‘सच कहें तो महिला विरोधी, चुप रहें तो विचार शुन्यता’ श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ़
जिसके जन्म के बाद पिता की डांट में पलता बढ़ता है,वह इतना मंजता है कि एक दिन परिवार की मुख्य धुरी बनता है। अपने बालपन में बहनों के साथ कैसे स्नेह के नाम हमेशा तिरस्कारित किया जाता रहा किस प्रकार वह अपने शौक के लिए मोहताज होता रहा वह सब अपने जिम्मेदारियों के दिन में याद आता है।
कैसे आज बातें स्त्री वर्ग प्रति दोयम दर्जे की बातें की जाती है,याद करने वाली बातें है कि कैसे बालपन में उस पुरूष के प्रति कई बातों पर तिरस्कारित व्यवहार किया जाता रहा जहां परिवार मानकर उन बातों को न कभी कहा न कभी उल्लेख किया।
स्लीवलेस परिधान में अर्धनग्नता को प्रदर्शित इठलाती महिला की तस्वीर पर अलंकार प्रदर्शित करती लाईनें और शब्दों की मालाएं ये परिदृश्य है आज कईयों के सोशल पोस्ट का का।
पुरूषवादी सामंती सोच और पुरूष की बुराई विषयक आलेख या कविता हो, तो उसी पुरूष समाज के वही पुरूष धरातल पर न जाकर पुरूष समाज के प्रति घृणा दिखाते कमेंट।
सवाल क्या पुरूष सुंदर नहीं होते? या हर पुरूष की भावनाएं सुंदर नहीं होती। धरती को यदि माता की संज्ञा दी गई है तो पुरूष को आसमान की।
सवाल क्या पुरूष समाज भी कुछ उन पुरूषों के चलते बदनाम तो नहीं जो समाज में कई घृणित कृत्यों को अंजाम दिए हैं। तारतम्य किसी भी पुरूषों के संदर्भ सकारात्मक सोच के संदर्भ लिखने की जेहमत भी न उठा सकें?
समर्पण – ये वो गुण है पुरूष का जिससे संसार चल रहा है। जन्म लेते ही जिम्मेदारियों का बोझ जिससे दुनिया में कार्य सुचारू होते हैं।
यदि कोई वो पुरूष जो विवाह पूर्व थैला पकड़ने अच्छा नहीं मानता हो वही पुरूष विवाह के बाद हमेशा बाहर जाते वक्त थैला याद करता है। वही थैला जिससे जहां कुछ भी दिखे वो अपने परिवार के लिए लेते आये। परिवार के प्रति तमाम उसके सकारात्मक सोच के बावजूद जरा सी कमी पर पूरा दोष मढ़ा जाता है,यहां तक कि कई दफा निकम्मा कभी कुछ नहीं लाने के उलाहने दिए जाते हैं बावजूद वह समर्पण का धैर्य नहीं खोता।
सुंदरता- जरूरी नहीं सुंदरता किसी पुरूष चेहरे के स्मार्टनेस की हो। सुंदरता पुरूष का वह गुण है,जिसका वह कभी गुरूर नहीं करता। यह सुंदरता दुनिया में किसी को भले ही नहीं दिखायी देता हो पर पुरूष के चेहरे में उसी पितृ सत्ता की सुंदरता उसके चेहरे बयां करते हैं। गरबे से लेकर कई धार्मिक आयोजनों,पार्टियों में अपने स्लीवलेस का प्रदर्शन करती महिला नजर आएगी लेकिन मजाल कि कोई पुरूष अपने परिधान के नाम पर कोई प्रदर्शन भी करे। पुरूष हमेशा अपने पहनावे पर ध्यान देता है।वो हमेशा यह सोचता है कि धार्मिक आयोजनों या पार्टी में अपनी भारतीय संस्कृति संस्कारों पर आधारित वस्त्र धारण करूं। अमुमन रूप से कहीं धार्मिक अनुष्ठान कार्यक्रम हो तो पुरूष बंगाली पैजामा जैसे वस्त्रों का चयन करता है।
प्यार – दुनिया में रोजमर्रा की तनावपूर्ण कड़ी जिंदगी में थका देने वाली मानसिक पीड़ा के बावजूद बाहर कितना भी सख्त दिखे अंदर प्यार बनाए रखता है, और इसी प्यार स्नेह से परिवार की धुरी बन कर उसी स्नेह से जिम्मेदारियों का वहन करता है।
बोझ – ये पुरूष का वो गुण नहीं है,जिससे वो दूर भागे। तमाम कार्यों को अंजाम देते वह कोल्हू के बैल की भांति हमेशा पिस रहा होता है। पुरूष के लिए कोई स्त्री भले ही ना सोचे कि ये काफी परेशान है, हो रहे होते हैं,तकलीफ होगी इन्हें पर ये पुरूष हमेशा अपनी पत्नी,मां,बहन को दुख न हो कर सारा बोझ बिना किसी संकोच लिए फिरता है। कभी किसी पुरूष को उनकी पत्नी के सामने हमेशा यह दर्द वह दर्द हो रहा कहते नहीं सुना होगा जबकि दर्द हमेशा झेलता रहता है,लेकिन स्त्री हमेशा पुरूष के सामने दर्द की बात बयां करती रहती है,जिसका दर्द भी उसी पुरूष के मत्थे होता है।
लड़ाई झगड़े- अमूमन समाज में जो भी लड़ाई झगडे हो तो पुरूष को ही निबटना है। कहीं पर कोई भी मामले हों जिस पर पुरूष सीधे तौर पर दोषी ठहरा दिए जाते हैं। स्वयं इसी समाज में वही पुरूष दोषी ठहरा दिया जाता है,जिन्होंने इसके तल्ख पहले उनके ही जीवन का पहिया खींचा था।
बेबस पुरूष- ये यही पुरूष है,जिसकी सेविंग क्रीम खत्म हो जाने पर समय और कभी अभावग्रस्तता आदि के चलते बाथ सोप से शेविंग कर लिया करते हैं, इसके साथ कई अपनी स्वयं की जरूरते कम कर देते हैं,खुद अभावग्रस्त रहें पर बचत करते इसलिए चलते हैं, ताकि उनकी बचत का फायदा परिवार को मिले। यह वही पुरूष है जिनको समझा जाता है कि इनके दिलों पर प्यार और स्नेह की जगह नहीं है। ये वही पुरूष है जो अंतस में भारी दिल से दुःखी होता है पर कभी अपने आंसु महिला को दिखाना दूर एहसास तक नहीं कराता।
ये वही पुरूष भी है,जिस पर वो कितना भी धार्मिक,संस्कारिक और तेजो गुणों से रहा हो। बदनामी के एक मात्र शब्द से उनकी विद्वता सहित जीवन बर्बाद करने से नहीं छोड़ा जाता। सबकी जिम्मेदारी लेने वाला पुरूष पर समय इतना हावी होता है कि सब फसादों की जड़ एवं गलती इन्हें ठहराया जाता है। कभी विचार यह भी किया है कि इस पुरूष को समाज से हटा दिया जाए तो क्या होगा? एक दिन एक परिवार में किसी पुरूष सदस्य को निकाल कर देख लें। उसका क्या स्थान है, यह बातें समझ में आ जाएंगी।