आलेख

इस दिल के तारों से…….

(मनोज जायसवाल)

हरी भरी वनस्पतियों के लदी, जंगल में कहीं कोयल की कूक,झरने की झर झर की आवाज,रंग बिरंगे पक्षियों की चहचहाहट देर शाम उल्लू की आवाजें। चाहे फुर्सत के पल हो या कामकाज का समय। उन्हें नहीं लगता कि प्रकृति के अत्यंत नजदीक के साथ बाहर शोरगुल के वातावरण में रोजमर्रा जीवन व्यतीत करते अपने लोग भी है। शहरों की प्रोफेशनल लाईफ जिसमें हर अत्यावश्यक चीजों का उपयोगिता के अनुसार ही खर्च करने और आजीविका चलाने विवश जहां एक फूल की चाहत भी हो, तो उसे भी खरीदना पड़े। हर मौसम खुशगवार…! सरल रोजमर्रा संसाधनों की वह धरती जिसके लिए कभी जद्दोजहद न करना पडा।

महानगरीय सभ्यता में जीवत बिता रहे,जिनकी रूटीन जीवनचर्या में अर्थ का उपार्जन और उसका जीविका में उपयोग। लेकिन आत्मिक शांति के रूप में खुद मानव निर्मित वनों का दर्शन तक ज्यादातर सिमट गया है।

 

 

 

 

ख्वाहिशें सिर्फ और सिर्फ भौतिक संसाधनों की रही जिसके सपने पूरे होते जरूर। पर इस रोजमर्रा में कभी ऐसा समय नहीं मिला जहां फुर्सत के दो पल घुम भी आए। कांक्रीट के जंगल और कई दफा उसके रिहायशी इलाकों में रहने मजबूत लोगों के लिए बंधी जिंदगी से विलग कोई सोच भी नहीं। बीती पीढ़ी चली गयी जहां आने वाली पीढ़ी भी वहां ठीक वैसा ही रोजमर्रा बीता रही है,जैसा अतीत में।

 

 

 

 

चहूंओर कोलाहल की रोजमर्रा में अपनी कला के विषय में सृजन भी न हो ऐसा वातावरण जिसमें अपनी प्रतिभा ऐसी धुमिल होती जाती है,जहां एक समय ऐसा आने पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन न कर पाने का गम भी। कोलाहल से भरी दुनिया में जब आधी से ज्यादा उम्र निकल चुकी होती है तब ऐसा महसूस होता है कि दुनिया तो दुनिया मैंने अपने देश के दूर की माटी का भी सुगंध नहीं ले सकी।

 

 

 

 

ऐसी ही बस्तर की दैव मिट्टी! माता कौशिल्या की धरा और श्रीराम के दस वर्षों में बस्तर की धरा पर बिताये समय। अतीत गवाह है,इसकी सुंदरता प्रकृति ने कभी जाने नहीं दी। स्वर्णिम अतीत में सबके ईश्वर साथ ही अपनी भी पूर्वजों और पूरे संगीत के साथ इन बहारों के बीच चलते रहने विलग न होने गुंज प्रकृति के बीच एहसास कराते हैं।

 

 

 

 

ऐसा कुछ है बस्तर….जहां आने लोग लालायित होते हैं। दूरस्थ प्रदेशों के लोग विदेशी सैलानी, अमेरिका में बसे लोगों को ऐसा आकृष्ट करता है,जहां लोग अपने जीवन में कहीं दूसरा शौक पूरा हो या न हो पर बस्तर जाने की उनकी मनोकामना जरूर पूरी हो जाय। ऐसा शायद मुख्य रूप से प्रकृति प्रेमियों की ख्वाहिशें होती है। जब आप अपने वाहन पर बस्तर की सैर कर रहे हों तो निश्चित ही दिल में इन शब्दों से गुनगुनाने को दिल चाहेगा…

इस दिल के तारों से मधुर झंकार तुम्हीं से है
और ये हसीन जलवा, ये मस्त बहार तुम्हीं से है।

 

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