कविता देश

”अकेला शब्द” डॉ. अचल भारती वरिष्ठ साहित्यकार बांका,बिहार

”अकेला शब्द”
हॉं!
अकेला शब्द
निहत्था होता है
उसे मारो मत !
उसे फेंको भी नहीं
किसी गहरी खाई में
गिराओ भी नहीं उसे
किसी पहाड़ की चोटी से
छितराओ भी नहीं उसे
किसी समंदर की छाती पर
तनि शब्द का
समझो भी अर्थ
परिधि घूमता अर्थ
समाया होता शब्द
हॉं!
अकेला शब्द
(नि:शब्द ही होता )
निहत्था होता है
उसे मारो मत!
शब्द – हिंसा
लाखों – करोड़ों को
करती है निस्तेज
कि वक्त की
अंगुलियों का दर्द
बन जाता है सुदर्शन
कि काल हो जाता
विकराल
फिर इतिहास
कहाॅं कर पाता है
पुनर्जीवित?
किसी शब्द को !
हाॅं !
अकेला शब्द
(नि:शब्द ही होता )
निहत्था होता है
उसे मारो मत !

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