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‘मेरी कलम पूछती है’ डॉ. भूपेन्द्र सोनी सिहावा चौक, धमतरी (छग) मोबाईल : 98260 66418

मेरी कलम पूछती है

श्री टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’ का साहित्य साधना के श्रृंखला में छठवीं कड़ी ( हिंदी काव्य- संग्रह ) आधुनिक काव्य कृति में एक अलग ही शैली में नवकिरण प्रकाशन बैरिहवा, बस्ती उत्तर प्रदेश से छप कर आई है । मातृभूमि की वंदना –
धर्म-कर्म का अनूठा संगम,
जहां विश्व बंधुत्व का नेह
भरा हो ज्ञान का सागर
बरसे सुविचारों का मेह
उपदेश जहां पिककंठी लय हो
हे मातृभूमि ! तुम्हारी जय हो

से प्रारंभ करते हुए रचनाकार ने बिंबों और प्रतीकों के प्रति अपनी सजगता प्रस्तुत की है । बिल्कुल ही एक नए रूप में मासूमियत से सर्जना की गंभीरता ‘अस्तित्व‘ में देखिए –
कोयले के एक टुकड़े को
हथौड़े से पीटने पर
और टुकड़े- टुकड़े हो गये
फिर एक टुकड़े को
छैनी से पीटने पर
एकदम पीस गया
पर उसने अपना
कालापन नहीं खोया
सच !
यह मैंने देखा है ।

शिल्प की चर्चा में सामाजिक सरोकार को प्रकृति के साथ जोड़ते हुए उनकी रचना –

निर्धारित ठौर पर
मैं उतर जाऊंगा
या फिर
उतार दिया जाऊंगा
दुर्ग पहुंचने पर ।

साथ ही ‘जीवन मेरा ‘ रचनाकार के स्वयं के सादगी पूर्ण जीवन का एक चित्र उपस्थित कर देती है । जो सबसे अलग करते हुए कहती है -“हमारा जीवन उसे मन भर कर जीना ही पुरुषार्थ है”
और हर जीव ( यहां एक बछड़े ) के साथ मानव जीवन का एक तुलनात्मक विमर्श –
उछलता / कूदता
बेचारा अनभिज्ञ है
यौवन/ बुढ़ापे के क्लेश से अनभिज्ञता में भी
बड़ी मिठास होती है ।

पिता के प्रति समर्पण के साथ एक नई परिभाषा –
पिता एक जादूगर जैसा
प्यार पिता का सागर जैसा’

पाठक के मन के तार को जोड़ देती है और “मेरी कलम पूछती है” कई जीवंत प्रश्नों को जैसे –
‘क्या खुश है इंद्रावती की धार’ आदि… सामने रखते हुए झकझोर देती है । जो प्रकृति के साथ गहरी अभिरुचि प्रदर्शित करती है ।

रचनाकार ने बालगीत में
ढक्कन बताता है
वृत्त की परिभाषा
विज्ञान और भूगोल
मेरा खाना- डिब्बा ‘

खेल खेल में गणित और उसके प्रयोग को जीवन के साथ जोड़ना एक सार्थक संरचना है ।

रचनाकार जनमानस के बीच प्रचलित शब्दों के साथ बहुत ही संवेदनशील है तथा भाव व कला दोनों पक्षों में बराबर चिंतनशील है-

‘पाँच पैसा वाला नड्डा मिल गया
फिर तो चर्रस -चर्रस चबाना था’

तार्किकता व भावनाओं को यथार्थ में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए आधुनिक कविता के विकास में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराते हुए हाइकु में जैसे –
‘दोनों किनारे
तीव्र नदी को देख
मौन बेचारे ।’

विश्वास सहित शुभकामनाएं श्री टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला ” जी का यह योगदान साहित्य सुधियों के मन को छू लेगा ।

 

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