आलेख

‘पिता न हो तब पता चलता है जिम्मा’ श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ़

मां धरती है, तो पिता आसमान है। मां यदि बेटे को नौ महीने पालती है, तो पिता उसे जिंदगी भर पालता है। मां सोचती है,आज मेरा बेटा कैसे खाना खाएगा तो वही पिता सोचता है मेरा बेटा जिदगी भर कैसे खाना खाएगा। दुनिया में यदि संतान के लिए मां सबकुछ है तो पिता उससे भी बढ़कर है। संतान के जन्म के बाद से ही पिता के कंधों पर सारी जिम्मेदारियो का बोझ आ जाता है,जो कभी पीछा नहीं छोड़ता।
जिंदगी के अंतिम पड़ाव तक और उसके जाने के बाद भी कई दफा लोग यही कहते हैं कि उनके बाप ने उनके लिए कुछ ज्यादा नहीं किया। खुद परिवार को सुख रहने के लिए हरदम पिसता रहता है,खुद वो रोजमर्रा में अपने को अभावग्रस्तता रखता है,जिसकी जानकारी खुद अपने लोगों को नहीं बताता।
सीने की उभरती पसलियां और चश्मा सब उस पिता की बिना बोले कहानियां बयां करते हैं। उनकी जिम्मेदारी और परिवार को समझने की झलक बाथ सोप में सेविंग करने के भाव को देखकर समझी जा सकती है। पिता की कमी तब पता नहीं चलता,जब पिता न हो तब की सोच कर जरा देख लीजिएगा। संक्षेप में कहें तो पिता है,तो जहान है,पिता नहीं तो कुछ नहीं।
आपके भी पिता नहीं है,तो जरा उन दिनों को याद कर लीजिएगा आप अपने को अश्रुओं में पाओगे। तब जब मातृ दिवस तो याद होता है,लेकिन पिता का नहीं। पहले तो पिता काफी कुछ बना कर विदा लेते। अब वक्त ऐसा आ गया है कि आज का पिता ज्यादा बनाने की स्थिति में नहीं। भविष्य में बेटे ही अपनी आजीविका विकास काफी संघर्ष करते खुद लिखना पड़ेगा। बातें गूढ़ है,जिसका भाव काफी विस्तारित है।

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