–जब मैं प्राण त्याग करूंगा तब इस बात की आशंका होगी कि झूठे रोने वाले सच्चे रोने रोने वालों से बाजी मार ले जाएंगे–हरिशंकर परसाई
(मनोज जायसवाल)
कुछ लोग इस प्रकार से चाटुकारिता में लगे होते हैं, कि खुद पर ध्यान नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं। सुबह से शाम तक नजदीकी के नाम पर कुछ मध्यमवर्गीय कहीं भौतिक रूप से तो कहीं सोशल में भी लगे होते हैं।
खुद का अपने परिवार के किसी सदस्य का या अपने पिता का जन्म दिवस इन्हें याद नहीं होता लेकिन तथाकथित वो बड़े आदमी जिनके नाम होने की शुमार होने की बात इनके मस्तिष्क पटल में बैठ गई है,पीछे लगे होते हैं। खुद की क्या पहचान है और अपने पहचान के लिए ये क्या कर रहे हैं खुद में ज्ञात नहीं होता।
कई ऐसे लोग हैं,जो खुद की पहचान किसी सियासी पद से देते हैं। आजीविका के कार्यों से नहीं। जबकि कभी कामकाज किसी के जानने की उत्कंठा हो तो किसी के आजीविका कार्य से होता है। कई बार तो ये लोगों की थोथी प्रशंसा भी कर रहे होते हैं। लोगों को लगता है कि मेरा बडा हितैषी है।
संज्ञान लें जब खुद के खून के रिश्ते बेमानी हो जाते हों मित्रता के नाम गद्दारी की खबरें हों वहां हितैषी की बातें कितने प्रतिशत हो सकता है अनुमान लगाने की बात होगी। सोशल मीडिया में झूठी स्नेह प्यार के कितने किस्से हैं। यह बात न सिर्फ आज का अपितु कालान्तर में इस बात को भी जाने माने साहित्यकार हरिशंकर परसाई ने भांप लिया था और कहा था कि जब मैं प्राण त्याग करूंगा तब इस बात की आशंका होगी कि झूठे रोने वाले सच्चे रोने रोने वालों से बाजी मार ले जाएंगे।
आज के परिपेक्ष्य में यह आशंका सत्य भी साबित हो रहा है। भौतिक रूप से परिजनों से मिलने तक जाने वालों की संख्या नगण्य में है और सोशल पटल पर ऐसे आंसु बहाने वालों की संख्या हजारों में। कहावत में घड़ियाली आंसु बहाने का मुहावरा भी प्रचलन में है।
आंसुओं के नाम भौतिक जीवन में बह जाने वाले भी धोखे का शिकार हुए हैं। जिनमें भावनाएं नहीं है, वे इस खेल में माहिर होते हैं।