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दूधावा केनाल विस्तार बजट बावजूद सर्वे हुआ कि नहीं?

– जंगल में मोर नाचा किसने देखा है कहावत चरितार्थ
(मनोज जायसवाल)
जब छत्तीसगढ के पं. रविशंकर जलाशय का निर्माण हुआ तब भिलाई स्टील प्लांट को नियमित पानी देने का एग्रीमेंट भी हुआ था, जिसके तहत कृषि के लिए पानी हो या न हो पर भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए पानी आरक्षित रखा जाता है। यही नहीं संभवतः दुधावा एवं इसके उपर स्थित सोंढूर जलाशय के पानी को भी सप्लीमेंटी यानि सीधे शब्दों में कहें कि यदि गंगरेल में पानी उपलब्ध न होने पर इन दोनों बांधों से पानी उपलब्ध कराये कराया जाये।
तभी तो सोंढूर एवं दुधावा से काफी मात्रा में पानी गंगरेल को प्रतिवर्ष दिया जाता है। गंगरेल पूरे छत्तीसगढ में खेती कार्य हेतु पानी देता है। लेकिन विडंबना तो तब रही जब आजादी के इतने वर्ष बाद भी सोंढुर एवं दुधावा का खासा विस्तार नहीं हो सका।
राजनीतिक महात्वाकांक्षा नहीं होने का दंश क्षेत्र आज भी झेल रहा है,क्योंकि तब के जनप्रतिनिधियों ने अपनी आवाज बुलंद नहीं की। शांत क्षेत्र होने के चलते कभी यहां लोगों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार नहीं किया। लेकिन यह यहां के मूल वाशिंदे किसानों के अधिकारों एवं स्वाभिमान की लडाई है जिसके लिए वे पीछे भी नहीं रहे जिस क्षेत्र का पानी भिलाई स्टील प्लांट छत्तीसगढ की राजधानी सहित छत्तीसगढ के दूरस्थ अंचलों तक सिंचित कर रही है, उसी अंचल की खेती उपरी बारिश भगवान भरोसे है। केनालों का विस्तार नहीं हुआ है। इससे बडी विडंबना की बात और क्या हो सकती है।
करोडों की लागत के लिफट एरीगेशन फैल पडे हैं। तत्संबंध में कुछ मांग जरूर हुई थी, पर चुंकि महानदी पूरे वर्ष भर जलधार बहाव वाली नदी नहीं रही जिसके चलते यह योजना फैल हो गई। लेकिन दुधावा जलाशय से कम मात्रा में लगातार पानी छोड़कर वर्ष भर बहाव वाली नदी बनाया जा सकता है। कुछ एनीकट भी बनाये गये हैं उसका भी यही हश्र देखने मिल रहा है। तकनीकी जानकारी पर बात करें तो आजादी के इतने वर्षों बाद भी 2223 हे. जहां किसानों को पानी नहीं मिला वहीं बीते दशक में केनाल का जितना विस्तार कार्य हुआ वह नाकाफी है।
कांकेर जिले की सबसे बड़ी दूधावा जलाशय का पानी चारामा क्षेत्र तक लाने स्थानीय विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मण्डावी द्वारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कांकेर आगमन पर प्रमुखता से बात रखा। इसका नतीजा रहा कि 80 लाख का बजट इन क्षेत्रों में केनाल विस्तार के सर्वे के लिए पास हुआ। प्रदेश के मुखिया का और भी कांकेर जिला आगमन हुआ जहां हर भरी मंच में विधायक द्वारा प्रदेश के मुखिया को बड़े भैया से संबोधित करते हुए आवाज उठायी। बात सामने आने पर मंच में स्वयं उन्होंने केनाल विस्तार के लिए बजट पास होने पर उच्चाधिकारियों ने सर्वे किया कि नहीं स्वयं विधायक ने भी अनभिज्ञता जतायी। शांत महानदी तटवर्ती क्षेत्र तो ऐसा है कि यहां कोई नये लोग आए तो पहचान लें।
फिर सर्वे के लिए आते तो निश्चित ही जमीन से जुड़े लोगों को पता चलता। बात उड़ी थी कि सर्वे हुआ है। लेकिन यह प्रामाणिक बात शायद न थी। यह वैसे ही बात थी कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा है। दूधावा केनाल विस्तार आजादी के इतने वर्षों बाद नहीं होना निश्चित ही किसानों के लिए हताश करने वाली बात है। कांकेर जिले के महानदी उस पार गीतपहर में जब मुख्यमंत्री का आयोजन हुआ तब इस क्षेत्र के लोगों में एक मुख्य बात फैली थी कि दूधावा केनाल विस्तार की महती मांग की घोषणा हो सकती है, बात तो मंच पर गुंजा पर घोषणा नहीं। आज दूधावा बांध में इको लर्निंग सेंटर तो बनाया गया खुशी की बात कि पर्यटन बढ़ेंगे। पर किसानों के खेतों तक यहां से केनाल का विस्तार कब पूरा होगा? आखिर….आखिर….आखिर कब?

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