आलेख देश

”लानत है‚ऐसी समाजसेवा” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)
संस्कृति एवं सभ्यताओं वाला देश और आधुनिक कहलाने वाले समाज के नाम हमें गर्व है, समाज में उलुल जुलूल नियमों को लागू किए जाने पर बडे भारी काम किये जाने पर भी गर्व के नाम फूले नहीं अघाते, मृत्यु संस्कारों के नाम तत्कालीक तिजनहावन कार्यक्रम के नाम संपूर्ण कार्यक्रम के नाम जल्दबाजी पडी है, वहीं इसी पूर्वज के श्राद्ध कार्यक्रम के नाम पूरे इत्मिनान से नेक कार्यक्रम के नाम दान दक्षिणा सहित कई प्रकार से सकारात्मक कार्य के नाम पर इस अनुठी परंपरा का निर्वहन करते नजर आते हैं। लानत है‚ऐसी समाज सेवा पर जहां बौद्धिक वर्ग के लोगों को समाज  के अंतिम छोर पर उपेक्षित  रहना पड रहा हो‚ विचार उनका लिए जा रहे हों‚जिन पर तालियां बजती दिखायी दे।

जहां श्राद्ध कार्यक्रम के नाम दिल में सकारात्मक कार्य का ख्याल मन में आता हो, वहीं किसी समाजसेवी के मन में बुर्जुगों के वृद्धाश्रम पर विचार मन में नहीं आता।देश में कितनी लज्जा की बात कि ऐसा समाज बनाये जाने पर किसी के मन में शायद ख्याल नहीं आता जिससे वृद्धाश्रम तक किसी मां बाप को जाने के लिए मजबूर होना ना पडे।

समाज की बैठकों में समाज की कई कुरीतियों कुप्रथाओं से मुक्त कराने वाले राजा राजमोहन राय एवं अन्य पूर्व समाजसेवियों के कार्य गंभीरता से याद नहीं किये जाते। वर्तमान की बडी कुरीतियां कभी विषय नहीं बनाये जाते विषय बनते हैं तो वो बातें जो संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार जिस पर निर्णय का उन्हें अधिकार ही नहीं है,जिस पर बातें की जाती है।

आधुनिक समाज के निर्माण में आधुनिक सोच का होना जरूरी है,और यह तब संभव है,जब समाज के बौद्धिक  वर्ग के लोगों को भी शामिल किया जावे। हां में हां मिलाने और अपनी सामाजिक सत्ता को पंचवर्षीय कार्यकाल तक टिकाने के नाम,किसी को पद देकर संतुष्टि करने के नाम बनाये गये टीम से आधुनिक समाज की ना बुनियाद रखी जा सकती और ना ही कोई नई सोच मंच पर नहीं दिखायी देने  वाली।

 

 

 

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