
पति की मौत के बाद तो वैसे भी यह बड़ा जीवन किसी औरत के लिए बे रसीली हो जाती है। लंबा जीवन है,जिसे पूरी सादगी के साथ अपने बच्चों की खातिर मर मर कर जीना है।
धरातलीय सच यह भी कि पति के जाने के बाद पुरूष की कमी का अहसास भी कि वे जैसे भी थे रहते तो। पति है, कह लेते इतना भी काफी। अब किसी के पास क्या जवाब दें। पति के न रहने पर पुरूष नहीं अपितु किसी से मिलने पर महिलाएं ही पहले पहल अंदाजा लगा लेती है और कहीं उनके बात आगे बढ़ाने का पहला पायदान भी इसी से शुरू होता है कि वे खाली हाथ हैं। सोलह श्रृंगारों में एक चुड़ी भी उन्हें सबूत दे देती है कि वे नहीं है।
पति जैसा भी हो, यदि कभी अकस्मात न हों तो कईयों कईयों दिनों तक अंतस में दर्द लिए फिरती है। अंतहीन वो दर्द है,जिसे नहीं भूला सकती। हो, क्यों ना! पवित्र अग्नि को साक्षी मान सात फेरे जो लिये थे। इन भावनाओं में आधुनिकता का कोई वजूद नहीं है। आधुनिकता का मतलब यह नहीं कि वे इन दर्द को भूल जाएं। लेकिन इसे आधुनिकता कहें या उस स्त्री के प्यार में कमी ही कि पति को गुजरे तल्ख दिन हुए हों और बड़ी गर्व से बात करते दिखती है कि उनके पति का एक्सपायर हो गया था।
पूरी बेशर्मी से यह भी बताती नजर आती है कि उनके यादों से अपने इस जीवन में क्यों कड़ुवाहट डालें। पति के रहते जिस कदर का लिबास और खुशियों के झूले में झूलते इंज्वाय करती दिखती है,इसे भी लोग देखते हैं और उनके पूर्व में संकूचित स्नेह का अंदाजा लगा लेते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि इन्हें पति की मौत से कोई दुःख नहीं हुआ। बस दाह संस्कार,क्रियाकर्म के बाद सामाजिक रीति के चलते पूजापाठ वगैरह वगैरह…!
फिर भी ऐसी बात नहीं कि हर महिला की ऐसी बात हो। अंदाजे नजर कीजिए गावों में कैसे सादगीपूर्ण जीवन शैली,लिबास में अपने पति के अधुरे स्वप्नों और बच्चों की भविष्य और स्वयं परिवार की आजीविका के लिए संघर्षरत चल रही होती है। इन्हें समाज के तानेबाने का कोई फर्क भी नहीं पड़ता। जरूर घर गृहस्थी से लेकर तमाम कार्य में आने जाने में परेशानियां होती है,जिसे वे जैसे तैसे निर्वहन करती है।
लेकिन नीति नीयत को पहचानने में माहिर इनके सामने किसी गलत मानसिकता के पुरूष को पहचानने में देर नहीं करती। उस पुरूष की तो इन्हें छाया भी नहीं पड़ने देती क्योंकि सादगीपूर्ण जीवनचर्या व्यवहार शक्ति के सामने किसी का दम नहीं होता। मौत तो मौत है,यादों की मौत नहीं होती। लेकिन हद है,उन आधुनिकाओं की जिन्हें रंगों के बाजार में अतीत भुला दिए हैं। इन्हें भी खुद के कठिन क्षणों में याद आएगा जब ये भी याद तो करेंगी पर बता नहीं पाएंगी।