यात्रा वृतांत

”एक पेड़ का दर्द” श्रीमती झरना माथुर साहित्यकार कवयित्री गायिका देहरादून उत्तरांचल

 ”एक पेड़ का दर्द”

कुछ दिनों पूर्व मुझें देहरादून से गाज़ियाबाद जाने का अवसर प्राप्त हुआ।मैं अपनी माँ के साथ टैक्सी में सफ़र कर रही थी।टैक्सी रास्ते से गुजर रही थी।तभी एक जगह जो बहुत ही सुन्दर लग रही थी।उस जगह पे जैसे प्रकृति के सौंदर्य का वास था।लगता था वहा पे बरसात में झरने और नदियाँ अपने यौवन मे होते होंगे।कुछ जानवर भी वहा टहल रहे थे।लेकिन साथ ही साथ वहां कुछ बहुत बड़े-बड़े पेड़ कटे हुए पड़े थे।

ड्राईवर ने मुझे बताया कि सड़के चौड़ी करने के लिये पेड़ौ को काटा जा रहा है। मैने ड्राईवर से गाड़ी को रोकने के लिये कहा।मैं टैक्सी से बहार आयी और उस जगह पहुँच गयी।जहा पेड़ कटे पड़े हुए थे।

कुछ पेड़ ऐसे थे जिनपे अभी भी टहनिया और पत्ते लगे हुए थे।पत्ते भी हरे थे।ऐसा लग रहा था उन्हें जल्दी ही काटा गया होगा।

मगर कुछ पेड़ ऐसे थे जिनकी सिर्फ जड़े ही थी।जड़ो को देखकर लग रहा था जैसे पेड़ बहुत पुराने और बहुत बड़े रहे होंगे।उन पेड़ों का उस जगह से बहुत पुराना नाता होगा।

मैने जैसे ही एक बहुत पुरानी जड़ पे अपना हाथ रखा।मानो वो जड़ जैसे रो पड़ी हो और मुझसे कुछ कहना चाहती हो।मैं भी उस जड़ के पास बैठ गयी।अचानक से मैं अपने घर के पास के एक बड़े पेड़ की स्म्रतियों में खो गयी।

सावन मे जिसकी डाल पे झूला डालकर हम सब सखियों साथ झूला झूलते थे।कितने राहगीर उसकी छाव में अपनी थकान मिटाते थे।उस पेड़ पे कितने पक्षियों का घोसला था।जो रात मे उस पेड़ पे आके अपना बसेरा करते थे।

पेड़ भी सभी को अपनी पत्तियों को हिलाकर हवा,छाया और फल देता।जैसे उस पेड़ को इसमें सुकून मिलता था।जब पुरवाई चलती तो पेड़ भी उसके साथ झूमने लगता।मेघों को बारिश को भेजने का सन्देशा देता।बरसात की बूंदो मे भीगकर अपना श्रँगार करता।ये बूंदे भी जमीन की अग्नि को शान्त करके खेतों को अन्न से भर देती।

अचानक से मुझें गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आयी।साथ ही साथ ड्राईवर की आवाज़ भी जो कह रहा था मैडम क्या चलना नही है?

मैं एकदम से उठ खड़ी हुई फिर से उस जड़ को देखने लगी।अब मुझे समझ आ चुका था कि उसने क्या क्या खोया है।मेरी भी आखें भर आयी और मन ही मन ये सोचती हुई टैक्सी की तरफ बढ़ने लगी कि मानव के विकास की इतनी बड़ी कीमत …….?

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!