कविता काव्य

”पर क्या तुम नहीं बदली” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.

 
”पर क्या तुम नहीं बदली”
जैसे नदी की धार
राह बदल कर
मुड़ जाती है
तुम जिस दिन से
अलग राह में
मुड़ गई
समुंदर भी याद करती है
बरसात है, नदी से
पानी आयेंगी
पर उसी समुंदर जैसे
जिंदगी में ठहर कर
याद नहीं करती!
मैं भी एक पत्थर से
टकराई थी, जिन्होंने
मुझे राह दिखाया
आज उस पत्थर को लोग
नमन करते हैं यह पत्थर नहीं
देवता है…
पर तुम कहां हो…नीले आकाश
में भी नजर नहीं आती……
आकाश सी जिंदगी में
मैं पत्थर आज भी इंतजार
कर रहा हूं, पत्थर बदल गया
पर क्या तुम नहीं बदली…
 

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