समीक्षात्मक आलेख

जनमानस को जागृत करने वाला भुईयाँ के कवि- डॉ. किशन टण्डन ”क्रान्ति”

 जनमानस को जागृत करने वाला भुईयाँ के कवि- डॉ. किशन टण्डन ”क्रान्ति”

( चेतन भारती )

 छत्तीसगढ़ की इस साहित्यिक धरा में अनेक रचनाकार उभर रहे हैं। सभी विधाओं में साहित्यकार अपनी कलम चला रहे हैं। 21वीं सदी में युवा रचनाकारों के सृजन का दायरा काफी बढ़ गया है। वे उन्मुक्त होकर काफी कुछ लिख रहे हैं। विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में शेयर की जा रही रचनाएँ इसकी तस्दीक करती है। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ की वर्तमान पीढ़ी के साहित्य का एक सशक्त हस्ताक्षर डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति हैं। इनके तीन काव्य-संग्रह पढ़ने का मुझे अवसर मिला।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति की कलम शानदार तरीके से अक्षरों को पिरोकर साहित्यिक ऊंचाइयों को स्पर्श करती है। जिनमें ऐसी प्रतिभा होती है, वे अपनी लगन और मेहनत के बल पर हृदय में उमड़ने-घुमड़ने वाली भावनाओं को कविता, बाल-कविता, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य, कहानी, लघुकथा, उपन्यास इत्यादि के रूप में पिरोने लगते हैं। क्रान्ति जी में यह हुनर लबालब भरा हुआ है। उनकी रचनाधर्मिता बड़े गजब की है। वे अपनी रचनाओं में निरन्तर सादगी लाकर शब्दों को स्पष्ट तौर पर सपाट रूप से अभिव्यक्त करने में अत्यन्त माहिर हैं।

 

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने प्रचुर मात्रा में पद्य के साथ-साथ गद्य की अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है। इस अर्थ में उनका साहित्यिक कैनवास काफी व्यापक है। तभी तो इतनी कम उम्र में उनकी न केवल 27 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, वरन दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशन की कतार में हैं।

 

साथ ही उन्हें डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय फैलोशिप साहित्य सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, श्री लक्ष्मण मस्तुरिया सुरता सम्मान, राष्ट्रभाषा अलंकरण सहित दर्जन भर से अधिक सम्मान एवं अलंकरण प्राप्त हो चुके हैं, जो उनकी साहित्य-साधना का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
निःसन्देह क्रान्ति जी एक प्रतिभाशाली एवं समर्पित साहित्यकार हैं। उनके द्वारा रचित साहित्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे मानव को सत्य से साक्षात्कार कराता है। उनके शब्द बिना लाग-लपेट के वार्ता करते हुए निष्पक्ष अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। “परछाई के रंग” काव्य-संग्रह में ‘कोमा‘ शीर्षक से संग्रहित कविता की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं :
अब कोमा में पहुँच चुकी संवेदना
हृदय में होती नहीं क्यूँ वेदना
हाथ जोड़ अब भी गुहार लगा रहे हैं
पता नहीं अब हम कहाँ जा रहे हैं?

 

इसी संग्रह की कविताएँ- ‘माटी से मित्रता’, ‘रोटियाँ’, ‘कलम’, ‘बचपन के गॉंव’, ‘एक नाविक सा’, ‘आग और पानी’ इत्यादि अलग-अलग परिचय देती है, जिसका उल्लेख इस छोटा सा लेख में करना सम्भव नहीं है। लेकिन इन रचनाओं को पढ़कर मुझे लगा कि ये मेरे जीवन में घटित हुई घटनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान कर रही हैं। इसलिए किशन जी मेरे से दूर होते हुए भी मेरे बहुत पास लगते हैं।
“बराबरी का सफर” काव्य-संग्रह में कुल 81 कविताएँ संग्रहित हैं। आज भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। बावजूद इंसान की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। इसे ही इस संग्रह में सशक्त स्वर दिया गया है। “वो कैसा दौर इतिहास का?” शीर्षक रचना में कवि प्रश्न करते हैं :
गांधारी से पूरे एक सौ पुत्र हुए
और कुन्ती के छह,
क्या मार दी जाती रही नारियाँ
ऐ जमाना कुछ कह।

 

सारांशतः ‘बराबरी का सफर’ काव्य-संग्रह अपने आप में अनूठा, अनुकरणीय एवं प्रेरणादायक है। यह संग्रह लोकप्रिय होकर प्रसिद्धि को प्राप्त करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है। काव्य-शैली शानदार है। इसे राग से तरन्नुम में पढ़ी जा सकती है। इस हेतु किशन जी को साधुवाद देता हूँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति के प्रथम छत्तीसगढ़ी कविता-संग्रह एवं 23 वीं कृति- “तइहा ल बइहा लेगे” छत्तीसगढ़ी के जनप्रिय गायक-कवि मस्तूरी गाँव के निवासी लक्ष्मण मस्तुरिया जी को समर्पित है। क्रान्ति जी भी इसी गॉंव से हैं। उन्होंने एक प्रशंसनीय और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस कृति की भूमिका अपनी जीवन-संगिनी श्रीमती गायत्रीदेवी जी से लिखाए हैं। ऐसा दुर्लभ उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। इस पुस्तक में संग्रहित रचनाएँ प्रेरक एवं मर्मस्पर्शी हैं। इसमें ‘छितका कुरिया’ शीर्षक रचना अन्तस की गहराई को स्पर्श करती है। चन्द पंक्तियाँ दृष्टव्य है :
गरीब के आसरय आय, अउ ओकर पहिचान;
दाई के कोरा बरोबर, अउ लगय चारों धाम।
अंगना के धुर्रा-माटी ह, बचपन के पहिचान;
खायेन खेलेन पढ़ेन बढ़ेन, एहि गरब गुमान।।

इसके अलावा इस संग्रह में शामिल रचनाएँ- ‘चूल्हा’, ‘माटी’, ‘आशीरबाद’, ‘सुख अउ दुख’, ‘छेरछेरा’, ‘भुईयाँ के भगवान’, ‘भाई-बहिनी के पाती’, ‘लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता’, ‘होरी के रंग’, ‘सुसका भाजी’, ‘नारी जात के घर’, ‘लोटा’, ‘एक बरोबर सब मनखे’ सहित एक से बढ़कर एक 77 कविताएँ संकलित हैं। निःसन्देह ‘तइहा ल बइहा लेगे’ छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास में “मील के पत्थर” साबित होंगे।
वास्तव में डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति जनमानस को जागृत करने वाला भुईयाँ के कवि हैं। उनके नाम के साथ ‘क्रान्ति’ जुड़ना उनके अन्तर्मन में उमड़ने-घुमड़ने वाली क्रान्तिकारी भावनाओं और विचारों को धरातल में जोड़ने वाला प्रवाह है। उनका साहित्य-संसार अत्यन्त व्यापक हैं, जिसमें बच्चों की किलकारी से लेकर प्राणियों के पंचतत्व में विलीन होने का सफर तक सब कुछ शामिल हैं। आने वाले समय में इनका नाम शीर्ष कवियों और लेखकों में शामिल होगा, इसमें कोई दो मत नहीं है।
 

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