– 1971में पांडरवाही में जन्मे हेमराज जहां प्राथमिक शिक्षा के बाद 9 वीं तक की पढ़ाई उन्होंने की। मंगतु एवं मंगऊ जोे गांव में लोगों की जड़ी-बुटी से ईलाज किया करते थे। वे मां दंतश्वरी के पूजारी थे। इन्होंने अपने घर के बाजू दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया, जो आज जीर्णावस्था में है,लेकिन इनकी देखरेख का जिम्मा पुत्र हेमराज के हाथों में है जो वर्तमान में पुजारी हैं। इनके द्वारा दी जानकारियां सिर्फ इनकी व्यक्तिगत है, इसे हम प्रमाणित नहीं करते।
(मनोज जायसवाल)
लखनपुरी ,कांकेर (सशक्त हस्ताक्षर)। पागलपन,डिगनी,कैंसर,बच्चेदानी कैसर,मिर्गी,पीलिया,सिकलसेल,गठिया वात,जोड़ों का दर्द,सफेद दाग,चर्मरोग,खुजली,निमोनिया,बवासीर के साथ ही बांझपन जैसे कई असाध्य रोगों को ठीक करने का दावा करने वाले क्षेत्र के ग्राम पाण्डरवाही के वैध हेमराज कोर्राम इन दिनों चर्चा में है।
दूर-दूर से आ रहे मरीजों की खबरों की खबर लेने पाण्डरवाही कूच किया जहां उनकी छोटी सी कुटिया में ईलाज को आए लोगों के बाद इस प्रतिनिधि से मुखातिब हुआ। पाण्डरवाही कांकेर जिला मुख्यालय से रायपुर रोड राष्ट्रीय राजमार्ग 30 ग्राम नाथियानवागांव से मात्र 4 किमी पर लगा हुआ है।
वैध हेमराज ने बताया कि उनका जन्म 1971 में इस ग्राम में हुआ। जहां प्राथमिक शिक्षा के बाद 9 वीं तक की पढ़ाई उन्होंने की। इनके दो दादा हुआ करते थे मंगतु एवं मंगऊ। तब ये गांव में लोगों की जड़ी-बुटी से ईलाज किया करते थे। वे मां दंतेश्वरी के पूजारी थे। इन्होंने ही तब मां दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर आज जीर्णावस्था में है,लेकिन इनकी देखरेख का जिम्मा पुत्र हेमराज के हाथों में है जो वर्तमान में पुजारी हैं।
गांव के वार्षिक मेले और दशहरा पर्व पर गांव सहित क्षेत्र के लोग आस्था के शीश नवाने जरूर पधारते हैं। यहां जात्रा का आयोजन भी होता है।
हेमराज के दो पुत्र हैं,जो उनके इस कार्य में सहयोग करते हैं। इसके साथ ही इनकी पत्नी भी औषधी निर्माण में सहयोग करती है। हेमराज की शादी निकटस्थ टूराखार से हुई। वैध हेमराज ने बताया कि जड़ी-बूटी से ईलाज का गुर अपने दादा के ईलाज को देखते सीखा जो जंगल से जड़ी बुटी लाकर दवाई बनाते थे,सहभागी बनते ये स्वयं जंगल से वे बुटियां संग्रहित कर लाते। इन्होंने बताया कि अभी तक 10 पागलपन के लोगों को ठीक किया है। हाल में एक पालगन के दौरे वाले को मात्र तीन दिन में ठीक कर दिया।
उन्हें ये सुंघने की दवाई देते हैं। इसके साथ मिर्गी के वे मरीज जो 15 वर्ष की उम्र तक वाले हैं उनका शर्तिया ईलाज करते हैं,जहां उन्हें तीन दवाई देते हैं,जिससे अमूमन मरीज ठीक हो जाते हैं। इसी तरह 15 वर्ष के ऊपर वाले मिर्गी के मरीज हों तो उनके लिए दूसरा दवाई बनाया जाता है। इसके साथ ही आजकल कई लोगों में बढ़ रहे सायटिका के मरीजों को सरसों के तेल में जंगल से लाये गये जड़ी-बुटी से तैयार
औषधीय तैल देते हैं,जिससे ईलाज होता है। बीपी के मरीजों का भी ईलाज करते हैं। यह सभी ईलाज निःशुल्क किया जाता है।
सम्पर्क नं. 7489026756