कर कला संगीत जगत के जिनके कदम घर से किसी सांस्कृतिक आयोजन के नाम जाने को आगे बढ़ते हैं, तो पत्नी के नकारात्मक उलाहने पहले पहल होते हैं,कहना कि… फिर आज कही जा रहे हैं। किसी स्त्री पुरूष के कला संगीत जगत में जोडियां देख सुन ले तो मत पूछो शामत ही आ गई। कला संगीत को समझना इतना आसान नहीं है।
कैसे किसी सांस्कृतिक मंच पर भाई बहन, पिता पुत्री किसी युगल के दृश्य को भी कर रहे होते हैं, तो क्या किसी स्त्री के गलत दोषारोपण में क्या यह भी गलत संबंध हो सकता है? वह तो मंच पर संस्कृति के संवर्धन संरक्षण और लोगों के मनोरंजन के नाम यह प्रदर्शन करता है,आपकी भावनाएं क्या है,इससे लेना देना नहीं। यही हाल साहित्य से जुडे लोगों के साथ भी होता है। जबकि साहित्य या कला संगीत में हमेशा लोगों द्वारा इन जोडियों को पसंद किया जाता है।
हिन्दी सिने जगत बालीवुड में कैसे दर्शक अपने किसी पसंदीदा हीरो के साथ किसी अभिनेत्री की जोडियों को पसंद करते हैं। निचले ग्रामीण स्तर में आज जो स्त्रियां पत्नियां पति पर गलत संशय में होती है, स्वयं उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि कैसे वह टीवी के सीरियल,फिल्म में जोडियों को पसंद करती है। तो क्या वह पति-पत्नी हो जाते हैं?
प्रोफेशनल जमाने में कई दफा ऐसा होता है कि उन्हें काम से मतलब होता है। उनके किसी निजी संबंध रिश्तेदारी वगैरह वगैरह से कोई सरोकार नहीं होता। लेकिन ग्रामीण जीवनचर्या में आज भी कई स्त्रियों के पास यह विषय हो जाय वहां अंतहीन बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
समाज में गलत बयानबाजी,संशय,गलत चर्चा का विषय ग्राम्य जीवन की कई कला संगीत प्रतिभाओं को हतोत्साहित करता है और वे अपना जॉब तक छोड़ देते हैं। तो यह भी देखा जाता है कि कहीं ना कहीं इनके जाब इनके भविष्य में वैवाहिक संबंधों के स्थापित होने में सहायक हो अंतिम यह भी सोच है। यही कारण है कि कई ऐसी अच्छी प्रतिभाएं विवाह के बाद अपने इस जॉब को छोड हमेशा के लिए कला संगीत जगत की चकाचौंध से गायब हो जाती है,यदि इसे बनाए रखती तो जीवनभर इनका नाम स्थापित होता।
साहित्य और कला संगीत जगत की प्रतिभाओं को समझना इतना आसां नहीं है। खासकर उनके लिए जो स्वयं प्रतिभा नही है। किसी संत को समझने के लिए खुद को संत बनना बेहद जरूरी है। इसी तरह यदि किसी साहित्य कला संगीत की प्रतिभा पर अर्नगल टिप्पणी कर रहे हैं तो खुद को पहले उस प्रतिभा संपन्न बनाने की सोचना जरूरी है।