– निर्मल पानी भवानी मॉं, डाले सगुरिया के हो…
(मनोज जायसवाल,कला प्रतिनिधी)
छत्तीसगढ़ लोक कला जगत का अतीत जितना पुराना है,संभवतया यहां लोक कला में जसगीत। नवरात्रि पर ओजपूर्ण,कारूणिक रूप से देश की सबसे मीठी छत्तीसगढ़ी में इसके नाम आराधना विनती किया जाता है। मुझे नहीं लगता कि इतनी दिल को दु जाने वाली,अंतस में समा जाने वाली,कठोर से कठोर हृदय को पिघला देने की क्षमता रखने वाली एक समान लय ताल में सुर एवं लयबद्व वो सषक्त संगीत जहां देवी देवता भी इस प्रार्थना गीत के संगीत की धुन मात्र से जहां यहां देवताओं को सिर आते देखा जा सकता है।
देवी देवता नृत्य करने लगते हैं,इंसानों की तो बात जुदा! जी, हां देवी जसगीत जो नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही मंदिरों के साथ पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। महिलाओं की टोली को मंदिर प्रांगणों में जसगीत गाते देखा जा सकता है। नवरात्रि में प्रथम दिवस पर ही जवारा भी बोया जाता है,जिसे नवमीं पर विसर्जन किया जाता हैं।विसर्जन पर जंवारा बधने यानि शुभ भावनाओं के साथ श्मितानश् बनाये जाने की परंपरा रही है। हालांकि आज सोशल मीडिया के दौर में यह सब उतना नहीं है। पर आज भी अतीत में पूर्वजों के द्वारा भी स्थापित जंवारा जैसे स्नेहिल संबंध निश्चित रूप से एक परिवार जैसे निभाये जा रहे हैं।
हम बात कर रहे थे,छत्तीसगढ़ में जसगीतों की। बताते चलें छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोकगायिका पद्श्री से सम्मानित ममता चंद्राकर द्वारा उन सुनहरे अतीत के बाद नया आयाम दिया। बीते दशक में छाया चंद्राकर,अलका चंद्राकर,दुकालू यादव जसगीत गायन में वो नाम रहे,जिनके स्वर दिये जसगीत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के साथ अन्य प्रदेशों में आज भी गुंजायमान होते हैं। बीते दशक में अलका चंद्राकर के स्वर में गाये निर्मल पानी भवानी मॉं डाले सगुरिया के हो… भवानी हो डाले सगुरिहा के हो जैसे लोकप्रिय गीतों ने स्वर के साथ गायिका को स्थापित किया अपितु यह वो सदाबहार जसगीत कहा जाएगा जो तब से आज भी उतना ही चाव से इस धरा में गुंजायित होते हैं।
यह देवी मां का अपार स्नेह है कि इसके बाद अलका चंद्राकर के कई और एलबम आए और उतना ही हिट रहे। बीते दशक में दुकालू यादव के लगातार जसगीत आये जहां अंगारमोती मोती मोर दाई ओ…वाले गीत प्रदेश के हर जगह अपना स्थान बनाया। अपने ओजपूर्ण स्वरों में सांस्कृतिक मंचों में पारंपरिक गीतों को अपने सुमधुर सुरों में स्वर देने वाली प्रदेश की जानीमानी सिंगर किरण शर्मा ने कई लोकप्रिय जसगीतों की श्रृखला प्रस्तुत करते अलबम प्रस्तुत की है। पारंपरिक रूप से उनकी पुर्व की प्रस्तुती दुर्गा दुलौरिन दाई,मोर आदि भवानी आदि को भी दर्शक श्रोता चाव से सुनते हैं।
उस दशक से आज भी उतना ही पापुलर रही मध्य प्रदेश की गायिका शहनाज अख्तर ने भी कई एलबम प्रस्तुत किए जिनकी खासियस यह रही कि इन एलबमों के गीत तब भी उतना ही लोकप्रिय थे आज भी उतना ही चाव से सुने जाते हैं। जसगीतों ने तो प्रतियोगिता का रूप लिया। जगराता जैसे कार्यक्रमों में यहां की प्रतिभाशाली गायक,गायिकाओं ने छत्तीसगढ़ की विभीन्न मंचों पर अपनी प्रस्तुती दे रहे हैं।
हर नवरात्रि की तरह इस नवरात्रि पर्व पूर्व ही छत्तीसगढ़ कला जगत में कई सुर साधकों ने शुभ पर्व पर अपनी प्रस्तुती के एलबम प्रस्तुत किए हैं, इस भक्तिमय वातावरण में जिसे अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।