”रियासतकाल के देव रघुराजसिंह देव”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”रियासतकाल के देव रघुराजसिंह देव”
कॉंकेर रियासत में राजाओं के साम्राज्य का स्वर्णिम अतीत रहा है।देश की आजादी के समय जब यहां 562 रियासतें स्वतंत्र रूप से शासित थी,जो ब्रिटिश शासन के आधीन नहीं थी। अविभाजित भारत में स्वायत्त राज्य थे,जिन्हें आम रूप से रजवाडे या देशी रियासत भी कहते थे।
नगर से लगे राजमार्ग पर स्थित रघुराजसिंह देव के भूमि दान पर लखनपुरी में स्थापित स्कूल उनके शिक्षा के प्रति अगाध जागरूकता की कहानी बयां करता है। जिन्होंने अपनी लखनपुरी स्थित राजमार्ग 30 की 11.2 हे. भूमि दान में स्कूल के लिए देने की घोषणा की थी,जिस पर आज स्कूल संचालित है।
स्कूल गेट के पास रघुराजसिंहदेव का स्टेच्यू स्थापित किया गया है। ना जाने कितने विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण कर कर प्रशासनिक सेवाओं में आज भी सेवा दे रहे हैं।
बताया यह भी जाता है कि कोमलदेव राजा के भाई लक्ष्मणदेव एवं एक बहन अग्निकुमारी देवी थी। कोमलदेव, लक्ष्मणदेव का कोई पुत्र नहीं था। इस तारतम्य दोनों भाई ने सोचा कि बहन की शादी के लिए घर जंवाई रखेंगे। जहां तय किया गया। ये दोनों भाई ने भवानी पटना(कालाहांडी) उडीसा गए। भवानी पटना का तीसरा नंबर का भाई के साथ बहन का विवाह किया गया।
इनकी दो संतान हुए,जहां कोमलदेव राजा के दो भांजे हुए। कोमलदेव राजा ने सोचा कि मैं अपने भांजा को राजगद्दी सौंपुंगा। दो भांजा में रघुनाथसिंहदेव और रघुराजसिंह देव। रघुराज सिंहदेव को कोमलदेव का भाई लक्ष्मणदेव ने गोद लिया। अब निर्णय लिया गया कि रघुराजसिंह देव गोद में आने के बाद भतीजा बन गया जो पहले भांजा था।
देखा गया कि कोमलदेव का कोई संतान नहीं है तो अंग्रेजों का उपर नीचे कॉंकेर स्थित केंद्र जो आज राजमहल है, रघुराजसिंह देव को पता चलने पर वो दिल्ली तक अंग्रेजों के विरूद्व कानूनी लडाई किया। इसमें कहा कि जब भतीजा सामने है तो साली का लडका कैसे राजा घोषित किया गया? अंग्रेज नहीं माने राघुराज सिंह की सक्रियता एवं जिद को देखकर अंग्रेजों ने कहा तुम आगे कदम बढाओगे तो देश निकाला करेंगे! और ऐसा हुआ। नोटिस निकाला गया।
रघुराजसिंह देव अंग्रेजों के साम्राज्य के कठोर रूख को देख उन्होंने अपने को दूसरे देश भेजने कहा। अंग्रेजों ने निर्णय लिया या फिर भारत में रहूंगा तो लडाई होता रहेगा।
अंग्रेजों ने अपना नोटिस निरस्त किया। रघुराजसिंहदेव लक्ष्मणदेव का दत्तक पुत्र घोषित हुआ। अब भानुप्रतापदेव को राजा घोषित किया गया।
उसी समय देश स्वतंत्र हो गया था, जहां निर्णय हुआ कि लक्ष्मणदेव के नाम राजापारा में जो राजमहल है वो रघुराजसिंह देव का है। घोषित भानुप्रतापदेव को दिए गए ऊपर नीचे रोड स्थित राजमहल को जो अंग्रेजों का रेस्ट हाउस था‚ को भानुप्रतापदेव को दिया जाकर राजमहल घोषित माना जाता है। फिर भी विवाद हुआ।
मुख्य राजमहल राजापारा का है,आवाज उठाया गया। रघुराजसिंहदेव बोला राज्य छोड चुका, अब राजमहल नहीं छोडूंगा। भानुप्रतापदेव अपना निर्णय बदल कर रघुराजसिंहदेव के पक्ष में हामी भरा।रघुनाथ सिंहदेव के 03 लडके थे। 1. घनश्याम सिंहदेव 2. भगवंत सिंहदेव 3. बद्रीनारायण सिंह देव
रघुराज सिंह देव के 02 लडके हुए जिनमें 1. रामनारायण सिंह देव 2. उदय प्रताप देव हुए। रामनारायण सिंहदेव के 4 लडके 1. कमलदेव 2. रूद्रप्रताप देव3. मिथलेश देव 4. धमेंद्र देव हुए। उदय प्रताप देव के एक लडका डॉ. श्याम देव एक लडकी जानकी देवी हुई। डॉ. श्यामदेव वर्तमान में राजापारा स्थित राजमहल में आज भी निवासरत है। 68 वर्षीय डॉ. श्यामदेव राजापारा में निवास रहते निकटस्थ बेंवरती में क्लिनिक चलाते हैं जहां साईटिका,बवासीर,पत्थर्री,बांझपन जैसे गंभीर बिमारियों का होम्योपैथी एवं आयुर्वेद पद्वति से गारंटी के साथसफल ईलाज करते हैं।
जिन्होंने सशक्त हस्ताक्षर को स्वर्णिम अतीत की बातें बतलायी। प्रस्तुत आलेख की जवाबदारी सशक्त हस्ताक्षर की नहीं है,जैसा बताया गया वह प्रस्तुत है।