– छत्तीसगढ़ के हाट बाजारों में अतिरिक्त देने की परंपरा आज भी जीवित।
(मनोज जायसवाल)
आज की स्थिति में देश के सबसे प्रगतिशील अथाह संपदाओं को समेटे प्रदेश कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की पुण्य धरा में आम लोक जीवन में आपसी सहयोग की कई वो परंपराएं मिसाल हैं,जो यहां के लोक जीवन की स्नेह को प्रतिपादित करती है।
दिलों के मिलन की बेला यदि मेले मंडइयों में साल में एक बार आती है, तो यहां के साप्ताहिक बाजार भी एक दूसरे के मिलन का एक ऐसा केंद्र है,जहां वादों मुलाकातों का दौर चलता रहता है।
युं तो देश के हर कोनों के नगरों की साप्ताहिक बाजारों में शाक सब्जी,किराना आदि की खरीदारी होती है,पर छत्तीसगढ़ के बाजारों में सब्जी खरीदारी की एक अनुठी परंपरा आज भी आत्मसात किए है, वह है पुरौनी की परंपरा। जो अन्य जगहों से इसे जुदा करती है।
छत्तीसगढ़ के किसी भी गावों में आप सब्जी खरीदारी करने जाएं जरूर दौर में प्रचलित मुल्यों पर शाक सब्जियां मिलेंगी लेकिन पुरौ कर। अब आप पूछेंगे ये पुरौ कर क्या है? हम बताना चाहेंगे कि ये ही पुरौनी की परंपरा है।शाक सब्जियां कितनी मंहगी सस्ती रहे कितना ही तौल पर व्यापारी सब्जी तौल ले पर आपके ना कहने पर भी उससे ऊपर की कुछ चीजें जरूर अतिरिक्त देगा। आम तौर पर बाजार में सब्जी लेने के बाद खरीदार जरूर स्थानीय रूप से प्रचलित शब्दों में बोलता है, ले ना ओ पुरौ दे।
सब्जी बेचने वाली या वाला जरूर अतिरिक्त सब्जी देगा। अब तो ऐसा है कि ना बोलने पर भी स्वयं पुरौ कर देता है। यह पुरौनी वाली परंपरा शाक सब्जियों से लेकर तोल मोल की अन्य चीजों तक जा पहूंचती है। अन्य चीजों की खरीदारी पर स्वयं विक्रेता अपना रेट बताए जाने के बाद फाईनली इतना पड़ेगा कह कर दिया जाता है।
अब तो आलम यह है कि कई दफा छत्तीसगढ़िया इसी पुरौनी परंपरा का निर्वाह करते पेट्रोल पंप पर भी पुरौ कर डालने की बात पर मजाक करता है। सभी को पता है कि हर क्षेत्र में हो सकता है पर पेट्रोल जैसी जगहों पर नहीं, लेकिन स्नेह की मजाक का सिलसिला यहां कभी खत्म नहीं हो सकता।
छत्तीसगढ़ के हाट बाजारों में आज भी सदियों से चली आ रही पुरौनी परंपरा जिसको लोग अक्षुण रखे हैं, चलती रहे।