साहित्यकार परिचय-श्रीमती पुष्पलता इंगोले
जन्म- 24 दिसम्बर 1948 श्योपुर(स्टेट ग्वालियर) म.प्र.
माता-पिता – स्व. श्री जे.जी.इंगोले, स्व.श्रीमती स्नेहलता महाडीक। पति-श्री ए.आर.इंगोले(सेवानिवृत्त प्रोफेसर)
शिक्षा-एम.ए.(राजनीति)बी.एड.
प्रकाशन- छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल हेतु पाठ्यपुस्तक लेखन(9वीं,10वीं) सामाजिक विज्ञान,विभीन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां, निबंध एवं कविताओं का प्रकाशन।
सम्मान- प्रांतीय दलित साहित्य समिति,जिला इकाई धमतरी।श्रीसत्य साई समिति एवं महिला मंडल रूद्री धमतरी द्वारा सम्मानित। वृहन्न मराठा समाज नागपुर द्वारा निबंध लेखन में प्रशस्ति पत्र। सदस्य- एनसीईआरटी,छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम।
सम्प्रति- सेवानिवृत्त प्राचार्य,दाजी मराठी उच्चतर माध्यमिक शाला, धमतरी
”मृदु सम्भाषण की कला”
मृदुभाषी होने कला से तात्पर्य है-वार्तालाप करने की कला सीखना। वास्तव में यह कला समाज,परिवार,संस्था व देश सभी के लिए सफलता के द्वार खोलती है। मेरे विचवार से इस कला को सीखना अति आवश्यक है। पर आश्चर्य है कि आज तक हमारी शिक्षा प्रणाली के पाठ्यक्रम इससे अछूते हैं। इस कला को सीखना व इसको पाठ्यक्रम में शामिल करना एक सहयोगी समाज बनाने के लिए अति आवश्यक है।
मृदुभाषी, प्रसन्नचित व्यक्ति को कहीं भी अनुशंसित पत्र ले जाने की आवश्यकता नहीं होती। वह अपनी पहचान स्वयं होता है। विद्यालय और महाविद्यालयों में शिक्षक व प्रवक्ता दूसरे कई विषय पढ़ाते हैं, कई भाषाएं सिखाते हैं पर ” How to Speech”इस कला को वे बिल्कुल भूल जाते हैं। यह अपने विचारों को प्रकट करने का ज्ञान है। अपनी बात समझाने की सही विधि है।
यह एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाने की कुंजी है। जिसकी सहायता से व्यक्ति सुगमता से विवादास्पद स्थिति में भी पथ बना लेता है। अधिकता देखने में आता है कि व्यक्ति जो वार्तालाप करते हैं, उनकी उन्हें पूरी भिज्ञता नहीं होती। केवल वे यहां वहां से शब्द ज्ञात कर वार्तालाप करते हैं। भले ही व्यक्ति किसी और बात में योग्यता प्राप्त कर लें किंतु वार्तालाप में योग्यता न हो तो दूसरी योग्यताएं बादलों में चांद के समान धुंधली नजर आती है।
कैसा भी व्यवसाय हो, कैसीे भी योग्यता हो किन्तु वार्तालाप करने का सही तरीका न हो तो उन्हें सफलता पूरे सम्मान के साथ नहीं मिलती है। यह वास्तविकता है कि व्यक्तियों की सफल होने का दायित्व उनके मृदुल व सुंदर ढंग से प्रस्तुत वार्तालाप की योग्यता पर ही निर्भर करती है। कई व्यक्ति उच्च पद पर अपनी वार्तालाप की योग्यता की वजह से ही पहुंचते हैं। सच पूछिए तो जिन्हें वार्तालाप की कला आती है वे युक्तिपूर्ण बातों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर मनमोहित कर शांति की स्थापना में सफल होते हैं।
वार्तालाप करने की कला ही ऐसा गुण है जो सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इसके एक अच्छे उदाहरण हैं। वार्तालाप में व्यक्ति स्वयं के अनुभव व मस्तिष्क का पूरा प्रयोग करता है। वार्तालाप करते ही हमें व्यक्ति के व्यक्तित्व की गहराई एकदम से ज्ञात हो जाती है कि वह कहां तक सही ढंग से शिक्षित है। कितनी यात्राएं की है, कितनी किताबों का अध्ययन किया है, कितने लोगों के सम्पर्क का लाभ उठा रहा है। वार्तालाप करना बड़ा शिक्षाप्रद होता है अतः उसके लिए अच्छे ढंग से अपनी बात रखने का प्रशिक्षण भी जरूश्री है। मृदुल वार्तालाप के लिए विशाल हृदय व स्वतंत्र विचारवान होना भी आवश्यक है। संकीर्ण विचार होने पर अविकसित भाव प्रस्फुट होते हैं। अतः सुनने वालों की पूरी सहानुभूति नहीं मिलती है।
कई लोग वार्तालाप या भाषण करते समय शब्द विन्यास व वाक्य रचना में संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं। दो वाक्यों के मध्य सही तारतम्य नहीं होता। फलतः वे जो कहना चाहते हैं वह प्रस्फुट नहीं हो पाता है। अपने आपको सही ढंग से अभिव्यक्त करना तथा संभाषण द्वारा अपनी ओर आकर्षित करने की कला अच्छे ढंग से नहीं कर पाते हैं। इस हेतु विशाल शब्दकोष,नये शब्दों को सीखने की लगन नितांत आवश्यक होती है, तभी व्यक्ति थोड़े शब्दों के बावजूद भी श्रेष्ठ वार्तालाप कर सकता है। कई व्यक्ति अरूचिकर वक्ता होते हैं इसका कारण यह है कि वे हर समय अपनी ही बातों को कहते हैं, बार-बार एक ही बात को दोहराते हैं। अतः ऐसे व्यक्ति से श्रोतागण तंग आ जाते हैं।
अतः यदि आप चाहते हैं कि आपकी वार्तालाप से लोग तंग न हो तो कम शब्दों में अपनी बात करने की मृदुभाषी कला अवश्य सीखें। सदैव बोलने से पहले व्यक्ति मनन करें, कि उसे क्या कहना है, कितना कहना है, कैसा कहना है। तभी श्रोतागण समझ पायेंगे तथा उलझेंगे नहीं। अपने विचार हमेशा शार्ट एंड स्वीट तरीके से कहने की कला का अभ्यास करें।
वार्तालाप इस प्रकार का होना चाहिए कि भावों का सार स्पष्ट व सीधा समझा जा सके। तेज स्वभाव में बोलना, लोगों की ओर तिरछी नजर से बार-बार देखना,श्रेष्ठ व सभ्य वार्तालाप को इंगित नहीं करता। वार्तालाप में केवल इतने ही स्वर रहे जिसे आप संबोधित हैं वह समझ सकें।
कई लोग दु्रतगति से बोलते हैं, वे क्या कहना चाह रहे हैं समझ से परे होता है। वार्तालाप सदैव स्पष्ट और गंभीर हो तथा ध्यान रहे कभी किसी के विरूद्व बोलें और आलोचना सुनने से न डरें क्योंकि आलोचना सचेतक होती है। आलोचना से डरिए मत, गर्व से सिर ऊंचा करके परिस्थितियों का सामना करना, उत्तर देने के लिए अपने आपको तैयार रखिये। बर्नार्ड शॉ लिखते हैं कि –” They say, hwat they say? Let them say, Mever amswer upir crotocs, go forward,activitity costs nothing but buy everything” अतः शालीनता वार्तालाप में जरूरी है।
कभी भी दो व्यक्ति के वार्तालाप के मध्य टांग मत अड़ाइए, जब तक आपकी राय न मांगी जाये। कई व्यक्ति बोलने के लिए प्रसिद्व होते हैं तथा उनके बोलने की विधि ऐसी होती है कि वे वार्तालाप नहीं कर रहे हैं बल्कि सम्मुख खड़े व्यक्ति के ऊपर सवार होकर अपनी बात कह रहे हैं। ऐसे व्यक्ति सदैव वाद विवाद वार्तालाप में हस्तक्षेप करने वाले होते हैं।
वार्तालाप मस्तिष्क का व्यायाम होना चाहिए न कि वाणी के लिए कसरत। सदैव वार्तालाप मृदुल, श्रेष्ठतापूर्ण व शिष्टाचार से भरा हो इसका अभ्यास करिए। जो व्यक्ति ऐसे प्रयास में सफल होता है, वही सबका दुलारा बन जाता है। बोलने के तरीके में सुधार करके व्यक्ति अपने गुण-दोष को कसौटी पर आसानी से कस सकता है। जब तक वार्तालाप प्रभावशाली नहीं तब तक आप स्वयं भी प्रभावशाली नहीं बन सकते हैं।
जो भी शब्द हम बोलें, उनका पूर्ण उच्चारण भी जरूरी है। जिस शब्द के उच्चारण में अभिज्ञात हैं तथा उसका पूर्ण उच्चारण अभ्यास जरूरी है, यदि सही उच्चारण ज्ञात न हो तो, जानकार से उसे पहले सीख लेवें। व्यर्थ का वाद-विवाद न करें। यह एक असंभव बात है कि अनभिज्ञ व्यक्ति से वार्तालाप में हम जीत सकें। अतः स्वयं को जताने में तत्पर व्यक्ति के सामने चुप रहें।
हमेशा हंसमुख मुस्कुराते हुए वार्तालाप करें। इससे वार्तालाप में अपनापन होता है। व्यक्ति के वार्तालाप करते समय सदैव श्रोता के नाम से परिचित होना चाहिए। यह याद रखिये कि बोलने से अधिक सुनना श्रेयस्कर होता है। उल्लू पक्षी हमेशा अक्लमंद माना जाता है, क्योंकि वह शांत होकर बैठता है तथा सुनता है। हर किसी को सुनने का धीरज भी सीखना जरूरी है।
यदि कोई बात कर रहा है तो उसे बीच में रोककर अपनी बात न कहें। यह मत जतायें कि आप उससे ज्यादा जानते हैं। वार्तालाप में सामने वाले गलत सिद्ध करने से पीछे नहीं पड़ना चाहिए फिर चाहे वह आपके परिवार का सदस्य ही क्यों न हो। वार्तालाप का यह भी सार है कि अपने शत्रु से एकदम सहमत हो जाओ, क्योंकि दुनिया में ऐसे लोग Logician नहीं होते हैं। वार्तालाप में ढंग ऐसा हो कि हर स्थाान पर स्वागत और थोड़ा सा अस्वीकारपन असहमति अवश्य सामने आये तभी आप अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकेंगे इसे सदैव याद रखें।