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मजदूरी से मास्टर ट्रेनर का सफर– सरस्वती देवांगन

(मनोज जायसवाल)

सशक्त पथ पर— सरस्वती देवांगन

स्वयं की प्रतिभा जीवन में सम्मान के साथ आजीविका का सशक्त माध्यम बन जाती है, भले ही आपकी शैक्षणिक उपलब्धियां कम हो। ठीक इन्हीं शब्दों पर सरोकार करती है, छत्तीसगढ के सिवनी,चाम्पा की सरस्वती देवांगन के जीवन की विकास यात्रा, जिनके तकनीकी स्कील्स की ख्याति से देश के प्रधानमंत्री भी दो बार वाकिफ हुए। गर्व का विषय कि इन दिनों सरस्वती देवांगन कांकेर जिले के बाबुकोहका रेशम केंद्र में मास्टर ट्रेनर के रूप में पदस्थ है।

जन्म – सरस्वती देवांगन अपने पिता पानुराम देवांगन, गृहणी मॉ की दूसरी सुपुत्री है। 06 जून 1980 को जन्म हुआ था।

शिक्षा- आम मध्यमवर्गीय व परिवार में जन्मी सरस्वती के ऊपर गहन पारिवारिक जिम्मेदारियां होने से माध्यमिक कक्षा तक ही शिक्षा अर्जित कर पाई। जिनका मलाल उन्हें आज भी है। पिता जो स्वयं बुनकर थे, ने इन्हें बुनकरी मजदूरी कार्य में लगा दिया।

विवाह- लगातार बुनकरी क्षेत्र में कार्य करते हुए इनके पिता द्वारा 18 वर्ष की कम उम्र में सिवनी(चाम्पा) के ही कपडा एवं बुनकर कार्य से जुडे धनंजय देवांगन के साथ कर दी। ससुराल में बुनकरी का व्यवसाय रहा। कोसा से धागा निकालने के कार्य में ध्यान दिया। वर्ष 2012 में सरस्वती देवांगन ने अन्य लोगों को चंद्रपुर,जांजगीर क्षेत्र,कोरबा,सारंगढ,पचेडा आदि जगहों में प्रशिक्षण देने का लगातार काम कर रही है।

अगस्त 2024 में बस्तर संभाग के कांकेर में मास्टर ट्रेनर के रूप में पदस्थ है। पहले पहल एक अदद मजदूरी कार्य से अपने कार्य प्रारंभ करने वाली सरस्वती देवांगन राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन रेशम धागा फेक्ट्री दिल्ली में द्रश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने तकनीकी कार्य का प्रदर्शन की जिस पर प्रधानमंत्री ने काफी खुशी जाहिर किया। दिल्ली के बाद पुनः वर्ष 2018 में जांजगीर के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सामने अपनी तकनीकी प्रतिभा के प्रदर्शन का मौका मिला।

विदेशों से आयातीत ताना धागा से अब तक कार्य हो रहा था, लेकिन वर्तमान में ताना धागा बनाने की मशीन बाबुकोहका रेशम कोसा केंद्र को प्राप्त हुआ है। जिस मशीन से धागा निर्माण कार्य के लिए सरस्वती देवांगन की नियुक्ति की गई है।

मजदूरी कार्य से आज के इस पायदान में जहां वे मास्टर ट्रेनर के रूप में अन्य महिलाओं को  ट्रनिंग दे रही है,बताती है कि इस कार्य से आम गृहणी महिलाएं भी स्वयं के पैर पर खडा हो सकती है। कार्य के लिए अपना जज्बा बनाये रखना जरूरी है,क्योंकि कई महिलाएं बीच में ही काम छोड देती है। जब वे मजदूरी कार्य के रूप में कदम रखा तब 21 महिलाएं कार्य कर रही थी,जो कि आज के पायदान में इस मुकाम तक उन्होंने सब काम छोड दिया और स्वयं सरस्वती देवांगन आज इस क्षेत्र में सफल हुई है।

सरस्वती देवांगन की दो संतान है,जिनमें एक लडकी नेहा जो भी शिक्षा उपरांत सिलाई कार्य कर रही है। वही लडका चुडामणी देवांगन शिक्षारत है।

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