”प्रेम संजीवनी है, नशा नहीं ”
मेरे प्यार को तराजू में तौलो ना, बराबरी कभी न कर पाओगे
तुम मेरे मनमोहन घनश्याम बनो, मैं राधा ही हूं। आओ सत्कर्मों के द्वारा रचनाएं मधुर मुरली बजाओ,सखी,सहेलियां आई है ना!
एक बार राधा ने कृष्ण से पूछा- तुम मुझसे कितना प्यार करते हो? कृष्ण ने कहा- मैं तुमसे नमक जितना प्यार करता हूं। राधा रूठकर चली गई। बोली- नमक नहीं डालना। सबने भोजन करना शुरू किया। बिना नमक के किसी से खाया नहीं गया। कृष्ण ने राधा को बुलाकर दिखाया और कहा- देखो नमक के बिना भोजन अधूरा है। व्यक्ति और वस्तु मूल्यों पर नहीं, उपयोगिता पर निर्धारित होते हैं। कोई किसी का मित्र और कोई किसी का शत्रु नहीं। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
पति-पत्नी एक दूसरे को उपहार देना चाहते थे पर उनके पास पैसा नहीं था, तो उस महिला ने अपने बाल काटकर बेच तदए और पति की घ्ज्ञड़ी का नया पट्टा ले लिया, क्योंकि वह टूट गया किया। उधर पति ने सोचा कि उसकी पत्नी के बाल सुंदर है, अतः उसके लिए एक गजरा लेने के लिए अपनी घड़ी बेच दी। शाम को दोनों मिले, परंतु गजरे के लिए बाल नहीं थे और पट्टे के लिए घड़ी नहीं थी।
पतंगा और तितली दोनों सुंदरता प्रेमी है, पर पतंगा इस प्रयास में जल कर अपनी जान दे बैठता है, जबकि तितली प्रशंसित होती है। ऐसा निरोधाभास क्यों? पतंगा प्रेम को हथियाना चाहता है, जबकि तितली उसे दूसरों तक पहुंचाती है। जीवन की समृद्वि और सफलता साधनों और सुविधाओं को बांटने में है। उन पर एकाकी आधिपत्य में नहीं। प्रेम का सही रूप है कर्तव्य का पालन, अधिकार पाने के लिए नहीं। सैनिक की पत्नी कभी यह तो नहीं कह सकती कि तुम्हारे बिना मर जाऊंगी,क्योंकि यह प्रेम नहीं मोह है। जमाने भर से मिलते हैं कई आशिक, मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं। नोटों को मिलाकर सोने में सिमटकर मरे हैं कई मगर तिरंगे से खूबसूरत केाई कफन नहीं है।
महाराज भरसक अपनी रूपवती गुणवती रानी उकबरा को प्राणों से भी अधिक प्रेम करते थे। समय आने पर वह एक दिन दिवंगत हो गई। इसी दुख में राजा ने खाना पीना त्याग दिया। उसके मृत शरीर को तेल में डुबाकर उसके समीप बैठे रहते थे। उन दिनों महात्मा बुद्व जंबूद्वजीप का भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने राजा को इस अवस्था में देखा तो उनकी सहायता करने का निश्चय करके राजा से मिलने पहुंचे। बोधिसत्व से पूछा कि क्या वे रानी उकबरा से मिलना चाहते हैं?
बोधिसत्व ने ध्यान गया और बताया कि रानी अकबरा को दूसरा जन्म मिल गया है और वह उन्हीं के बाग में एक कीट के रूप में जनमी है। राजा को बोधिसत्व की बात पर विश्वास नहीं हुआ। बोधिसत्व ने योगबल से उस कीट को वहां बुलाया और राजा को यह शक्ति प्रदान की कि उससे बात कर सके। राजा ने कीट से पूछा कि तुम पूर्व जन्म में कौन थे? कीट ने कहा- मैं उबला रानी थी। राजा नु अनुरोध किया कि क्या वह इस देह को त्यागकर पूर्ववत रानी की देह में आना चाहेगी? कीट ने ऐसा करने से मना कर दिया कि मुझे अपनी देह से मोह हो गया है मैं उसे छोड़ नहीं सकती। राजा की आसक्ति टूटी और उसने अपना राजधर्म पूर्ववत अपनाना शुरू कर दिया।
डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता जो बीत गई सो बात कई की पंक्तियां प्रासंगिक है। जीवन में एक सितारा था वह टूटा तो टूट गया। अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गया फिर कहां मिले, पर बोलो, टूटे तारों पर कम अंबर शोक मनाता है।
दास कबीर ने इस शरीर को स्वच्छ चादर कहा है। उन्होंने इसे ओढ़ा, जैसा का तैया रखा, मैला नहीं किया। प्रेम हमेशा लोगों को मिलाने का कार्य करता है। ईश्वर हम सबसे प्रेम करते हैं, उसी प्रकार हम भी ईश्वर से और उनकी सृष्टि से सभी मनुष्यों से प्रेम करें। प्रेम परिवार से पआरंभ होता है। शांति भी परिवार से जन्म लेती है। जहां एक विचार, एक आचार हो, एकता हो, वहीं शांति है खुशहाली है। परमपूज्य गुरूदेव श्रीराम शर्मा जी आचार्य के स्वर्गारोहण के बाद गुरूमाता पूजनीया श्रीमती भगवती देवी शर्मा ने उनके अधूरे कार्य को संभाला औरपूरा किया। उन्होंने भिलाई में ऐतिहासिक अश्वमेघ यज्ञ संपन्न कराया था।
उठो भोर हो गई, दूर पथ पर जाना है। यूं न मुंह मोड़ो साथ-साथ चलना है। मैं आम की बौरों से लदी डाली हूं। तुम्हें उसी डाली पर बैठकर कूकना है और सोए हुओं को जगाना है। मैं भक्ति शक्ति ज्ञान की मधु प्याला हूं उसे पीकर तुम्हें आगे की मंजिल तय करनी है। मैं बहती नदिया हूं, तुम प्यासे पथिक हो। धूप में तपते राही हो, मैं हरियाली की छांव हूं। मैं नारी नारायणी,जग कल्याणी हूं, तुम्हें भी तो नर से नारायण बनना है।