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समाजसेवक नहीं समाज प्रतिनिधि कहिये श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

समाजसेवक कहने की अपेक्षा तो इन्हें आप समाज के प्रतिनिधि ही कह लेते तो ही ठीक है। वैसे प्रतिनिधि कह लेने भर से भी इनका सम्मान तो उतना ही मिलना है। ऐसा इसलिए कि जिस प्रकार से नेता आपको घोषणा कर,वादा कर पांच सालों में यदा कदा दिखायी देते हैं,और मिल भी गये तो वादा भूल जाते हैं यही हाल तथाकथित रूप से कुछ समाजसेवक कहलाने वालों का है।जिस प्रकार पहूंचे हुए को गुरू बनाने पर अदद रूप से सीधे आपको उनके चरण स्पर्श के लिए जदोजहद करना पड़ता है,लेकिन निचले स्तर पर जो इतने हाईलाईट नहीं होते उन्हें गुरू बनाने से आपके घर के पूजा पाठ से लेकर हर धार्मिक कार्य सही समय पर और तो और कम खर्च पर सम्पन्न कराते हैं।

हमारे लोक जीवन में बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक विभीन्न संस्कार हमें निभाना पड़ता है,जिसके लिए हमारा पुरोहित ही चाहे उसे गुरू माने ना मानें पर असल कार्य वहीं पूरा कराता है। पूरे पांच साल तक समाज उत्थान के नाम पर क्या नहीं कहा जाता। बड़े-बड़े स्वप्न वो पूरा करते इसके पहले यह बतला देते कि समाज के कितनो लड़के,लड़कियों के वैवाहिक सबंध स्थापित कराने में उसकी महती भूमिका रही।

उनके इर्दगिर्द नजदीकी रहे लोगों की तो बात ही छोड़ दें। समाज के अंतिम सिरे पर खड़े गरीब जिनके सिर पर जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों में फिजुलखर्ची रोकने नियम,पाबंदिया,बंदिशें थोपी जाती है। विवाह को लेकर बड़े और छोटे अपनी ही उच्च जाति और प्रदेश में किये जाने की नियमों का पालन कराया जाता है,किसी तरह यदि उनकी संतान इनके नियमानुकूल विवाह कर ले तो समाज से बाहर किया जाता है,जो भी व्यावहारिक रूप से मौखिक पालन कराया जाता है,लिखित में इनके आदेश नहीं होते।

वही अपने संतानों का कैसे दूरस्थ प्रदेशों से लेकर उन समस्त सामाजिक नियमों को जिसको खुद अपने समाज में पालन होते देखना पसंद करता है,खुद कैसे धज्जियां उड़ाते तमाम फिजुलखर्ची करता है,यह बताने की बात नहीं अपितु हम सबके बीच की बातें है। समाज से बाहर नहीं जाने की सोच और कोई जन द्वारा मुंह पर नहीं बोले जाने के चलते कभी कभी बेशर्मी हंसी चल रही होती है,जिसे भी अंतिम सिरे का व्यक्ति देखकर तरस खा रहा होता है। अगर इनकी समाज सेवा की भावना इतना ही प्रगाढ़ है तो कोई पूछे कि आपके द्वारा आयोजित बड़े आयोजन में समाज के कितने अभिभावक लाभान्वित हुए जो विगत कई वर्षों से अपने लड़की के लिए योग्य वर की की उम्मीदों विश्वास में चलते रहे और अंततः अधिकाधिक उम्र में विवाह संबंध बने तो कई कुंवारियां ही बैठी हुई है। इन्हें क्या नहीं पता! सब पता होता है।

सारे काज आपको करना है,इनके विश्वास में चले तो आप कुछ नहीं कर सकते। सारे काज आपके द्वारा किये जाने के बाद नियम पाबंदियों पर सख्त होने जरूर आ जाएंगे। खुद देखें बात-बात पर समाज-समाज की रट लगाए ऐसे समाज सेवकों ने आपके कार्य पर कितना सर्पोट किया। आपका जवाब नहंी किया तो आपके लिए इनके प्रति शब्द समाज प्रतिनिधि ही होना चाहिए। सेवक तो तब होंगे जब ये आपके किसी कार्य में निःस्वार्थ सेवा किये होते।

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