”वो रोमांटिक फिल्मों का दौर” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

तब के दशक की रोमांटिक फिल्मों के दौर में भले ही ऐसा लगा कि उतनी सफल नहीं रही पर बदलते वक्त के साथ आज पता चलता है कि वो फिल्में कितनी खासी थी। रोमांटिक फिल्मों के दौर में विभोर कर देने वाली कथानक के चलते एकाग्र होकर देखते थे। छविगृह में फिल्में चालू होने के बाद वो सन्नाटा होता था जब फिल्म चल रही हो तब कोई कुछ कह दे तो डिस्टर्भ होता था।
रोमांटिक फिल्मों में मजबूत स्टोरी से समाज में भी अच्छा प्रभाव छोड़ता था। भले ही आज की इस पीढ़ी को तब की रोमांटिक सांग्स पिछड़ापन लगे पर आज भी संगीत से शांति सकुन का अनुभव तो इसी से होता है, यह कटू सत्य है। प्यार झुकता नहीं, अबोध, राम तेरी गंगा मैली, प्रेम रोग के साथ ही पारिवारिक फिल्मों के दौर में नदिया के पार के बाद अन्य फिल्में भी बाक्स आफिस में ऐतिहासिक रूप से सफल रही। लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आज भी लोग उन फिल्मों के शुटिंग स्पाट जाकर यादें ताजा करते हैं। संगीत प्रेमियों के लिए जहां उन फिल्मों के गीत आज भी स्वयं में प्रेम का बोध कराते मानसिक रूप से भी सकुन देते हैं, वहीं नये दौर में कई फिल्मों के कथानक तो दूर गाने भी समझ नहीं आते कि क्या बोला जा रहा है।
हाई बेस में बजते गीत जरूर हृदय की धक धकी बढ़ाते हैं, कोई उम्रदराज हुआ तो उन्हें कहना ही पड़ता है अब बस बंद भी तो करो। कथानक एवं गीतों के साथ सुरम्य प्राकृतिक दृश्य भी लोगों को उतना ही प्रभावित करता था। कई ऐसी फिल्मों के कथानक आम जीवन की कहानी प्रतीत होती थी ऐसा ही नहीं वास्तविक रूप से भी व्यक्ति विशेष की प्रसिद्वि को लेकर फिल्में बनी।
यही कारण है कि उन सफल ऐतिहासिक रोमांटिक प्रेम कहानियों के सीन आज भी लोग गुगल में सर्च कर रहे होते हैं। जिज्ञासा इस कारण होता है कि जिस शहर में फिल्माया गया है,उस जगह के सीन,रेलवे स्टेशन क्या तब भी वैसे ही थे। सिर्फ सर्च करना ही नहीं जिज्ञासु मन तो उन फिल्म स्पाट का सैर करने का भी मन करता है। बालीवुड की यह बात हुई छत्तीसगढ़ में छालीवुड में भी मया देदे मया ले ले जैसी प्रेम कहानी पर बनी फिल्म जब प्रदर्शित हुई तो लोगों के बीच फिल्म स्पाट की चर्चा खुब हुई। कई लोगों ने तो उन फिल्म स्पाट का सैर भी किया।
फिल्म देखे कई लोगों ने तो गरियाबंद के पास बारूका गांव में स्व.मिथलेश साहू के यहां रखे गाने में फिल्माये गये श्रृंगार किए हुए हंडियों को भी निहारा करते थे। भले ही दौर में नयी पीढ़ी को पसंद हो या ना हो पर रोमांटिक प्रेम कहानियों पर आधारित अच्छी कथानक वाली फिल्में जरूर सफल हुई है और इन फिल्मों के साथ इसके गीत ऐतिहासिक हुए हैं। यह भी बताते चलें कि फिल्म का बैनर ही फिल्म की सफलता भी साबित करने के लिए काफी होती थी।
यही कारण है कि संगीत प्रेमी एवं दर्शक फिल्म के बैनर जो नगरों के चौक चौराहों में लगे होते थे वहां भींड़ जमा हो जाती। यही नहीं दर्शक छविगृह से फिल्म देखने के बाद पुनः फिल्मी पोस्टर देखने लग जाते थे। आज का दौर और है, पर अतीत की सुपर डुपर कथा प्रधान फिल्में आज भी लोग चाव से देखते हैं। यही कारण है कि टीवी चैनलों में क्लासिक फिल्मों की बहार होती है। बार बार उस फिल्मों का प्रसारण भी संभवतया इस कारण किया जाता है कि उन्हें आज भी उतना ही टीआरपी मिल रहा है।