(मनोज जायसवाल)
समाज जैसा सुखद सुरक्षा और अहसास देता है,लेकिन आज पढ़े लिखे जागरूक लोगों के बीच किस कदर समाज को ही लेकर अंतद्धद छिड़ा हुआ है, समाज के कितने अंतिम व्यक्ति पीड़ा से व्यथित हैं,बताने की जरूरत नहीं है।
कई दफा देश के संविधान के दिए मौलिक अधिकारों को छीन कर महज कुछ लोगों के समूह एक होने के अहं के चलते अपने संविधान का फरमान सुनाते अपनी शिक्षा याद नहीं रही जहां देश का संविधान लागू है,उसके अनुसार भी जीवन जीना है। आपका भी संविधान शिरोधार्य हो लेकिन आपने आर्थिक रूप से कितना लोगों का उत्थान किया है?
विच्छेदित लोगों का समूह
समाज से असंतोष व्याप्त, दमन से संघर्ष करते लोगों को गिनाया जाय तो एक पृथक गुट बन सकता है। इतिहास गवाह है, अतीत देखें तो ऐसा हुआ भी है,जहां समाज से अलग लोगों का गुट तैयार हो गया था और वे शादी विवाह में लेनदेन अपने इस इकाई से करते थे जिसके मुखिया अध्यक्ष बने और इस तरह भी समाज एकाकार हुआ था। लेकिन समाजहित में ऐसा समय ना आये। किंतु दुःखद बात यह है कि एक कस्बा,गांव से लेकर मंझोले नगर तक कई लोग इस सशक्त समाज के होने की खातिर खुशी एवं गर्व होना चाहिए वे अपनों से ही प्रताड़ित नजर आ रहे हैं।
बात-बात पर बिना किसी बड़ी गलती के विचार नहीं मिलने या फिर कभी-कभी तो व्यक्तिगत विद्वेश,दूसरों की आर्थिक मजबूती,प्रभावशाली होने के जलन को लेते हुए उन्हें समाज से विच्छेदित करने का सोच मन में बिठा कर रख लिये हैं,जैसे उन्होंने समाज में कोई बड़ा अपराध किया हो। जो व्यक्ति चिल्ला कर बोला जा रहा है,उनकी कुछ सुन रहे बल्कि बौद्विक रूप से परिपूर्ण लोगों की आवाज नहीं होने के चलते उन्हें तिरस्कारित किया जा रहा है। समाज से विच्छेदित किए जाने की घृणित मैल को हर बातों में महज दण्ड के रूप में देखने वाले क्या यह बता पाएंगे कि सिर्फ दण्ड कर दिये जाने से वह पाप दूर हो गया?
जबकि समाज के किसी भी व्यक्ति को विच्छेदित किया जाना है,उन पर पर्याप्त कारण होना चाहिए। ऐनकेन कारणों पर किसी व्यक्ति को समाज से विच्छेदित किया जाना या विच्छेदन की बात करना सामंती विचार का परिचायक है।
हार ना मानें,विषमताओं से लड़े
समाज में यदि कोई तल्ख बातों पर समाज एवं नियम कायदों की धौंस देता है तो लोगों को इनसे कदापि नहीं घबराना चाहिए बल्कि पूरी आत्मविश्वास,निडरता से अडिग रहना चाहिए यदि आपने कोई गंभीर कृत्य यदि नहीं किया है तो। मानव जाति में जन्म से मृत्यु तक होने वाले सभी संस्कार निभते,निभाये जाते रहे हैं। मानवता के नाम पर आज बाहर में कई सामाजिक संस्थाएं कार्य कर रही है,प्रशासन मानव जीवन के हर दुःख क्षणों पर हमेशा सहयोगी होता है। अपनी जागरूकता हमेशा बनाए रखें। कभी भी हार नहीं मानना है,समाज की विषमताओं से हमेशा लड़ना है। तल्ख बातों पर समाज से विच्छेद करने वालों पर आपका सवाल भी यह होना चाहिए कि जोड़ने का नाम समाज है,आप विच्छेदित कर रहे हैं तो जोड़ा कितनों को है।
चुनाव में अपनी दक्षता सिद्ध करें
आम रूप से बाहर में समाज की सत्ता के निकट रहने वाले कुछ लोग बाहर में यह ढिंढोरा पीट रहे होते हैं,कि उनका समाज में सिक्का चलता है। वो जैसे बोलेंगे वैसा होगा। उनके इस प्रकार की बातों को देखते हुए ऐसा लगता है कि कोई सत्ताधीश कठपुतली बना बैठा है! यदि उनमें इतना ही परिपूर्णता है तो क्यों वह चुनाव में भाग नहीं लेता? चुनाव में भाग ले कर देखने पर पता चलेगा कि आप कितने प्रभावशाली है। किसी के कान में फूंक मारने से आप प्रभावशाली नहीं होते। ना ही आपके उच्च आवाज में बात करने से किसी पर दमन नहीं कर सकते।
क्या है स्थिति?
इस बार समाज में परिवर्तन की स्थिति नजर आ रही है। कलार बाहुल्य चारामा विकासखंड की खबर तो बताने की जरूरत नहीं है कि कैसे यहां के लोग परिवर्तन के मुड में है। चारामा विकासखंड में खुद अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पुरूषोत्तम गजेंद्र के लोग स्वमेव स्वफूर्त परिवर्तन के पक्ष में माहौल बनाए हुए हैं। बस्तर क्षेत्र में इस टीम के सदस्य रोज कहीं न कहीं बैठक जारी रखे हुए हैं। भानपुरी,कोण्डागांव,केशकाल सहित अन्य जगहों पर नियमित रूप से संपर्क बनाया जा रहा है। पर इस क्षेत्र में एकतरफा तो नहीं कह सकते पर कई लोगों की मानसिकता भी परिवर्तन के पक्ष में जाती नजर आ रही है।
फोटो साभार-पूर्व चुनाव