साहित्यकार परिचय- श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”
जन्म- 10 दिसंबर 1964
माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला
शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.
प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)
सम्मान-
सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234
‘मानवता का गीत’
कुछ तुम भी लिखो,कुछ मैं भी लिखूँ,
बन जाए कविता जीवन की।
तुम फूल लिखो , मैं लिखूँ महक,
खिल जाए बगिया आँगन की।
तुम शब्द मिटा दो अनबन के,
मैं पानी फेरूँ कटुता पर।
तुम घटा लिखो , मैं लिखूँ बूँद,
बरसे बदरी फिर सावन की।
तुम प्रेम लिखो , मैं खुशी लिखूँ,
नवगीत चलो कुछ रचते हैं।
तुम पेड़ लिखो , मैं लिखूँ छाँह,
जहाँ प्राण सभी के बसते हैं।
तुम लिखो भक्ति , मैं भाव लिखूँ,
अंतस के ईश्वर को ढूँढें।
तुम दया लिखो , मैं लिखूँ मदद,
जिसमें कि धर्मगुण सजते हैं।
तुम शक्ति लिखो जीवनपथ की,
मैं लिखूँ उजाला दिनकर का।
तुम नदियों का संघर्ष लिखो,
गुंजार लिखूँ मैं मधुकर का।
पंछियों के तुम कलरव लिख दो,
मैं कोंपल का साहस लिख दूँ।
तुम तीव्र धूप का अर्थ लिखो,
मैं लिख दूँ लक्ष्य सीकर का।
संकट की घड़ियों में तुम,
बस साहस का संचार लिखो।
मैं शस्त्र लिखूँ , मैं अस्त्र लिखूँ,
तुम शत्रु का संहार लिखो।
आओ मिलकर के हम और तुम,
कुछ गीत लिखें मानवता के।
मुस्कान लिखूँ मैं अधरों के,
तुम हँसता हुआ संसार लिखो।