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‘सामंजस्यता इनसे सीखने की जरूरत’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.

देश के लोकप्रिय कथावाचकों के आयोजन में कथा श्रवण को पहूंचे उन जिज्ञासु और अपनी समस्या के लिए निदान के इच्छुक श्रोताओं को भरी मंच में खड़े होकर सवाल जवाब करते देखना ही एक तरह से ईश्वर के दर्शन सा प्रतीत होता है।

 

आप फिर बोलोगे कि मनोज जायसवाल ऐसा क्या बोल रहे हैं? उन्होंने क्या ऐसा देखा कि एक तरह से ये बड़ी बातें कह दी। खुद अपनी समस्या लेकर आये लोग कथावाचक के चरण छूना दूर नजदीक से दर्शन को चाह रहे होते हैं,उन्हें कैसे ईश्वर का रूप मान लिया जाये।

सचमुच! वृहद स्तर पर आयोजन मंच में जब समाज के अंतिम सिरे के व्यक्ति यह प्रश्न कर रहे होते हैं जिसमें बड़े हिम्मत के साथ खड़े होकर ये दंपत्ति जिसमें महिला कहती है गुरूजी ये ना शराब खुब पीते हैं। जहां गुरूजी का फिर कहना होता है-तो इन्हें मना नहीं करती। महिला के शब्दों में-बहुत मना करती हूं गुरूजी फिर भी नहीं छोड़ते।

 

 

गुरूजी का प्रश्न कि वो भी आए हैं क्या?जवाब में हां गुरूजी के साथ वो भी खड़े हो जाता है। अब गुरूजी के यह प्रश्न पर कि क्यों ऐसा करते हो! बड़ी मासुमियत से जवाब देते हैं नहीं गुरूजी कल ही पीया था। अब से शराब नहीं पीऊंगा। गुरूजी का आशीर्वाद-ठीक है अब से पीये तो बताना। इस संदेश के साथ कि कथा सुनते हो ना! जी,गुरूजी।

 

 

कई लोग जो मांसाहारी हैं,उन्हें यह भी मालूम होगा कि धर्म के लाईन में तो कोई गुरूजी ऐसा नहीं हो सकता जो मांस खाने की शिक्षा दे। बावजूद कुछ दंपत्ति भरी मंच में गुरू दीक्षा के बाद मांस खान चाहिए कि नहीं। हमारे घर तो रोज मांस बनता है। परंपरा भी है जैसी अनेकानेक बातें। लेकिन अंतिम रूप से यह सत्य कि किसी जीव की हत्या नहीं करना है मांस नहीं खाना है। मासुम सवालाते पूछने वाले जिज्ञासु जोड़े भी इस वादे के साथ कि ठीक है गुरूजी अब से हम मांस नहीं खाएंगे।

 

 

सवाल इन बातों में, प्रश्नों का नहीं। अपितुं बड़ी बातें इन जोड़ियों के आपसी स्नेह का भी है कि ये कितने सामंजस्य में पति-पत्नी रहते हैं कि एक साथ भगवान की कथा श्रवण करने समय निकाल कर जाते हैं,जबकि ये भी आजीविका के लिए जद्दोजहद कर रहे होते हैं। रोजमर्रा में आजीविका के सीमित संसाधन के बावजूद कथा सुनने जाते हैं। दूसरी ओर सम्पन्न होते हुए भी कई परिवार में आज ऐसे क्लेश भरा है कि दोनों दंपत्ति तक एक साथ नहीं जा सकते।

आपसी स्नेह और सामंजस्यता इन गरीबों सेे सीखने की जरूरत है। निश्चित तौर पर इनके ये रूप में ईश्वर का दर्शन होता है।

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