(मनोज जायसवाल)
आप लोग किसी से आम चर्चा कर रहे हों तो कई दफा ऐसे वाक्यात आता है,जब लोग मुहावरों,कहावतों का प्रयोग करते हैं। ठीक ऐसे ही कई लोग ऐसे हैं जो चर्चाओं के दौरान सामने आने वाली समस्या का हल कहानी से पूरा करते हैं। जिसमें एक बड़ी सीख भी होती है।
संभवतया इस प्रकार लघुकथा का जन्म हुआ होगा। कहानी लेखन इतना सहज और सरल नहीं है। कहानीकार को उन सारी बातों का ख्याल रखना होता है कि किसी वर्ग विशेष को ठेस न लगे। अंत में कहानी कोई सीख भी देती हो। आलेख की तरह जीवंतता का प्रमुख स्थान है। जरूरी नहीं है कि कहानी भौतिक रूप में बीच चुकी हो पर यह समाज के बीच लोक जीवन पर अपनी बातें बयां करती नजर आये।
जानेमाने साहित्यकार कहानीकार प्रेमचंद की कहानियां जबकि उस काल में लिखी गयी है,लेकिन आज भी वर्तमान लोक जीवन को बयां करती दिखायी देती है। अनावश्यक घुमाव फिराव को न लेते कम शब्दों में ज्यादा कुछ कहा जा सके इसका भी ध्यान रखी जावे। आज के सोशल पटल में कई पोर्टल कहानी के नाम पर इतने लंबी लंबी कहानियां परोस रहे हैं,जिसे पूर्णतः एकाएक पाठक नहीं पढ़ सकता। उलुल जुलूल शब्दों का प्रयोग करने वाले ये तथाकथित आधुनिक लेखक कहानी को बढ़ाने के नाम समाज के रिश्तों की परवाह किए बगैर जबर्दस्ती गलत परिकल्पनाओं का सहारा लेकर ऐसे मैटर रूपी मसाले डाल रहे हैं, जिसे पाठक भी समझते हैं।
आज बालीवुड फिल्मों में फिल्में स्टोरीप्रधान नहीं रही। जबकि बालीवुड के जन्म काल में आज भी जो फिल्में याद की जाती है वह सब स्टोरी प्रधान रही है। समाज को बड़ा संदेश देने वाली ये फिल्में हमेशा के लिए अमिट है। कथावाचकों के मंचों पर भी आज महाराज के सामने प्रश्नों की झड़ी तो फिल्मों के गीतों की धुनों पर भगवान का स्मरण किया जा रहा है,जिसमें वाद्य यंत्रों का भी खासा स्थान है,जिसके चलते लोगों को विभोर होते देर नहीं लगता और अंततः नाचगान तक हो जाता है। मूल रूप से गए थे कथा श्रवण करने और पूछो तो कोई एक कथा भी बता पाएं तो मुश्किल।
क्योंकि वहां तो लगातार कोई कथा ही नहीं बताया गया बीच बीच में नाचगान में जो सुना वो भी भूल गए। मूल रूप से कहानी लिखना,उसे प्रसारित करते हुए मंच से कहानी बताया जाना क्योंकि प्रस्तुति का तरीका कैसा है यह भी महत्वपूर्ण है। आज