कविता

मैं शब्द हूॅं! डॉ. अचल भारती वरिष्ठ साहित्यकार बांका,बिहार

( शब्द : एक उदघोष)
मैं शब्द हूॅं
तिरस्कृत
फेंका हुआ
युग- पथ पर
सवार हूॅं
इकलौता
शब्द- शब्द की
शक्ति है
मेरा सुदर्शन
मुझसे ही
सॅंजता है सत्य
सॅंवरता है सौन्दर्य
संकल्प
एक है मेरा
संतुलित सृष्टि
मैं शब्द हूॅं
तपा – तपाया !
मैं शब्द हूॅं
अर्थ की असीम परिधि से
घिरा
किसी खूंटे से
बंधा नहीं हूॅं
मुझसे है बाण
शब्दवेधी
शब्द से
शब्द वेधने वाला
मैं फोड़़ता हूॅं
काली आंख
समय की
मैं काल व्याधि से
रुग्न हो
कभी मरा नहीं हूॅ
मैं शब्द हूॅं
सधा – सधाया!

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