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सुखी रहने के लिए दुःखी तो नहीं? मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.

आधुनिकता की दौड़ में हम तेजी से दौड़ रहे हैं और भौतिक सुखों से सम्पन्न हैं। और सीधे शब्दों में कहें तो हम भौतिक सुख साधनों वस्तुओं से सुखी हो गए हैं। यह भी कड़वा सच है कि हम सुखी होने का जितना दंभ भरत हैं पर उतनी ही तेजी से भावनाएं मृत हो रही है।

कभी-कभी महसूस होता है कि प्यार,अपनापन, रिश्ते नाते की भावनात्मकता बंधनें कमजोर तो नहीं पड रही। मनुष्य सिर्फ अपने स्वार्थ तक ही संबंध रखने लगा है। परिवार एकल होते जा रहे है। कुछ लोग तों पति पत्नी व बच्चे को ही परिवार मानने लगे हैं। बच्चे भी एक या दो जा कि पढ़ाई लिखाई के लिए बाहर रहते हैं। वे समझते है कि हम किसी से कम नहीं, तो फिर हम क्यों झुकें?

 

हम किसी का एहसान क्यों लें! हमें किसी से क्या मतलब? हमें किसी से क्या लेना देना! जब तक स्वार्थ न हो, मतलब रखना पसंद नहीं करते और कहते हैं हम सुखी हैं। मगर ऐसा नहीं।

 

ऐसा कर वे झुठी तसल्ली अपने को देते हैं। इस बात का एहसास तब होता है जब परिस्थिति विषम होती है। जब संकट आते हैं उस समय फिर अपनो को तलाशना शुरू करते हैं, जहां इस वक्त वास्तविकता का पता चलता है कि हम कितने धनी हैं। कितने लोग सच्चे दिल से हमारे हैं। कौन अपना और कौन पराया है। धन दौलत कमाना,सुखों की भौतिक साधनों को इकटठा करना कोई बड़ी बात नहीं।

 

हम भौतिक संसाधनों को इकटठा कर सुखी होने का दंभ भरते हैं कहते हैं क्या नहीं हमारे पास जैसी झूठी तसल्ली देते हैं लेकिन ये वस्तुएं हमारी खुशी में तीज त्यौहार में हमारी खुशियां बांट सकती है? क्या ये वस्तु हमारे दुःख के समय हमें सांत्वना दे कर आंसू पोंछ सकती है? नहीं तो हम सुखी कहां हुए? बल्की हम तो इन्हीं वस्तुओं को जुटाने में अपनों को भी खो दिए। भावनाओं को मार डाले यह सुख ही तो हमारे दुःख का कारण है।

 

हाल में खबर कि दुनिया से लड़ाई करने के लिए पाकिस्तान जैसे देश बारूद पर अपना पैसा खर्च करता है, वहां खाने का आटा डेढ़ सौ रूपये किलो बिक रहा है। मनुष्य की आम जरूरत की चीजें इतना मंहगा कि जीना मुहाल हो गया है।
और आज हम सब सुखी होने की पीड़ा झेल रहे हैं। आज बड़े बड़े विकसित देशों के लोगों को नींद नहीं आती, भूख नहीं लगती! भावनाएं मर गई है।

 

परिणाम आधुनिकता की दौड़ का है। हम जितनी भौतिक संसाधनों के करीब होंगे वास्तविक सख संतोष हमसे दूर होती जाएगी ओर हम हर पल दुःखी रहेंगे। हम जितना प्रकृति के करीब रहेंगे उतनी ही सुखों की अनुभूति होगी। चैन से सो सकेंगे, भूख का एहसास होगा, खाने में स्वाद होगा, जिंदगी का मूल्य होगा।

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