कविता काव्य

रेखा कहां है… मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

रेखा कहां है…

सिर्फ यादें हैं
अथाह समंदर
अंतहीन मरूस्थल
हरी चादर लिपटी
ये जमीं मुझे
नजर आती
सन्नाटे सा

किसे बताऊं
नहीं मालूम तुम्हें
उसके सिवा मेरा
अब कोई नहीं है

आंखें कई रातों से
अब सोई नहीं है
सिर्फ यादें हैं
उन यादों में

बहन की स्मृति
जिनके हौंसलों से
मैं उकेरता
कोरे कागज पर

आलेख
आज वो नहीं है
पर
जिसकी अंतहीन
यादों के सहारे

उकेर लेता हूं
कोरे कागज पर
अपने मन की बातें
सिर्फ यादें हैं..

जहां जीवन की
लंबी रेखाएं है
पर मेरी वो रेखा
कहां है…कहां है…

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