कविता

”साफ आईने की तस्वीर” डाॅं.अचल भारती वरिष्ठ साहित्यकार कवि बांका,बिहार

”साफ आईने की तस्वीर”
तुम्हारे खून में समाई
गुलामी ने
तुम्हें सबकुछ सह लेने को
मजबूर किया है
और तूने अपनी नियति पर
जैसे कुछ न करने की
कसमें खा ली है
‘ देखना मना है ‘
तख्त के पीछे
जाति, मजज्ञब,वर्ग, व धर्म के सिरहाने
बॅंटने और बांटने की राजनीति में
दाॅंव – पेंच के अखाड़े का षड़यंत्र
और लोकतंत्र के घोड़े पर
सवार होने का करिश्मा
फिर
तुम्हारी गाढ़ी कमाई की लूट
फिर
तेरे पास आते खूनी पंजे
जैसे तुम्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता
ये सब के सब
तुम्हें और तुम्हारे देश को
आगे इतिहास की खाई में धकेल
अपने- अपने विरोधियों के शिर से
वेशर्मी के साथ
ससरने में लगे हैं
जबकि तुम्हारे ही घर
दो- चार आंखें
तुम्हारे इतिहास की छाती पर बैठ
खण्ड- खण्ड में
मूंग दलने लगी है
और बाहर की
कई आंखें भी एक साथ
तुम्हारे सवार को पट्टा पढा़ने में
पता नहीं
तुम कब देख पाओगे ?
साफ आईने की तस्वीर
और अंगड़ाई ले
जमीन पर आओगे
फिर से आवाज देने के लिए |

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