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“छत्तीसगढ़ के कुटेला धाम में कवियों ने समा बांधा”

(मनोज जायसवाल)

बिलासपुर(सशक्त हस्ताक्षर) गुरुपुत्री सुभद्रा माता की कर्म स्थली पावन धाम कुटेला में छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में डॉ. किशन टण्डन ”क्रान्ति” द्वारा रचित 28 वीं कृति दस्तक, लघुकथा-संग्रह एवं 29 वीं कृति मुट्ठी भर तिनके काव्य-संग्रह का विमोचन किया गया। वरिष्ठ साहित्यकारों, समाजसेवियों तथा सैकड़ों की संख्या में गणमान्य नागरिकों खासकर शिरोमणि व्यक्तित्व मालिक राम घृतलहरे की गरिमामयी उपस्थिति तथा किशोरवय के स्कूली बच्चों की चुहलबाजी के बीच पुस्तकों का विमोचन अभूतपूर्व उत्साह के माहौल में सम्पन्न हुआ।

इसके बाद श्रोताओं की खचाखच भरी भीड़ में नामी कवियों, गीतकारों, गजलकारों एवं छन्दकारों की उपस्थिति से महफिल में इन्द्रधनुषी छटा दृश्यमान होने लगी।

 

छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संस्थापक एवं प्रदेशाध्यक्ष तथा पद्य और गद्य की पुस्तकों के लेखन के क्षेत्र में पहले से सिल्वर जुबली मना चुके डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने 3000 से अधिक पुस्तकों के निःशुल्क वितरण की बात कही। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री जैसे विख्यात हस्तियों से लेकर आम नागरिकों तक तथा बस और ट्रेन में सफर कर रहे लोगों की पठन- अभिरुचि देखकर उनकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए पुस्तकें भेंट करता हूँ, तब लोग भाव-विभोर हो उठते हैं और मुझे हार्दिक खुशी होती है।
उन्होंने पुस्तक वितरण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा

 

 

 

एक हाथ से दिए दान हजारों हाथ से लौट आता है।
बाँहों को फैला कर देखो ये संसार कहाँ समाता है।।

 

 

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने आगे कहा कि एक ओर लघुकथा-संग्रह दस्तक में चेतना का अजस्र आह्वान है, तो दूसरी ओर जीवन-जगत के विविध रंग समेटी हुई पुस्तक मुट्ठीभर तिनके में इन्द्रधनुषी आभा विद्यमान है। मुझे विश्वास है कि इसे पढ़ते हुए पाठक अहसासों में डूबकर सराबोर हो जाएंगे। वैसे भी मुट्ठी भर तिनके से सारी दुनिया की सफाई हो सकती है, और यदि वे बिखर जाएँ तो भी कमाल कर देते हैं। मसलन –

 

 

 

 

तिनका तिनका जुड़ जाए तो नीड़ बनता है,
तिनका तिनका उजड़ जाए तो घर कहाँ बसता है?
घर में बिखरे हों तिनके तो बहुत बुरा लगता है,
पर मुट्ठी भर तिनकों के हाथ दुनिया साफ करता है।

 

 

 

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने पुस्तक प्रकाशन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा- पुस्तकें कालजयी होती हैं। यह लेखक को अमर कर देती है। साहित्यकार साथी अपनी रचनाओं को पुस्तक की शक्ल देवें। मेरी हर पुस्तक में आपको ये पंक्तियाँ मुस्कुराती हुई दिख जाएंगी –

 

 

 

न जाने कब, कहाँ छूट जाए
साथ जिन्दगी का…
मेरे अल्फाजों को समेट कर
रख लेना… ऐ दोस्त,
यही सबूत होगा मेरे होने का…।

 

 

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कार्यक्रम को गति देते हुए संचालक एवं वीर-रस सम्राट जगतारण प्रसाद डहरे ने मानसिक सशक्तिकरण पर बल देते हुए लोगों को खूब गुदगुदाया –
तन पोठ धरे ले का होथे, मन छोट करे ले का होथे।
जीते बर हे त लड़ बने, बस गोठ करे ले का होथे।।
इसमें दो मत नहीं कि नारी के बिना दुनिया की तरक्की रुक जाएगी। बावजूद आदि काल से किसी न किसी रूप में नारियों के अधिकारों का हनन होता रहा है। अनेक समाज सुधारकों ने नारी स्वाभिमान के पक्ष में आवाज बुलन्द कीं, उन्हीं में से एक हैं- नवलपुर-बेमेतरा के भुजबल महन्त साहेब, जिन्होंने दलित शोषित नारियों को अधिकार दिलाने के लिए जमकर संघर्ष किए। कवि अशोक बंजारे ने इन पंक्तियों में इसे स्वर दिया-

 

 

स्वाभिमान के खातिर
भुजबल महन्त नागपुर ले लानिस डोला रे
गदगद होगे मोर चोला रे
बेटी-बहू के इज्जत लूट गय, लाज नइ लागय तोला रे
काबर बन गय तैं भोला रे।
बेशक सिद्धान्त पर व्यवहार भारी पड़ता है। कवि खेमचंद की ये पंक्तियाँ इसकी गहराई तक तस्दीक करती हुई प्रतीत हुई रू
झन देखाहू कोनो ल संगी, अपन चमत्कार ल।
बनाके राखव ए दुनिया म, अपन ग बेवहार ल।।

 

 

सन्त गुरु घासीदास के 7 सन्देश और 42 अमृतवाणी न केवल सम्पूर्ण मानव समाज के लिए आदर्श आचरण संहिता है, बल्कि यह आवागमन के चक्र से भी मुक्ति दिलाती है। तभी तो कवि ओम प्रकाश पात्रे श्ओमश् श्रोताओं के समक्ष मुखातिब होते हुए करतल ध्वनि के बीच छप्पय छन्द से सजी पंक्तियाँ परोसे –
अन्तर्मन के बोध, कराथे गुरू उपदेशा।
सन्तवाणी मुख बोल, सात धरले संदेशा।।
वे यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने गुरु-महिमा का बखान करते हुए सबको अमृत-रस से भीगो दिए रू

 

 

ज्ञान गुन अमरित बसे हे, तोर पावन धाम मा।
हे बबा तँय खोज लाए, सत के ओ नाम ला।।
सतनाम की अमृत-वर्षा के बीच रायगढ़ से पधारे कवि तिलक तनौदी कुण्डलिया छन्द में गुरुपुत्री सुभद्रा मैया के द्वारा किए गए नारी हितकारी कार्यों की प्रशंसा करते हुए भक्ति भाव में ओतप्रोत होकर अपनी इन पंक्तियों से मंत्रमुग्ध कर दिए –

 

 

तनया घासीदास की, मात सुभद्रा नाम
नारी के सम्मान में, किए कई हैं काम
किए कई हैं काम, दहन होली को रोके
नारी का अपमान, मान सब जन को टोके
कहे तिलक कविराय, साहसी भारी कन्या
धन्य कुटेला धाम, जहाँ रहती थी तनया।

 

इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बेमेतरा से आए कवि लछन दास टण्डन ने गुरु बालक दास के अंगरक्षक सरहा और जोधाई के शौर्य की प्रशंसा करते हुए उत्साह में भरकर सीना तान कर बोले-

 

 

 

औरा बांधा के लड़इया कहिथे, सरहा अउ जोधाई ल।
महान बलिदानी राजा- गुरू, बालक दास गोसाई ला।।
जब सत्य की चर्चा हो रही हो तो कवि-हृदय चुप कैसे रह सकता है? माइक थामते ही संयुक्त रूप से कार्यक्रम का उम्दा संचालन कर रहे प्रख्यात गायक-कवि जुगेश बंजारे धीरज आल्हा छन्द में तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट के बीच श्रोताओं को समझाइश देने के निराला अन्दाज में बोले –
सच्चा सोना बन के रहना, टूट जुड़े जो सौ-सौ बार।

 

 

 

झन रहना जस माटी मरकी, एक धका म परे दरार।।
मनखे कतको हावय संगी, कोरी खरिखा लाख हजार।
एक अपन पहचान करे बर, कर समाज के सेवा सार।।
तभी मंच पर गजलकार डॉ. दुर्गाप्रसाद मेरसा की उपस्थिति ने हवा का रुख मोड़ दिया। उन्होंने महफिल में जबरदस्त उत्साह का संचार करते हुए गजल पढ़ी –
दहशत बहुत है शहर में तेरे, आंधियाँ अब सम्हल गई क्या?
लहू बहता रहा मजहब के वास्ते, सुर्ख आँखें नम हुई क्या??

 

 

 

तत्पश्चात विख्यात गजलकार मनोज खाण्डे मन  की सुरीली आवाज ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गर्मजोशी से करतल ध्वनि युक्त लाउड स्पीकर की आवाज जहाँ तक गई, वहाँ तक सारे सुनने वालों का ध्यान खींचा –
देश में ये किस तरह माहौल हम लाने लगे,
बेसबब हम बेटियों पर क्यों सितम ढाने लगे।
खादी-खाकी वालों पर कैसे भरोसा हम करें,
कातिलों के साथ अक्सर ये नजर आने लगे।।

 

 

हास्य-व्यंग्य लोक जीवन की आकांक्षाओं को नापने का थर्मामीटर है। अगर भाषा के साथ शब्दों का सुन्दर संयोजन हों तो फिर क्या कहने? हास्य रस के कवि मणिशंकर दिवाकर गदगद  ने हास्य का जबरदस्त तीर छोड़ते हुए श्रोताओं को जमकर गुदगुदाया –
पाठ छय, भारत माता की जय
मोर कविता के परची, कती कती गय।

 

 

 

गहराती रात, चमकती बिजलियाँ और बरसते बादल की रिमझिम फुहारों के बीच कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए मुख्य अतिथि (उपसंचालक, छत्तीसगढ़ शासन) डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति की इन रूहानी पंक्तियों को श्रोतागण मधुर करतल ध्वनि के बीच दिल थामकर और साँसें रोक कर सुनते रहे –

 

तेरी तस्वीर देखी है जब से आँखों ने मेरी
जिधर देखता हूँ , उधर तू ही तू है…
चाँद में सूरज में, सितारों और हर नजारों में
यादों में इरादों में, सपनों और हर ख्वाबों में
बागों में बहारों में, गलियों और चौबारों में
मंदिरों में मस्जिदों में, गिरजाघरों और गुरुद्वारों में
तर्क में दर्प में, स्वर्ग और हर उत्कर्ष में
फर्श में अर्स में, जीवन के हर संघर्ष में
आदि से अन्त तक, अनादि से अनन्त तक…
जिधर देखता हूँ , उधर तू ही तू है…

 

बिलासपुर जिले की जनपद पंचायत- मस्तूरी के कुटेला धाम जैसे सुदूर ग्रामीण अंचल में कार्यक्रम के अन्त तक श्रोताओं की खचाखच भरी भीड़ को देखकर यह मिथक टूट गया कि कवि सम्मेलन की लोकप्रियता केवल शहरों तक सीमित है। सच तो यह है कि 21वीं सदी में शिक्षा की रौशनी से गाँव-गली जगमगा उठी है। साहित्य के प्रति जन-गण-मन  की रुझान बढ़ी है। छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के बैनर तले यह सफलतम कवि सम्मेलन इस बात का साक्षी है।

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