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”संदली” श्रीमती देवश्री गोयल शिक्षिका साहित्यकार,जगदलपुर छत्तीसगढ़

साहित्यकार परिचय-

श्रीमती देवश्री गोयल

जन्म- 23/10/67

माता-पिता – स्वर्गीय अमल कुमार श्रीमती प्रतिमा देवी

शिक्षा स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य,लोक प्रशासन, समाजशास्त्र, अंग्रेजी साहित्य

प्रकाशन – “दिल की बोली करब ऐ अहसास में” अभी हाल ही में 4 लघुकथा का प्रकाशन..
USA से छपने वाली हम हिंदुस्तानी में लघुकथा का प्रकाशन, hindi भाषा .कॉम में कहानी कविता का प्रकाशन
सम्मान- अनुसूचित जनजाति विकास परिषद सर्वपल्ली राधा कृष्णन शिक्षक सम्मान,…अभी खाते में बड़ी उपलब्धि शामिल नही है…2017 से लिखना शुरू किया।

सम्प्रति – प्रधान अध्यापक जगदलपुर

संपर्क- .सनसिटी लाल बाग के पास मकान नम्बर 162 जगदलपुर छतीसगढ़ 494001
Email…goyalsd2@gmail.com  माे. 8085721011

”संदली”
आजकल संदली बेहद सुस्त और चुप चुप रहती है, पहले जब भी काम पर आती, उसके आते ही घर में एक रौनक सी छा जाती थी।
18/19 साल की संदली मेरी सहेली रंभा की बेटी है ।हम दोनों सहेलियां भी हैं, और बहन जैसी भी…। हम एक साथ ही आसपास के घरों में झाड़ू पोंछा करके अपना पेट पालती हैं।
मेरी कोई संतान नहीं है इसलिए मैं संदली को बहुत प्यार करती हूं…।और वो है भी बड़ी प्यारी…।

जब कभी मालिकों के यहां काम अधिक होता तो मालिक उसे अवश्य बुलाते.. वो बेहद फुर्ती से सारा काम निपटाती बाई तो थी…।
लेकिन कुछ दिनों से वो बेहद सुस्त और चुपचाप रहने लगी थी, काम पर साथ चलने में भी आनाकानी करने लगी..। रंभा से पूछा तो उसने भी यही कहा “पता नहीं आजकल उसको क्या हुआ है? बस सोई ही रहती है..!

दो चार दिन बाद मैं उससे मिलने गई.. देखा पलंग पर अस्त व्यस्त सी पड़ी थी वो.. मुझे देखते ही उठने का प्रयास करने लगी.. मैंने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर प्यार से पूछने लगी कि क्या हुआ बेटा…?”तो वह एकदम से सकुचा उठी…जैसे खुद को समेट रही हो..! उसके व्यवहार से मेरा माथा ठनका… कि “अचानक इसे क्या हुआ..?”

मैं मां तो नहीं बन पाई थी कभी … पर संदली को अपना बच्चा ही समझती थी । उसकी हालत ने मेरे मन में ढेर सारे प्रश्न खड़े कर दिए।
वो भी समझ गई कि मैं कुछ ताड़ रही हूं..! मेरे प्रश्न भरी आंखों को देख कर ही उसकी आंखे पनीली हो गईं। आतंकित हो कर मैने पूछा “बता क्या छुपा रही है…! किसने तेरा ये हाल किया है बोल?”पर आंख नीचे किए वो रोती रही बोली कुछ नहीं ।” मां को बताई कुछ?”पर कोई जवाब नही।

बाद में रंभा को मैने अपना शक बताया वो भी अवाक रह गई….! बहुत पूछने पर बताया उसके सगे मामा ने उसको गंदा कर दिया था । डर के कारण संदली न मां से कुछ कह पा रही थी न ही रंभा ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई..!
दाई ने देखते ही कहा बात बहुत आगे बढ़ गई है… बच्चे को जन्म देना पड़ेगा!

धाराशार बारिश की एक काली रात में संदली ने एक देह को जन्म दिया। हम दोनों सहेलियों ने पहले ही तय कर लिया था कि करना क्या है? आधी रात को ही हमने बच्चे को एक महफूज परिवार में पहुंचाया जहां कई वर्षो से बड़ी बहू को संतान सुख नहीं था। उस घर से निकल कर हम दोनों सहेलियां एक दूसरे के गले लगकर खूब रोई… तेज बारिश ने हमारे आंसुओं को भी अपने सीने से लगा लिया… आज मन में एक संतोष था एक बच्ची का सम्मान बचा कर … दूसरा
एक बच्ची को अच्छे हाथों में सौंप कर..!

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