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“कवि सम्मेलन में तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा चक्रवाय धाम”

बेमेतरा(सशक्त हस्ताक्षर)। सतनामधर्मियों की तपोस्थली चक्रवाय धाम जिला बेमेतरा में छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में 30 अक्टूबर 2022 को साहित्य वाचस्पति डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति की कृति- “माटी मोर मितान” सम्पादकीय साझा काव्य संकलन तथा “उजाले की ओर” कहानी संग्रह एवं “छत्तीसगढ़ पर्यटन महिमा” काव्य संग्रह का विमोचन सम्पन्न हुआ। सर्वप्रथम संत शिरोमणि गुरु घासीदास एवं उनके सतनाम आन्दोलन की याद में निर्मित सप्त मन्दिर का साहित्यकारों द्वारा भ्रमण पश्चात गुरुजी की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण कर पूजा अर्चना कर प्रदेश के दर्जन भर जिलों से पधारे वरिष्ठ साहित्यकारों एवं जनप्रतिनिधियों की गरिमामयी उपस्थिति में ग्रामवासियों की करतल ध्वनि के बीच तीनों पुस्तकों का विमोचन अभूतपूर्व उत्साह के माहौल में सम्पन्न हुआ।

छत्तीसगढ़ कलमकार मंच की द्वितीय महासभा की बैठक के पश्चात अपराह्न तीन बजे से स्रोताओं से खचाखच भरे हाल में नामी कवियों, गीतकारों, गजलकारों एवं छंदकारों की सुरमयी आवाज से इन्द्रधनुषी छटा दृश्यमान होने लगी। फिर तालियों की गड़गड़ाहट से चक्रवाय धाम निरन्तर गूंजता रहा। कवि सम्मेलन की शुरुआत करते हुए विख्यात ग़ज़लकार एवं मंच संचालक श्री जुगेश कुमार बंजारे धीरज ने कहा-
जग भर के पालन करे माटी होत महान,
महतारी सबके इही, माने सकल जहान।
माटी के महिमा बड़े सबो रतन के खान,
बढ़के हावय सरग ले, गाए सन्त सुजान।

 

 

पश्चात बतौर कलमकार मंच के अध्यक्ष तथा हाल ही में असाधारण साहित्य सेवा के लिए नेल्सन मंडेला ग्लोबल ब्रिलियंस अवार्ड प्राप्त डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने पुस्तक विमोचन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश के 55 साहित्यकारों के साझा संकलन “माटी मोर मितान” का मकसद कलमकारों की आवाज को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे कि वे माटी का मोल समझ सकें। उन्होंने अपनी इस भावना को इन शब्दों में स्वर दिया-
इहाँ के माटी चोवा चंदन, करौं एकर परनाम रे।
सरल भाखा म अही कहौं, माटी मोर मितान रे।।
जघा-जघा बिरछा लगावव, ए बड़ पबित्तर काम रे,
माटी के महिमा जबड़ भारी, हो न सकय बखान रे।।

 

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने आगे कहा कि माटी की महिमा महान है, क्योंकि इसके बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती। “छत्तीसगढ़ पर्यटन महिमा” कृति का ताना-बाना भी इसी माटी से जुड़ा है, जो पर्यटकों को पर्यटन केन्द्रों की भौगोलिक दूरी, प्रमुख विशेषताएँ, उपलब्ध सुविधाएँ इत्यादि के बारे में सरल काव्यमय अभिव्यक्ति के द्वारा विविध रंग बिखेरती है यथा-
अम्बिकापुर से पैंतीस मील दूर बिसर पानी गाँव।
पत्थर नीचे से जलधारा निकल ऊपर की ओर बहाव।।
ठण्ड के मौसम का नजारा बड़े सुहावने दिखते।
मैनपाट की वादियों में बर्फ की चादर बिछते।।
भारत का नियाग्रा कहलाता चित्रकूट जलप्रपात।
मंत्रमुग्ध सा रह जाओगे, अगर देख लो इसे आप।।

 

 

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कवि सम्मेलन को गति देते हुए मंच संचालक ने कहा कि संग्रह में शामिल कवियों के हृदय में पर्यावरण संरक्षण के लिए छटपटाहट है। वे चाहते हैं कि इस हेतु जन-जन में अलख जगे, ताकि वे पर्यावरण को स्वच्छ बना सकें। मसलन :
माटी के सेहत सुधारो, माटी ह गोहरावत हे।
रासायनिक खाद ले अब, धरती छटपटावत हे।
पेड़ रोपौ गाय पालौ, पावव अमरीत चीज जी,
खेती खार घलो लहलहाही, बांच जाही जीव जी।

 

 

दुनिया के मजदूरों और किसानों के माटी के प्रति लगाव को मनमोहक शब्दों में स्वर देते हुए विख्यात कवि अनिल जांगड़े ने इन शब्दों में स्वर दिया-
तोर जांगर देख पथरा काँपय, बंजर भुईयाँ जागय,
तोर माटी म पाँव परै तव, धरती सबो हरियावय।
जांगर पेरत तन तपाथें, माटी मा सोन उगाथें,
खून पछीना टप-टप चुहे, चंदन कस महमहाथे।

 

कवि सम्मेलन को गति देते हुए तालियों की करतल ध्वनि के बीच वीर रस सम्राट जगतारन प्रसाद डाहरे ने संचालन का माइक थामते ही हवा का रुख अपनी इन पंक्तियों के साथ मोड़ दिए-
तन पोठ धरे ले का होथे, मन छोट करे ले का होथे?
जीते बर हे त लड़ बने, बस गोठ करे ले का होथे??
रायगढ़ से पधारे कवि तिलक तनौदी ने मानव अस्मिता के प्रति जागरण का शंखनाद करते हुए कहा-
उठव सतनामी करव तियारी, धरमपुरा के अगुवाई बर,
उलगुलान भरव नस-नस म, प्रशासन के आँखी उघराई बर।

 

 

पश्चात, बेमेतरा से आए हुए कवि कमल जांगड़े ने तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य शेर के समान दहाड़ते हुए अपनी भावनाओं को इन बेहतरीन शब्दों में स्वर दिया-
कोन बैरी ह आँखी देखाही, काकर हवे मजाल रे।
हम भारत के मूल बसींदा, बाबा साहब के लाल रे।।
विख्यात छन्दकार ओमप्रकाश ओम ने इस जागरण के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए जनमानस को सतर्क कर नवा बिहान का सुनहरा प्रकाश इन पंक्तियों के माध्यम से बिखेरा-
बिहानिया होगे रात पहागे, नींद ले अब तँय जाग रे।
पाप करम झन करबे तैहाँ, लगही चोला म दाग रे।।

 

 

बोरिया से पधारे कवि लछन दास टण्डन ने जागरण के सन्देश को चरम तक ले जाते हुए करतल ध्वनि के बीच देश की रक्षा खातिर लोगों के रग-रग में उत्साह भरते हुए देश का प्रहरी बनने के लिए गीत के माध्यम से ये सुन्दर सन्देश दिए-
जाना पढ़े बर इस्कुल, धर ले पुस्तक कॉपी रे।
पढ़-लिख के बनबे तैहाँ बेटा, देश के सिपाही रे।।

 

 

हायर सेकेण्डरी स्कूल चक्रवाय धाम के विशाल हाल में तालियों के शोर के बीच मंच संचालक जगतारण प्रसाद डहरे ने डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति के निरन्तर पुस्तक प्रकाशन और जन-जन को लगभग तीन हजार पाँच सौ पुस्तक मुफ्त में वितरण की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए पुस्तक विमोचन के महत्व पर अपने चिर-परिचित अन्दाज में इन शब्दों में समा बांधा-
नांव शोर कई कोसन होथे, नांव कवि के रोशन होथे
खूब खुशी के बात ये तो, पुस्तक आज विमोचन होथे।
गीत कविता लेख लिखइया, अइसे कवि कलमकार हावै,
ये सबके सरेख करईया, बड़ आदर के हकदार हावै।

 

 

राज्य स्तरीय विशाल कवि सम्मेलन नवलपुर-ढारा में अपनी कलम की आभा से जन-जन में मशहूर कवि और गीतकार अशोक कुमार की मर्मस्पर्शी जागरण गीत ने विशाल जनसमूह को सोचने पर विवश कर दिया-
मैं का कारँव भगवान, तैं मोला बइला बनाएव,
आँखी म टोपा बन्धे, अउ घानी म फन्दाएँव।।

 

 

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच संचालन की बागडोर पुनः सम्हालते हुए जुगेश बंजारे धीरज ने माँ की ममता और नारी की महिमा को एक अनोखे अन्दाज में इन शब्दों में प्रस्तुत किया-
महतारी मया के सागर, मया अब्बड़ करथे,
लइका बर जीथे महतारी, लइका बर मरथे।
कोन तोलही माँ के ममता, देव घलो भजथे,
करे निरादर महतारी के, तव छेना जस खपथे।।

 

 

छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के नवनियुक्त कोषाध्यक्ष कोरबा जिला से आए विख्यात साहित्यकार वेदराम जाटवर वेदांज ने नारी के समर्पण की एकतरफा तारीफ़ की। उनकी ये पंक्तियाँ इसकी सनद हैं-
देख तो नारी के सहनशक्ति ला, जाड़ म कतेक कँपकँपावत हे।
बेरा नइ उये हे तब ले, मांजे बर बरतन मड़हावत हे।

 

 

इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए तालियों के उत्साहवर्धन शोर के बीच कवि भुवन दास जांगड़े ने नारी के सम्मान को जबरदस्त स्वर दिया। ये पंक्तियाँ इसकी साक्षी हैं-
नारी के सम्मान करबे, काया के जान लेबे दाम।
सत अहिंसा परहित जइसे, नइये गा कोनो काम।।

 

 

तभी विख्यात गजलकार मनोज खाण्डे मन की इस ग़ज़ल ने जबरदस्त तालियाँ बटोरी। वाह- वाह और बहुत खूब जैसे शब्दों से समूचा हाल गूंजता रहा-
यूँ सूखे खेतों में पसीना बहाया जा रहा है,
के जैसे मुर्दों को फिर से जगाया जा रहा है।
मत पार करो नदी अभी धारा बहुत तेज है,
हुनर को कुछ इस तरह से दबाया जा रहा है।।

 

 

प्रसिद्ध व्यंग्यकार एडवोकेट मणीशंकर दिवाकर गदगद के माइक थामते ही तालियों की गड़गड़ाहट एक बार फिर गूंज उठी। उन्होंने अपने चिर परिचित अन्दाज में इन पंक्तियों द्वारा श्रोताओं को खूब गुदगुदाया-
मैं लिखता हूँ समाज की अच्छाई पर, समाज में व्याप्त बुराई पर।
मैं लिखता हूँ बदलती हुई तस्वीर पर, और इंसानों की जमीर पर।।

 

 

छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संरक्षक बिलासपुर से पधारे वरिष्ठ कवि एवं सामाजिक चिन्तक डॉ. गोवर्धन ने चक्रवाय धाम की दशा पर चिन्ता व्यक्त करते हुए सामाजिक संगठन एवं एकता बनाए रखने का आह्वान किया। उन्होंने करतल ध्वनि के बीच ये पंक्तियाँ पढ़ी-
विशाल नील गगन के नीचे, हम वासी इस धरातल के।
हासिल करने हों तो एक होओ, उर-अन्तस अतल से।।

 

 

विदा हो चुकी शाम, अपने घोंसलों की ओर लौट चुके पंछी, आसमान में टिमटिमाते तारों और रंग-बिरंगी रोशनियों के बीच विशाल हाल में गूंजते तालियों के मनभावन शोर में कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के अध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ शासन के उपसंचालक डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए तमाम साहित्यकारों एवं व्यवस्थापकों को हार्दिक धन्यवाद देकर विनम्र आभार व्यक्त करते हुए जीवन की कटु वास्तविकता को इस प्रेरणादायी रचना के माध्यम से स्वर दिया-
इस दुनिया में कौन नहीं मरता है,
मौत के सामने भला किसका जोर चलता है?
मरने में कोई मनाही नहीं
मगर समय से पहले जानी नहीं
उतना तो कर जाओ जो जरूरी सपने हों
उनके लिए कुछ सोचो, जो तेरे अपने हों
साँसों का मांझी अपनी राह पकड़ता है,
मौत के सामने भला किसका जोर चलता है?

चक्रवाय धाम में कार्यक्रम के आखिरी तक श्रोताओं की खचाखच भरी भीड़ को देखकर और तालियों की गड़गड़ाहट को सुनकर एक बार फिर यह मिथक टूट गया कि कवि सम्मेलन की लोकप्रियता केवल शहरों तक सीमित है। वस्तुतः साहित्य के प्रति जन-गण-मन की रुझान बढ़ी है। छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के बैनर तले यह सफलतम कवि सम्मेलन इस बात का स्पष्ट साक्षी है।

 

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