(मनोज जायसवाल)
अच्छा! हमें क्या मालूम कि आपने समाज के क्रीमी पद में ईमानदार रहे। रहे तो रहे, लेकिन अब अपने ही टीम के साथियों का नकारात्मक बात करते हुए दूसरों के पास शायद अपनी ईमानदारी को सत्य साबित करने का प्रयास कर रहे हैं।
हमें आपकी ईमानदारी पर कोई शक नहीं है,लेकिन अपने ही लोगों पर नकारात्मक बातों के तारतम्य विचार जो करना पड़ रहा है। कोई बात नहीं कि आपने अपने समाज के उस उक्त पद के लिए खड़े होकर अपने को मत देने का निवेदन कर रहे हैं।
ईमानदार हैं,तो बताने की जरूरत नहीं
लेकिन और लेकिन यदि आपने समाजसेवा का बीड़ा उठा ही लिया है तो आपको भ्रष्टता से मुक्त पूरी तरह ईमानदार,कर्तव्यनिष्ठ मानते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि आपको इतने सारे तामझाम मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ना चाहिए।
समाजसेवा के लिए किसी की बुराई किये जाने,अपने से दूसरों को कमतर आंकने वो व्यक्ति जिससे आप मिल कर बात रख रहे हैं,आपके लिए क्या सोचेगा यह विचार तो आपने किया नहीं। फिर किसी की बुराई कर आप कौन सा समाजसेवा को अग्रसर हैं।
समाजसेवा के कई बिंदु
मैं कहता हूं कि अपना ध्वेय समाजसेवा को मानकर चल रहे हैं तो समाजसेवा के समाज में कई अवसर हैं। किसी एक समाज नहीं अपितु सर्वस्व भारतीय समाज आपके नेक कार्यों की प्रशंसा करेगा। मसलन स्वच्छ पेयजल, लावारिश लाश का अंतिम संस्कार, अपंग,अपाहिज गरीबों की सहायता,सुरक्षा,वृक्षारोपण, लोगों को शिक्षित कर अपने शुभ विचार को प्रसारित कर,धर्म के क्षेत्र में आयोजन कर, सामाजिक विषयों पर लेखन ऐसे बहुत विषय है, जिस पर रह कर भी आप समाजसेवक का तमगा रख सकते हैं।
समाजसेवा के लिए पद का त्याग
दूसरी ओर पद की लालसा
पर नहीं! आपको तो किसी एक समाज पर शायद समाजसेवा की सुझी है,जिसमें पद चाहिए। जबकि समाजसेवा पर किसी पद का मोहताज नहीं है। ऐसे कितनों का नाम लिखें जिन्होंने अपनी प्रशासनिक सेवा छोड़ तो किसी ने अपने कई बड़े मूल क्षेत्रों को त्याग कर मानवता समाज सेवा के लिए अपने हाथ बढ़ाये हैं। ये वे लोग हैं जो अपने पद को छोड़ कर समाजसेवा क्षेत्र में आए हैं। दूसरी ओर कई वो लोग हैं,जिन्हें पद चाहिए और बिना पद के उनकी परिभाषा में शायद समाजसेवा नहीं हो सकता।