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गरिमामयी आयोजन में बांका जिला साहित्य सम्मेलन का 44 वां स्थापना दिवस मना

– 44 वां हिन्दी साहित्य सम्मेलन स्थापना दिवस आयोजन मौके पर कई संकलनों का विमोचन एवं सम्मान।

बाँका  (सशक्त हस्ताक्षर)। जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में हिंदी साहित्य समागम, सृजन, संपोषण के 44 वें पड़ाव पर आकर, अविनाश पैलेस प्रशाल, पुरानी बस स्टैंड, बाँका में 44वां स्थापना महोत्सव भव्य रूप से मनाया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.मनोज कुमार, भूतपूर्व कुलपति, श्समाज कार्य केंद्र के वर्तमान निदेशक संप्रति महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र थे। जबकि, विशिष्ट अतिथि डॉ. मेहता नागेंद्र सिंह, भूवैज्ञानिक, पर्यावरणविद, साहित्यकार, संपादक – श्हरित वसुंधराश्, पटना थे। अध्यक्षता सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अचल भारती एवं संचालन सम्मेलन के संरक्षक शंकर दास ने किया। मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अश्विनी आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि द्वारा पौधा वितरण के साथ किया गया। फलदार पौधे एवं सिंदूर के पौधे साहित्यकार सह पर्यावरणविद डॉ. रवि रंजन एवं प्रवीण कुमार प्रणव के सौजन्य से उपलब्ध कराए गए।

कामना भारती के स्वागत गीत से अतिथिद्वय का स्वागत किया गया। लोकार्पण क्रम में अतिथिद्वय एवं वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्मेलन द्वार जारी सारण-5 व अरुण कुमार सिन्हा विरचित लघुकथा संकलन अरुणिमा तथा शतदल मंजरी विरचित उपन्यास श्गुड अर्थश् का विमोचन किया गया। प्रसारण-5 की पाठ प्रस्तुति युवा साहित्यकार सोमकृष्ण द्वारा किया गया।

सम्मान क्रम में डॉ. अचल भारती एवं शंकर दास ने मुख्य अतिथि को अंग वस्त्र एवं प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया। सम्मेलन की ओर से डॉ. मेहता नागेंद्र सिंह को  पर्यावरण साहित्य पुरोधा, कामना भारती को श्गीत श्री आशीष महासागर को  कविरत्न, अरुण कुमार सिन्हा को  साहित्य भूषण, शतदल मंजरी को  साहित्य रत्नश, डॉ. मेशम रिज़वी को कवि रत्न, महेंद्र निशाकर को साहित्य गौरव आदि की सम्मानोपाधि दी गई। इन्हें अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न व प्रमाण पत्र भी दिया गया।

मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में कहा- साहित्य शब्दों में गुम्फित भावनाओं, विचारों की संवेदना से युक्त लोकमंगल के निमित्त एक विशिष्ट लेखन का प्रयास है। वही विशिष्ट अतिथि ने कहा- साहित्य प्रकृति और पर्यावरण के बीच का एक ऐसा बहुमूल्य पक्ष है जो जीवन को अमरत्व प्रदान करता है।

अध्यक्ष ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते कहा- साहित्य में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हम रखते हैं, शून्य को पाटना भी अच्छी तरह से जानते हैं।संरक्षक के उद्गार  साहित्य सम्मेलन अपनी बड़ी उपलब्धियों के करीब पहुंच चुका है। यह बाँका का जगमगाता अध्याय है। तदुपरान्त कवि सम्मेलन की शुरूआत विकास सिंह गुलटी के मधुर अंगिका गीत से हुआ। एक से बढ़कर एक रचनाएं सामने आती चली गई।

ये थे उपस्थित
काव्य पाठ कर अपना प्रभाव छोड़ने वालों में लक्ष्मण मंडल, डॉ. मेशम रिज़वी, डॉ. अली इमाम, अम्बिका झा श्हनुमानश्, टॉफी आनंद, जयकृष्ण पासवान, डॉ. नवीन निकुंज, प्रकाश सेन प्रीतम, सरयुग सौम्य, खुशी लाल मंज़र, उदयेश रवि, नूतन सिन्हा शतदल मंजरी, कांति कीर्ति, अरुण कुमार सिन्हा, प्रभाकर सुमन, नंदकिशोर कर्ण श्प्रेमधनश्, सुनील झा श्सारंगश्, नवल किशोर पंडित, विनोद कुमार विमल, आशीष कुमार सागर, आशीष महासागर, नीरज कुमार सिंह, भोला सिंह श्पुष्करश्, प्रो. सुरेश बिंद, डॉ. रविरंजन, सोमकृष्ण, प्रवीण कुमार शर्मा, प्रवीण कुमार प्रणव, डॉ. अश्वनी प्रमोद  फितरत, अजय कुमार आदि थे। कवि सम्मेलन की समाप्ति पर श्री नकुल चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।  

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