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”विच्छेद का निर्णय नहीं आसां” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)

वर्तमान में समाज विकट दौर में गुजर रही है। सामाजिक सत्ता के पदाधिकारियों के रास्ते किसी तलवार के धार से कम नहीं है। सामाजिक सत्ता के लिए जरूर पंचवर्षीय कार्यकाल के निर्वाचन में जद्दोजहद प्रतियोगिता मची हो। लेकिन जिम्मा लेने के बाद जहां एक ओर वे सम्मान के हकदार तो होते है,लेकिन ठीक इसके दूसरी ओर कैसे आंखों को चुभते भी हैं यह बताने की जरूरत नहीं है।

अतीत में सामाजिक सत्ता समाज के प्रति लोगों का पूर्णरूपेश विश्वास बना हुआ था। आधुनिक समाज में जिस गति से आधुनिकता की चकाचौंध ने दुनिया बदल डाली। तारतम्य समाज नाम की सामाजिक संस्था पर प्रभाव पडना ही था।

हर समाज में सामाजिक समस्या यानि कोई प्रकरण एक सतत प्रक्रिया है, जिस पर आज भी लोगों का विश्वास है। इसके साथ ही संगठन को मजबूत बनाये रखना भी जरूरी है,जिसकी बदौलत मजबुती के साथ स्वयं काम किया जा सकता है। संगठन में मजबूती नहीं होना सत्ता के मार्ग तक को खोखला कर देती है।

”विच्छेद का निर्णय नहीं आसां”
 अतीत देखें तो वो स्वर्णिम समय भी था,जहां प्रकरणों में दोनों पक्षों को सुनकर निर्णय सुनाया जाता था,जिसे दोनों पक्ष समाज के निर्णय को शिरोधार्य करते थे। लेकिन शायद अब ऐसा नहीं है।

खासकर प्रत्येक समाज में आज पति-पत्नी प्रकरण अधिकाधिक आ रहे हैं। कई ऐसे प्रकरण जो संबंध विच्छेद को लेकर होते हैं। जहां दोनों पक्ष संबंध विच्छेद चाहते हों वहां समाज कतई देर नहीं करता। लेकिन कहीं एक पक्ष राजी है,तो दूसरी पक्ष राजी नहीं है तो इसका निर्णय करने में आज हिचक रहे हैं।

हिंदु धर्म में यह माना जाता है कि जोडियां उपर से बन कर आती है। जमीनी धरातल में आम लोग युगल के वैवाहिक संबंध की कडी में जहां अग्नि के सात फेरे में जीने मरने की कस्में खायी जाती है। साकोचार के माध्यम जीवन के पथ पर किस प्रकार से पति पत्नी को चलना है‚यह अवगत कराया जाता है। बावजूद किसी विसंगति‚असमानता या घरेलू क्लेश वश भी प्रकरण सामने आते हैं तो उसे एक झटके में विच्छेदित भला कैसे किया जा सकता हैॽ 

किसी कूटनीति‚अर्थ‚सत्ता की बदौलत यदि तमाम बातों को परे रखकर निर्णय कर भी दिया जाय तो गलत निर्णय जिसके चलते किसी की आत्मा को ठेस लगी उसका परिणाम किसी ना किसी रूप में भोगना पडेगा। भले ही यह बातें किसी दुखी द्धारा अपने को दिलाना देने के नाम ही सही पर जिसमें वो अपने को शांत करे दिल को समझाये। लेकिन किसी युगल के साथ कभी किसी ने एक झटके में संबंध तोडा तो स्वयं कब तक अपने में अंसत से सुखी महसूस कर पाओगे।

संबंध विच्छेद कई दफा ये मामले न्यायालय में लगे होते है। समाज का नियमावली संवैधानिक नियमों से जहां मेल नहीं खाएगा तो समाज का नियम जरूर हांफता नजर आएगा। यही कारण है कि कई दफा ऐसे प्रकरणों पर जिसमें दोनों पक्ष राजी ना हों निर्णय एकाएक नहीं किया जा रहा। क्योंकि कई दफा इस प्रकार के निर्णयों पर स्वयं पदाधिकारियों को भी जेल की हवा खानी पडी है। खासकर सख्त महिला कानून के चलते किसी भी महिला के बयानों के आधार पर एकाएक संबंध विच्छेद नहीं किया जा सकता। देश में सशक्त कानून है,जिसके मुताबिक ही न्याय होगा।

तमाम वो बातें जिसके चलते आज किसी भी मुद्दे पर समाज सख्त अख्तियार नहीं कर रहा है। ना संबंध विच्छेद को लेकर अपित ना ही किसी गैर जाति को मिलाये जाने को लेकर।

अतिरिक्त कइ्र व्यावहारिक विषयों को लेकर समाज द्वारा किसी व्यक्ति विशेष समूह सत्तासीन समाजसेवियों द्वारा वो नियम बनाये जाते हैं,जो उनके जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। यह फैल होते देखे गये हैं। कई दफा तो ये नियम उन्हीं लोगों के चलते फैल होते हैं,जिन्होंने नियम बनाने का विचार मंच में किया था। जब उनके यहां निजी आयोजन होते हैं,जहां नियम पालन होते नही देखा जाता तब पूरे समाज में यह कानाफूसी हो रही होती है,कि नियम तो हम अंतिम सिरे के गरीब लोगों के लिए बनाया गया है।

सामाजिक सरोकार में यह भी पता चला कि दण्ड प्रावधान,समाज की राशि का हिसाब किताब के साथ ही प्रकरण के जल्द निराकरण नहीं किये जाने के चलते भी समाज के कई लोग अवसाद से ग्रस्त होते हैं।कई बार अमूमन अंतिम व्यक्ति इन मचस्थ बडी आवाजों के बीच अपनी आवाज बुलंद नहीं करता वो तो अगले पंचवर्षीय में बिना किसी आवाज के उनके साथ जिन्होंने अन्याय किया है,बिना किसी आवाज के अपना अमूल्य मत देकर मन बना लिया होता है।

मनुष्य के मौलिक जीवन जीने के भारत के संवैधानिक अधिकारों को परे रख कर उन्हें नियम में बांधे जाने का दुष्परिणाम एक ना एक दिन खुद को भुगतना पडेगा,क्योंकि देश संविधान से चलता है। संविधान हमारा कर्मग्रंथ है,जिसे हमेशा याद रखी जाना चाहिए। सत्ता के मद में अपने को बडा मानकर दूसरों को कमतर समझा जा सकता है,लेकिन यह महज अल्प समय का ही है। जिस दिन सत्ता की कुर्सी नहीं होंगी उस दिन पता चलता है कि हम भी वहीं अंतिम व्यक्ति है।

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