साहित्यकार परिचय- श्री चन्द्रहास साहू
जन्म – 30.12.1980
शिक्षा – बी.एस.सी.(कृषि)
माता-पिता- …………………
प्रकाशन – (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह )तिरबेनी ,तुतारी, करिया अंग्रेज
पुरस्कार/सम्मान- चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,हिसार हरियाणा में लिखित नाटक का निर्देशन प्रस्तुतिकरण व प्रथम पुरस्कार अर्जित । बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी, उत्तर प्रदेश में नाटक प्रस्तुतिकरण । -इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्वालय रायपुर छत्तीसगढ़ के मंच में नाटको का निर्देशन व प्रस्तुतिकरण । अगासदिया मुंशी प्रेमचंद सम्मान, भिलाई (छ.ग.) समाज गौरव सम्मान, रायपुर (छ.ग.) नई कलम कथाकार सम्मान, नवापारा राजिम (छ.ग.) कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद सम्मान, जिला हिन्दी साहित्य समिति धमतरी (छ.ग.)
सम्प्रति -ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी कृषि विभाग; जिला-धमतरी (छ.ग.)।
कीट विज्ञान विभाग;इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.) में अध्ययन
सम्पर्क – ग्राम -जोरातराई ,पो -सिलौटी, तह -कुरूद, जिला- धमतरी (छ.ग.)
पिन 493663
वर्तमान पता – चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
”छलडहीन”
सलमिल – सलमिल रस्दा। कन्हार माटी बिच्छल। गउहा डोमी कस चिकचिकावत हे। फेर कतको झन अवइया- जवइया मन हलु – हलु गोड़ ला मड़ाके आगू कोती रेंगत हावय । नंगरिया हा खांद मा नांगर बोहो के। पनिहारिन हा मुड़ी मा पानी , पहाटननिन हा झउहा भर कचरा ला बोहे मुड़ी मा तब पहाटिया हा खुमरी पहिरे बांसरी बजावत हावय ,गइया चरावत हे। बइगा हा अब्बड़ सांप – बिच्छी, मरी – मसान , भूत -परेत उतारे के मंतर जानथे फेर नाहर के पार ला उतरे के बिद्या नइ जाने । ओखर बोकरा मुड़ी के लउठी घला बोहो नइ सके बइगा के गुरूपन ला ।
“ये दे …. ऐ…! बचा देवलाल मोला !”
बइगा चिचियाइस अऊ ओखर गोड़ छलडीस अऊ जझरंग ले गिरगे । पार ले ढ़ुले लागिस । आगू मे रेंगइया मोटियारी लहुट के देखिस अऊ “खीःखीःखी :….. !”
कठल- कठल के हासे लागिस । बइगा के जम्मो ओन्हा हा चिखला माटी मा सनागे । करिया, सिरतोन डर भूतहा लागिस ।
“का हासथस टूरी … ? गिजगीजही नही तो । ” बइगा हा लाल आंखी देखावत किहिस।
हसइया मोटियारी अब तरी – तरी हासे लागिस अऊ थोकिन बेरा मा कलेचुप होगे। सौखी , चोरिया , जाल बोहोय पतरेंगा जवनहा देवलाल हा बइगा ला उठाइस अऊ मरवा ला धरके पार मा चढ़ाइस ।
आगू – आगू देवलाल रेंगे लागिस अऊ पाछू – पाछू डलिया बोहे मोटियारी । डलिया मा बासी पेज अऊ मनकापड़ । दुनो परानी बंधान तरिया के तीर मा अमरगे। ऐती – ओती जम्मो कोती ला देखिस मोटियारी फुलमत हा अऊ बइगा गिरिस तौन ला सुरता करके अऊ अब्बड़ हासे लागिस । हासत – हासत डलिया ला घला उतारिस अऊ देवलाल के खान्द मा झुलगे । देवलाल ला करेंट मारे सही लागिस अऊ थोकिन पाछू घुचिस।
“कइसे बही बरोबर हासथस ओ ! ”
देवलाल खिसियाइस।
“नाहर पार ले उलन के… का जिनिस तेमा गिरिस… ? पियर – पियर …..खी…खी.. ।”
अऊ आगू नइ गोठिया सकिस हासी के मारे फुलमत हा। देवलाल घला हासे लागिस ।
“ तोला गिर जाही कहिके डर्रावत रेहेव फुलमत ! ”
” दाई ददा हा सबले आगू हमला बिच्छल मा रेंगे ला सिखोथे नख ला गडि़या के । ढ़ीमरीन मन कभू नइ गिरे चाहे रस्दा के बिच्छल आए कि जिनगी के बिच्छल। इही गोड़ अऊ हाथ के नख हा कभू नइ गिरन देवय । कतको मनचलहा ला चिमटे हावव इही नख मा।”
आंखी ला नटेरत नख ला देखावत किहिस अऊ फेर कठल -कठल के हांसे लागिस फुलमत हा। देवलाल घला हांसे लागिस । फुलमत के सिकल ला देखत रिहिस आनी – बानी के रंग दिखत रिहिस ओखर सिकल मा ।
नरवा के मतलाहा पानी नान्हे – नान्हे पउधा घपटे हावय । तभो ले अपन सौखी अऊ जाली ला पेले लागिस । फुलमत घला कछोरा भिरके नरवा मा उतरगे । बड़का नरवा के छोटका डबरा जिहा पानी थिराये हे अब चभरंग- चभरंग मतलाय लागिस । दुनो परानी मछरी धरे के बिद्या ला जानथे तभे तो ओखर डेकची मा मछरी मन खलबिल – खलबिल करत हावय ।
माटी के ममहासी, तब मइलाहा पानी के बिसरई । सावर बरन , दुहरी देहे फुलमत के । कजरारी आंखी । चमकत टिकली अऊ तेलछही सिकल, चिखला छिताये। पानी मा भिंजे काया मा चिपके लुगरा ओन्हा। खीरा बीजा कस दांत, जम्मो ला देखते देखत छाती के झुलत रूपिया माला मा अटकगे देवलाल के आंखी हा । चारो खुट निझमहा घला हावय। मरवा ला धरके अपन कोती तीरे के उदीम करिस देवलाल हा । … .फेर फुलमत हा तो छलडहिन आए – मछरी कस । ओला कोनो नइ धर सके । हासी ठिठोली करत अब्बड़ धरे के उदीम करिस देवलाल हा फेर नइ अमराइस फुलमत हा । … अऊ करंज के छइयां मा बइठगे ।
फुलमत आइस तीर मा , खांध मा हाथ ला ओरमावत बइठिस। डबरा ला छित के फेर मछरी धरिस अऊ संझकेरहा घर लहुटगे।
’’कइसे झटकुन आ गेस रे ? परलोकिया हो ! डौकी के पाछू नइ छूटत हे। लुगरा ला खुंदत-खुंदत रेंगथस। निसरमा रंधनी कुरिया मा बइठके आगी बारबे का रे….?’’
पचासी छेयासी बच्छर के डोकरी हा तसमा ला टांगत लउठी ला थेभत किहिस ।
देवलाल हा सुटूर – सुटूर बखरी कोती रेंग दिस जाली अऊ फांदा फटका ला धरके । फुलमत घला घर मा खुसरगे । देवलाल के जम्मो उछाह नंदागे। फुलमत गुने लागिस। बुढ़ी सास आए अब्बड़ बखानथे । ठाड़ गोठ गोठियाथे। कोनो बेरा ला नइ छोड़े । कुरिया मा जाके खीःखीः …हासे लागिस फुलमत हा गोठ ला सुरता करके ।
’’जादा गिजिर – गिजिर झन करो रे गिजगिजहा हो ! डोकरी अऊ बखाने लागिस ।”
फुलमत कलेचुप होगे… आरूग कलेचुप….। मसाला ला कुट पीस के, पड़हिना मछरी ला सुघ्घर छांट निमार के आमा के खोटली डारके रांधे हावय फुलमत हा।
“मही के राहत ले आमा खोटली मा रंधवाये हावय डोकरी हा । ”
फुलमत फुसफुसाइस । अब मुचकावत जम्मो कोई ला जेवन परोसिस ।
“ना नून, ना मिरचा लागे हे कइसन के साग रांधे हस ते ..? तोर नचकारिन दाई हा नइ सिखोये हावय का रांधे गढ़हे ला ? ढ़ीमरीन घर जनम लेये हस तभो ले मछरी रांधे ला नइ आवय तोला ! ढ़ीमरीन आए कि बामहीन आए रे…?. देवलाल …! तोर डौकी हा ! ”
डोकरी दाई हा बमियाये लागिस अऊ कचर-कचर मिरचा ला चाब डारिस । फुलमत कलेचुप रिहिस अऊ डर्रावत कांपत रिहिस ।
पांच दिन होये हावय फुलमत हा ये घर मा बहुरिया बनके आये हे तौन हा । पहिली बिहाव के दु महीना पाछू डोंगा खपलागे अऊ फुलमत के गोसाइयां मरगे रिहिस । देवलाल के बिहाता घला अम्मल मा रिहिस अऊ हरू – गरू के बेरा मा लइका संग भगवान घर रेंग दिस । जात सगा मा गोठ बात होइस अऊ फुलमत ला चुरी पहिरा के ले आनिस देवलाल हा ।
कंडिल के झुंझकुरहा अंजोर मा फुलमत के सिकल चमकत रिहिस।
‘‘आना मोर कोती ! ”
देवलाल अपन कोती तीरे लागिस फुलमत के मरवा ला धरके । फेर फुलमत तो छलडहीन आए …जनम के छलडहीन । मोंगरी मछरी कतको छलडय , कतको कांटा मारे फेर ढ़ीमरा बाबू हा अपन बिद्या ले मछरी ला धर डारथे । देवलाल हा मोंगरी कस फुलमत ला पोटार लिस । दुवारी मा ममहावत डुहरु धरे मोंगरा घला अब खुलखुल हासत रिहिस अऊ फुलमत घला । वहु हा मया के पियासी रिहिस। हावा के झोंका आइस । कपाट बाजिस अऊ डलिया मा रखाये मछरी के बिसरई कुरिया मा समागे अब । पानी के अतरे ले बाढ़े दंद कुहर अऊ काया ले निकले हलु –हलु पसीना के ममहासी, कुरिया मा भरगे । निसा करे लागिस दुनो ममहासी हा । अऊ मोंगरा के ममहासी…? देवलाल के आंखी मा तो दू बाटल के निसा रिहिस। फुलमत घला निसा मा उतरे लागिस, मया के निसा मा। उछाह के निसा अऊ काया के मिले के निसा…. खीःखीः ….फुलमत के हासी के आरो आइस अऊ कंडिल बुतागे।
“ डौका पोटार के सुते राहव रे टुरी टुरा कुम्भकरन पिला हो । बेर उवे के आगू नरवा डोड़गा मा जाबे तब अमराबे मछरी ला । सुतबे ते बोहाबे …रे नांनजात । ”
खटखट मोहाटी के कपाट बाजिस अऊ दाई के करू गोठ घला ।
फुलमत झकनका के उठिस ।
“ये डोकरी के तो रोज बखनई आए। आज तो बिहनिया ले बखानत हे ।”
फुलमत फुसफसाये लागिस अऊ देवलाल ला उठाइस । देवलाल कुनमुनाइस। अऊ फेर कथरी ला ओढ़ के सुतगे ।
’’ जिनगी भर सुने ला लागही फुलमत ! डोकरी दाई के गोठ ला। ओहा अमरित पी के आए हे । अम्मर हे ओहा ! दाई ददा रेंग दिस फेर ….? ओहा टन्नक हावय ।“
देवलाल कथरी के तरी ले किहिस अऊ हाथ गोड़ ला चिंगोर के सुतगे ।
खलबील – खलबील मही बिलोय लागिस फुलमत हा। फेर कइसे हेरे लेवना ला बाप पुरखा कभू अइसन बुता नइ करे हे।
“ऐ ओ कइसे मही बिलोवव ?
देवलाल ला आंखी रमजत आवत देख के किहिस फुलमत हा। मही बिलोय ला नइ आए तोला ….?
ही..ही .. देवलाल खिल्ली उड़ाये लागिस, मुचकावत मथनी ला धरिस अऊ भकरस-भकरस मही बिलोय लागिस । खटखटाके मही के कुड़रा हा तड़कगे अऊ दु कुटका होगे। जम्मो मही गवागे । देवलाल सुटुर -सुटुर रेंग दिस अऊ डोकरी दाई के करू गोठ ला फुलमत सुनिस ।
“ बबा जात के बुता ला करे कर रे । माईलोगिन जात के बुता मा बल देखाबे तब अइसना होही ”।
डोकरी दाई किहिस अऊ खोर कोती निकलगे ।
गांव के दाऊ अऊ ओखर लंगरवा मन आइस आज अऊ मंझोत के खटिया मा बइठगे ।
“राम राम दाऊ ! ”
जम्मो कोई ला पायलगी करिस अऊ बीड़ी माखुर बाटिस देवलाल हा ।
“कस रे ! टुरी ला कब चुरी पहिरा के लानेस ते आरो नइ करेस।”
दाऊ हा मेछा ला अइठत अऊ देवलाल ला दबकावत किहिस ।
” अ…. अंजोरी पाख मा लाने हव दाऊ ब… बारा दिन होवत हे ।”
अंगरी ला गिनत किहिस देवलाल हा ।
“ बारा दिन ले टूरी ला लुका के राखे हस हीरा मोती जड़े हे का रे…. ओखर काया मा ? चोरा के लेग जाबो का रे तोर बाई ला । ”
ओखर लंगरवा मन आरी – पारी ले किहिस। बिलवा दाऊ अपन मुड़ी के तेल चुचवावत चुन्दी ला सकेलिस अऊ कठल- कठल के हासे लागिस ।
” अरे टूरा ! बने सुन गौटनिन हा घर मा नइ राहय काली । तोर बाई ला चाउर निमारे बर पठोबे ।” दाऊ हा धमकावत किहिस ।
“ ह हव दाऊ !”
देवलाल मुड़ी नवाके हुकारू दिस ।
‘‘कइसे हव कहिथस …..! जानथस तेहां दाऊ मन काबर बलाथे चाउर निमारे बर नेवनीन ला …? तेहां का जानबे भोकवा नही तो..!”
फुलमत हा देवलाल ला खिसियाये लागिस। ओहा आगी के लुठा लेगे बर रंधनी कुरिया मा आइस तब ।
‘‘दाऊ मन हा माइलोगिन ला बिगाड़ देथे चाउर निमारे ला बलाके।‘‘
फुलमत किहिस ।
“अय…!”
.देवलाल के मुहू उघरा रहिगे। दाऊ के आरो ला पाके आगी के लुठा ला धरके फेर चल दिस देवलाल हा डेरउठी मा ।
‘‘ कइसे बे… चुरी पहिराये डौकी हा अब्बड़ लटारा मारथे …? तोला मारथे कि नही रे ! रातकुन ..?”
दाऊ हा छाती फुलोवत बीड़ी सपचावत गुंगवा छोड़त किहिस । ओखर लंगरवा मन खीः खीः हासे लागिस अऊ देवलाल हा लजावत ठाढ़े रिहिस।
जम्मो गोठ ला फुलमत सुनत रिहिस रंधनी कुरिया ले। देवलाल के खिल्ली उड़ई तब दुनो परानी बर निसरमा गोठ …. ।
फुलमत के रिस तरवा मा चढ़गे लहु के संचार बाढ़गे …। “अइसना निसरमा होथे का इहा के दाऊ मन..? माईलोगिन के मरजाद ला नइ जाने ? रोगहामन गोसाइया के आगू मा मोर बर लार टपकावत हावय। जाके जोम देव का.. ? फेर गोसाइया बर बैर तो नइ राखही… ? बेरा – कुबेरा मा इही दाऊ मन बुता मा ठाढ़े रहिथे… । अइसन लरहा दाऊ ले निपट लेबो ।”
आनी -बानी के गोठ गुने लागिस। फुलमत हा । जुड़ सांस लिस। दुरपति हा दुसासन बर आगू ले जोम देतिस ते चीर हरन नइ होतिस… । येहा कलजुग आवय कोनो किसन भगवान नइ आवय बचाये बर .. । खुदे ला लड़े ला परही मरजाद बचाये बर ? फुलमत के अंतस मा अब्बड़ गरेरा चलत रिहिस।
“कस बे देवलाल ! बताना छटारा मारथे कि नही रे तोर डौकी हा… खीः खीः..!”
गिजगिजावत अऊ किहिस दाऊ हा।
“ हाव मारथो ना ! कोनो मरदजात हा रूआ तक ला छुही ते लटारा मारही अब माइलोगिन हा। जबाना बदलगे हावय दाऊ । अब झन देखा अपन दाऊ गिरी ला ।”
फुलमत अगियावत किहिस आके । दाऊ अऊ लंगरवा मन बोटोर – बोटोर देखे लागिस ।
“मोला कभू धरे के उदीम घला झन करबे छलडहीन आवव, जनम के छलडहीन । कांटा भर मारथो। बीख वाला कांटा फेर धरन नइ देवव …मोंगरी मछरी कस ।”
फुलमत पड़पीड़ – पड़पीड़ किहिस अऊ हफरे लागिस । दाऊ ठाड़ सुखागे । काया के पसीना ला पोंछिस । बीड़ी ला रमजिस अऊ मुर्रा ला खाये बर धरिस । फुलमत फेर किहिस।
‘देखके खाबे दाऊ ! पचत ले। नही ते बवासीर हो जाही। कतको तोप ले तभो ले फेर उघर जाही तोर करनी हा । बइठ सकबे न ठाढ़े हो सकबे ।”
मुर्रा ला छोड़ दिस अऊ दाऊ हा करेंट लागे सही ठाड़े होगे।
’’सिरतोन काहत हावय दाऊ फुलमत हा। अब मोर गोसाइन कोती मइलाहा आंखी ले झन देखबे। देवलाल घला जोमे लागिस । दाऊ अऊ ओखर लंगरवा अब धकर- लकर उठिस अऊ पल्ला भागगे । डोकरी दाई घला डेरउठी ले देखे सुने लागिस कलेचुप फुलमत के बरन ला । करिया लुगरा मा कंकालिन दाई लागत रिहिस सौहत …। बिकराल, डरभुतहा.. । डोकरी कांप गे अपन लऊठी ला थेभिस अऊ सुटुर – सुटुर घर मा खुसरगे।
“ बने मजा चखायेस दाऊ ला आज । ”
देवलाल मुचकावत किहिस अऊ फुलमत ला धरे लागिस । फुलमत तो छलडहीन आए जनम के छलडहीन…।
खीःखीः …अपन कुरिया मा खुसरगे अऊ……… कंडिल बुतागे ।