
‘प्यार’ के नाम मन रूपी मिल्कियत की वसीयत लिख दी जाती है,उनके नाम उसी सुनहरे पन्नों पर जहां जीवन चलना है।
इसी जिंदगी के इस पड़ाव से पार होते ये ‘प्यार’ और स्नेह ‘पुष्पित’ और ‘पल्लवित’ होते हैं।भावनाओं की कद्र और हर सुख दुख में साथ रहने की कस्में खायी जाती है,कोई ऐसे ही ‘प्या’र की ‘वसीयत’ नहीं लिखी जाती।
जोड़ियां ऊपर बनती है, कि नीचे बनती या बनायी जाती है यह तो विधाता ही जाने पर ऐसा अमूमन कहा जाता है कि जोड़ियां ऊपर बन कर आती है।
यदि किसी परिप्रेक्ष्य यह भी देखें कि यदि जोड़ीया ऊपर से ही बन कर आती है, तो इसी जीवन में कई बार क्यों जोड़ियां बनती है? क्या इसी जीवन पथ में ये घटना दुर्घटना,भावनओं का ‘हस्तांतरण’ भी लिखा होता है? अमूमन एक जोड़ी को दूसरे की जोड़ी इतनी पसंद आती है ना पूछो।
इनके पास न पैसे की चिंता, न खाने की। न छत की चिंता न ‘रहवास’ की। बावजूद खेतों पर या सड़कों के किनारे किसी ठेलों पर किसी गैर पति‘पत्नी के अपने कर्म क्षेत्र के काम को देख कर यह जरूर कहा जाता है, देखो कैसे प्यार से जोड़ा जिंदगी जी रहे हैं।
हंसते मुस्कुराते न टेंशन न कोई फिक्र ! एक हम हैं जो नौकरी,व्यवसायी पेशा सक्षम होते रोज जीवनचर्या में किरकिरीपूर्ण जीवन को कर लड़ते रहते हैं। याद रखें दूसरे का किचन सबकाे अच्छा लगता है। कुंवारेपन में हर पुरूष चाहता है कि उसकी पत्नी उनके ही ‘फील्ड’ की हो। जिससे भविष्य में साथ कदम बढ़ायें और इस दोस्ती से जग में नाम करें। पर ऐसा कई दफा नहीं होता है। कोई कला जगत का शख्स चाहेगा कि यदि वो ‘गायक’ हैं तो उनकी पत्नी ‘गायिका’ या अभिनेत्री हो।
‘साहित्य’ लेखन वाला जरूर चाहेगा कि उसकी पत्नी इसी ‘पत्रकारिता’ जगत से हो जिससे एक दूसरे का साथ मिलता रहे और हम एक दूसरे की कद्र करते अच्छे से आगे बढ़ें। यदि कोई लिखता है तो उसकी मनोभावना जज्बा बढ़ाने वाला हो तो लेखन में सुधार भी आता है और लिखने का जज्बा भी आसमान में तैरने लगते हैं। ऐसा हाे ताे सबसे पहले लेख की प्रशंसा पत्नी ही करेगी। अब ऐसा न होकर विपरीत फील्ड में भी अलग विषयों की हो, तो वो भी नहीं हो पाता।
अभिनेत्रियों का विवाह ‘उद्वोगपतियों’ से होता है तो कई दफा तो शादी के बाद उस फील्ड में पत्नी के कार्य किए जाने और बात नहीं मानने के कारण के चलते संबंध विच्छेद हो जाते हैं। दरअसल समान विधा का समान विधाओं वाले पुरूषों से आकर्षण जीवन की स्वाभाविक रीति है।यही कारण है कि ये विच्छेदित संबंध जीवन के उन समयों में जब समय नहीं होता किसी के ‘आगोश’ में जाने का तब ‘आगोश’ में जाते दिखायी देते हैं। कई समाज में उच्च शिक्षित लड़कियां ‘परिवार’ के कहे अनुरूप उस परिवार के संस्कारों को देखते कम पढ़े लिखे आर्थिक रूप से सक्षम उस परिवार में ब्याही जाती है जहां उन्हें जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होती, लेकिन चुकि बात शिक्षा की है जहां अपने साथी की शिक्षा, उनकी कला प्रतिभा की कमी हमेशा उन्हें सालती रहती है, मन में उनकी यह ‘टीस’ जीवन के ऐसे किसी भी मोड़ पर दिल में वो उमंगों को कम कर देती है,जिससे चेहरा प्रफल्लित दिखायी देता है,इसी के चलते ‘प्यार’ के नाम चेहरे में जो रौनक और ‘आभा’ आनी चाहिए उनका ‘लोप’ हो चुका होता है।
यह दुख और अवसाद का बहुत बड़ा कारण भी बन कर कभी कभी इसकी परिणीति उनके अन्यत्र मार्ग के रूप में भी इसी समाज में हमें दिखायी देता है। ये सब बातें उस वक्त नहीं सोचा जाता है कि उनकी कितनी बेइज्जती होगी। लेकिन यह भी कटू सत्य नहीं है।
साम्य बनाये रखते आगे बढ़ने और समझौतावादी रूख अख्तियार करते भी जीवन की गाड़ी तेजी से नहीं पर धीरे धीरे जरूर चलती चलायी जाती है। कहां से जन्म नहीं लेता यह ‘प्यार’…! अमूमन रूप से आप अपने या कहीं पाते हैं तुम तो ना बिल्कुल बंदर लग रहे हो। चेहरा देखा है आईने में! उधर से आवाज आती है-ठीक है मैं तो बंदर लग रहा हूं, मैं बंदर तो तुम भी तो बंदरिया कम नहीं लग रही। फिर पति कहता है… चेमटी कहीं की! यैसी खींचातानी, नोंक झोंक उलाहने यही असीम ‘प्यार’ स्नेह के बंधनों के हैं जहां मजाक करने का अधिकार उन्हें रहता है।मजाल कि कोई दूसरा ऐसा कह दे। कुछ देर की नाराजगी फिर रोजमर्रा पटरी पर।
पत्नी अगर सांवली काली हो और पति गोरा हो तो उनकी नोंक झोंक भी सुन लीजिए। कभी पति का मुड खराब हो या पत्ीन उनका दिमाग चाट ले तो पति कहता है बिल्ली कहीं की…! इस पर पत्नी का जवाब होता है- गोरा होकर लगता है शहर में कितना चमक रहे हो ना! लगता है अब शहर में बिजली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।