
कितने भक्तिभाव से कथा श्रवण करने के बावजूद कैसे हम हिन्दू महज 8 से 10 लोग भी संयुक्त परिवार के नाम नहीं रह पा रहे हैं। कैसे एक छोटे परिवार के बावजूद शादी होते ही बेटे को बंटवारा दे दिया जाता है,जिसने गृहस्थी को देखा नहीं हो, और इनके ही सगे भाई सहयोग करने की बजाय तमाशा देख रहे होते हैं। कैसे खुद के खुन के रिश्तों के खुद के सगे भाई की उन्नति देखकर उसके ही भाई की छाती फट जाती है। कैसे देश में कितने ही वृद्वाश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है,जहां अपनी ही पत्नी के कहने पर मां बाप को उनके ही बनाए घर से बाहर वृद्वाश्रम में ढकेल दिया जाता है। हमारे ही हिंदु में देखा जा रहा जहां मुस्लिम वृद्वाश्रम तो नजर ही नहीं आते।
कैसे किसी परिवार में बेटी की शादी के बाद कभी दामाद से रिश्ते में खटास के बाद इसे साम्य बिठाने न परिवार और न समाज सामने आता है,जहां मां की आत्मा तड़प रही होती है इस विच्छेद पर जहां उनका बेटा भी नजर के सामने पराया हो जाता है। यहां साम्य बिठाने की अपेक्षा कैसे खुद के लोग कभी इसका तो कभी उसको उंगली कर अंदर से झगड़े की जड़ को और मजबूत कर रहे होते हैं।
कैसे खुद के घर में लड़ाई द्वेश विद्वेश व्याप्त हो और दूसरों की बेटी के आचार विचार की कुडली अपने तीसरे व्यक्ति से पता लगवा रहे होते हो कि पता लगाना वो कैसी है? क्या कोई नियम नहीं है हमारे समाज में या धर्म में जहां इतने गंभीर समय पर भी उन्हें एक में रहने नियम ही सही बंधनकारी हो। कैसे तमाम खुद की तकलीफों को नजरअंदाज करते कई-कई पंत में आत्मिक शांति के लिए जाते हुए पंतवादी विचारों में खोए खुद की पीठ खुद थपथपा रहे हैं कि वे धार्मिक हो गए हैं।
कैसे इसको,उसको मानते हैं कहकर सोसायटी में अपना गर्व करने वाले इतनी बेशर्मीयत से बयां कर रहे हैं कि दूसरों को नहीं पता कि तुम अपने परिवार समाज में कितनी दुष्टता से अपनों से ही सलूक कर रहे हो। कौन गुरू होगा जो तुम्हें अनेकता की शिक्षा देता होगा? दूर-दूर संगठन के नाम पंतवादी होने का घमंड करते दूसरों को नीचा दिखाते खुद जीवन जीने की कला से भी काफी दूर हो चुके होते हो। कभी सोचा कि खुद के अच्छा होने के लिए कहीं अपना रजिस्ट्रेशन कराए जाने की जरूरत ही नहीं है? तमाम पहलूओं को देखकर तो यह लगता है कि हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने से पूर्व प्राथमिक सीढ़ी परिवार समाज के बाद राष्ट्र पर ही ध्यान देना होगा तभी हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना सिद्व होगी। हर बातों का विरोध करना जैसे संस्कृति हो ऐसे सलूक किया जाता है। यदि यह बात सही है तो इस पर गौर कीजिए। पहले हम एक हो जाएं। हमारी ताकत अपने ही परिवार से हो।