समीक्षात्मक आलेख

‘मारिचिकाओं से यथार्थ तक’ श्री अजय चंन्द्रवंशी सहा.वि. शिक्षा अधिकारी,साहित्यकार कवर्धा छ.ग.

साहित्यकार परिचय- श्री अजय चंन्द्रवंशी

माता-पिता –

जन्म – 18 मार्च 1978

शिक्षा- एम.ए. हिंदी

प्रकाशन –(1) ग़ज़ल संग्रह भूखऔर प्रेम (2011)

(2) ज़िंदगी आबाद रहेगी कविता संग्रह(2022)

विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, ग़ज़ल, फ़िल्म समीक्षा, इतिहास और आलोचनात्मक आलेख प्रकाशित

सम्मान – (1)छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का राजनारायण मिश्र पुनर्नवा पुरस्कार(2019) से सम्मानित

(2)छत्तीसगढ़ी साहित्य महोत्सव रायपुर द्वारा हरेली युवा सम्मान 2021

सम्प्रति – सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, कवर्धा

सम्पर्क –राजा फुलवारी चौक, वार्ड न. 10, कवर्धा जिला- कबीरधाम, छ.ग.,पिन- 491995
मो. 9893728320

 

 

”मारिचिकाओं से यथार्थ तक”

 

मारिचिकाएँ हकीकत नही होतीं; मगर कुछ क्षण के लिए हकीकत का भ्रम अवश्य पैदा कर देती हैं।भ्रम में व्यक्ति ठोकर खाता है, तो सीखता भी है। संघर्ष के ताप से व्यक्तित्व में निखार भी आता है। अलग-अलग व्यक्तियों के जीवन संघर्ष अलग-अलग हो सकते हैं आर्थिक, सामाजिक आदि।मगर व्यक्ति स्त्री हो तो इसमे एक और आयाम जुड़ जाता है; लैंगिक!

 

मीना गुप्ता का उपन्यास ‘कितनी मारिचिकाएँ’ स्त्री संघर्ष के विविध आयामों को रेखांकित करती है। समाज में इधर तेजी से जो बदलाव हुआ है, उसमे एक महत्वपूर्ण बात यह भी हुई है कि स्त्री आत्मनिर्भर होती गई है।आत्मनिर्भरता ने उसके अंदर एक विश्वास भरा है, और अब वह एकांगी पितृसत्तात्मक मूल्यों से इंकार कर रही है। अब वह अपनी पहचान आप है; किसी की परछाई नही।प्रकृतिजन्य स्त्री-पुरुष सानिध्य में अब वह बराबरी चाहती है, जो स्वभाविक है। अब उसमे कोरी नही चेतना सम्पन्न भावुकता है।उपन्यास में सीमा के चरित्र में इसे देखा जा सकता है।

 

बावजूद इसके अभी सामाजिक मूल्य पूरी तरह समतावादी नही हुए हैं ; न ही सभी स्त्रियां आत्म चेतस हुई हैं।पीढ़ियों का अंतर है, समाजीकरण का अंतर है; मगर बदलाव तेजी से हो रहा है। स्वतंत्र चेता व्यक्तित्व संक्रामक भी होता है। सीमा के सानिध्य में ‘तरु ‘ के व्यक्तित्वान्तरण में इसे देखा जा सकता है। अब चालाकी को ‘मजबूरी’ के ओट में छुपाने के दिन लद गये। प्रेम स्त्री-पुरुष की नैसर्गिक आवश्यकता है, मगर इसके लिए अपने व्यक्तित्व को खोने की आवश्यकता नही है। यह उपन्यास हमे दिखाता है कि अपनी अस्मिता को खोने की शर्त पर कोई प्रेम नही होता।

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!