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‘संघर्ष’ श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतति  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा- बी.ए. प्रथम उत्तीर्ण

प्रकाशन- 1. विश्वात्मा (साझा संकलन) 2. एक पैगाम तेरे नाम (साझा संकलन) 3. इन्द्रधनुष (साझा संकलन)

पुरस्कार⁄सम्मान–1. कलमकार साहित्य समता सम्मान-2024, 2. कलमवीर साहित्य सम्मान-2024, 3. इन्द्रधनुष साहित्य सम्मान-2024

पेशा – गृहणी

स्थायी  पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)

संपर्क- मो. – 8966810173

‘संघर्ष’ ”  
(यथार्थवादी कहानी)

बसंती एक घरेलू महिला थी उसकी शादी एक बिल्डर से हुई थी बसंती अपने परिवार में व्यस्त थी वह चाहे कितना भी अच्छा कर लेती पर सास को पसंद ही नहीं आता था बसंती की ऊंचाई थोड़ी कम थी‚ मगर वह काफी सुंदर थी उसके छोटे कद काठी के कारण सास उसे ठिगनी कह कर ताने मारा करती थी बसंती की सास उसके पति का कान भरती रहती थी कि उसे और कोई नहीं मिला शादी के लिए यह बोल- बोल कर उसे उकसाती रहती थी वैसे भी बसंती का पति बहुत ही स्मार्ट था ।

बिल्डिंग के काम से ज्यादातर बाहर ही रहता था वह इस कॉलोनी से उसे कॉलोनी तक घूमा करता था वहां पर बसंती की सास उसे बहुत सताया करती थी ताकि वह जल्दी से घर छोड़ दे बसंती की दो बेटियां थी इसके बावजूद भी उसकी सास उसे नापसंद करती थी।उसका पति का मन भी बसंती से ऊब गया था वह इधर-उधर मुंह मारा करता था अपने ही कॉलोनी की एक औरत को उसने रखा था बसंती इस बात से अंजान थी बसंती तो परिवार और बच्चों की देखरेख में ही अपना दिन गुजर रही थी बसंती पर पढ़ी लिखी थी पर उसकी शादी के बाद वह हाउसवाइफ ही बन कर रह गई थी धीरे-धीरे बसंती का पति उसे बहुत दुख देने लगा था और दोनों बच्चियों और बसंती पर हाथ उठाने लगा था उसकी सास तो मन।

ही मन खुश होती थी जल्द से जल्द इस ठिगनी का मुंह इस घर से हट जाए वह दिन रात यही सोचा करती थी दोनो बेटियों के बारे में कोई सोचता भी नहीं था दिन-ब-दिन उसके पति और सास का अत्याचार बढ़ता गया हद तो तब हो गई जब बसंती ने घर छोड़ने से मना किया तो उसका पति कई- कई महीने तक घर ही नहीं आना बंद कर दिया। बसंती और बच्चियों के लिए खर्चा देना बंद कर दिया वह बहुत ही मुश्किल से अपने दिन काट रही थी एक दिन उसका पति शराब के नशे में घर पहुंचा और बसंती को बहुत मारा बसंती और दोनों बच्चे बहुत रो रहे थे तब उसकी सास बोली ”इतने में भी तुम्हें समझ नहीं है मेरा बेटा तुम्हें नापसंद करता है तुम यहां से चली क्यों नहीं जाती पर बसंती कुछ नहीं बोल पाई बसंती सारे दुख चुपचाप सह रही थी।

इसका एक कारण यह भी था की वह जाति भी तो कहां जाती है उसका मायका तो इससे भी बत्तर था वह जानती थी वहां गई तो भाई -भाभियों के आंखों में चुभती रहेगी पर वह कब तक सहती उसने घर छोड़ने का फैसला किया कर लिया मगर उसका जाना पहले से ही तय था उसके पति ने उस दूसरी औरत को अपने घर ले आया बसंती अंदर से टूट गई वह दोनों बच्चियों को लेकर उस घर से निकाल गई बसंती का संघर्ष तो अब शुरू हुआ वह मायके चली आई पर वहां उसे बैठी हुई औरत के नाम के अलावा कुछ मान सम्मान नहीं मिला माता-पिता भी बेटे और बहूओ के सामने निःशब्द हो गए थे ।

बसंती पढ़ी लिखी थी वह सोचती थी शायद उसकी पढ़ाई इसी दिन के लिए थी वह शिक्षित थी उसके चरित्र व्यवहार में उसकी शिक्षा झलकती थी बसंती ने दिन-रात एक कर दिया नौकरी ढूंढने में उसके एक सहेली ने उसे कहीं नौकरी में लगवा दिया जाॅब मिलने के बाद वह खूब मन लगाकर काम करने लगी इस नौकरी से उसके हालात सुधरने लगे हैं बच्चियों की परवरिश अच्छे से करने लगी मायके वाले भी अब उसे सुनना कम कर दिया क्योंकि अब वह कमाऊ बेटी जो बन गई थी उसने अपने ससुराल को दोबारा पलट के नहीं देखा उसने दिन- रात मेहनत की और बच्चियों को पढ़ाया लिखाया।

पढ़ा लिखा कर बड़ा किया और दोनों को अपने पैरों पर खड़ा किया बसंती की दोनों बेटियां भी जाॅब करने लगी बसंती ने अपना अगला पिछला सभी कर्ज भी चुका दिया अब उसने बेटियों की शादी का सोचा बेटियों के लिए भी अच्छे नौकरी वाले रिश्ते आए पर कई रिश्ते उसके पिता के बारे में जान कर नहीं हो पाए कुछ लोगो ने पिता के बारे में जानकर भी हां कहा तो किसी ने बिना बाप के साए में पले बढ़े हैं कैसे संस्कार होंगे यह कहकर रिश्ते के लिए मना कर दिए जिन्होंने हां किये उन्ही में से अच्छे रिश्ते ढूंढ कर बसंती ने शादी के लिए हां कह दी दोनों बेटियां की शादी की तैयारी बड़े धूमधाम से हुई।

पर बसंती चाहती थी कि भले ही दोनों बिना बाप के पली बढ़ी है पर शादी में दोनों को पिता का आशीर्वाद मिलना बहुत जरूरी है इसी कारण बसंती ने उसके पिता को संदेशा भिजवाया दोनों बेटियों ने बसंती को मना भी किया था कि इतने सालों में पिता जी ने उनका हाल-चाल तो दूर की बात थी दोनों को देखा भी नहीं है तो शादी में उन्हें बुलवाने से क्या मतलब बोलकर मन कर रही थी पर मन ही मन उन्हें भी अपने पिता के आशीर्वाद की लालसा थी । बसंती ने अपने ससुराल में नेवता भिजवाया फिर शादी का दिन आ गया बसंती ने दिनभर अपने पति का इंतजार किया ।

दोनों की शादी संपन्न हो गई पिता के आशीर्वाद के बिना ही दोनों की विदाई हो गई बसंती ने शादी बड़े ही धूमधाम से की थी पर उसका हृदय फूट-फूट कर रो पड़ा वह अकेली जो हो गई थी। बसंती जिंदगी भर संघर्ष करती रही वह अपने पैरों पर खड़ी हो पाई तो सिर्फ शिक्षा के कारण एक औरत के लिए शिक्षित होना इतना महत्वपूर्ण है बसंती ने यह साबित कर दिखाया शिक्षा से ही वह आगे बढ़ पाई अपने अंधेरे जीवन में रोशनी भर पाई।

इसीलिए हर बेटी को शिक्षित करना उसके माता-पिता का कर्तव्य होता है और हमारे समाज का भी कि वह किसी भी हालत में बेटियों की शिक्षा के लिए मदद का राह दिखाएं वह उनका सम्मान करके उन्हें आगे बढ़ाने की प्रेरणा दे कर आत्मनिर्भर बनाएं।

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