‘नरहरदेव’ शिक्षा जगत को समर्पित कांकेर छ.ग. की प्रमुख संस्था
‘छत्तीसगढ़’ राज्य में बस्तर का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले अतीत में कंड्रा राजा की नगरी कांकेर में स्थित ऐतिहासिक नरहरदेव स्कूल भवन राष्ट्रीय स्तर पर किसी पहचान का मोहताज नहीं है। बस्तर आने वाले सैलानी जरूर इस भवन का दीदार कर ही अन्य जगहों पर पर्यटन का विचार साम्य बनाते हैं।1930 मे शिक्षा जगत को समर्पित अतीत में राजाओं की नगरी नरहरदेव स्कूल प्राचीन वास्तुकला का जहां बेजोड़ नमुना है, वहीं भवन के निर्माण में ऐसी इंजीनियरिंग दिखायी देता है जहां आधुनिक युग के निर्माण भी सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इसकी छत जिसमें साल वृक्ष की लगी मयार जो आज तक जस की तस उम्दा निर्माण की कहानी स्वयं बयां करती है, तो सुरक्षा के इंतजामात को ध्यान में रख कर की गयी जल की निकासी के प्रबंध अपनी बानगी बयां करता है।
शिक्षा जगत का यह संस्थान न जाने यहां से निकले कितने धरा पुत्रों पुत्रियों ने आज देश के विभीन्न क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। जीवन के हर क्षेत्र में नाम किया है। नरहरदेव राजा जिन्होंने इसे समर्पित किया आज और आने वाली कईयों पीढ़ियों तक इसी तरह नाम चलता रहेगा। कांकेर जिला मुख्यालय प्रवेश करते ही आपको यह स्कूल भवन जिसे 52 दरवाजा के नाम से भी जाना जाता है,दिखायी देगा।
पूर्व में स्कूल के लैब के सामने प्रतिदिन प्रार्थना हुआ करती थी जो कि स्कूल में बच्चों की बढ़ती तादात के बाद सामने किया गया। राष्ट्रीय पर्व पर यहां मुख्य आयोजन होता है। अतीत से अब तक न जाने सियासी जगत,कला जगत के सितारों ने यहां शिरकत किया। बालीवुड,छालीवुड के कई सितारे जब इस मार्ग से गुजरते हैं, इस भव्य भवन का दर्शन जरूर करना चाहते हैं। पुर्व में नरहरदेव स्कूूल आवाजाही के लिए कच्चा मार्ग हुआ करता था,मुझे याद है 1980 के तकरीबन इस मार्ग का कायाकल्प किया गया।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह के कार्यकाल में आदिम जाति कल्याण मंत्री श्रीभगत,कांकेर विधायक अघन सिंह ठाकुर की अनुशंसा पर तकरीबन 44 लाख रूपये रंगरोगन,मरम्मत अन्य कायाकल्प के लिए दी गई थी,जहां कार्य कराया गया था।
नरहरदेव पहूंच मार्ग में इस सड़क के किनारे पहाड़ी हुआ करता था, पत्थरों के टीले हुआ करते थे,जहां से जमीन दुरूस्त किया गया, जहां आज आप भारत संचार निगम बीएसएनएल कार्यालय देख रहे हैं, वहां इससे पूर्व पहाड़ीनुमा जगह था। पुर्व केंद्रीय कृषि मंत्री अरविंद नेताम की मुख्य आतिथ्य में भवन का उद्घाटन हुआ था। वर्तमान में यह जगह अब और भी साफ अच्छा नजर आने लगा है। इसके शिक्षा जगत में देखें तो बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के नामी साहित्यकार पदुमलाल पुन्ना लाल बक्शी इसी नरहरदेव स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवा दे चुके हैं।
इसके साथ कई ऐसे साहित्यकार इसी स्कूल से निकल कर नाम किए। नरहरदेव स्कूल अतीत में आदर्श स्कूल के नाम से ही जाना जाता रहा, लेकिन व्यवस्था जरूर कुछ समय पूर्व सृदृढ़ न हो पाई हो शिक्षा का स्तर कुछ कम हुआ, लेकिन अब पुनः शासन का ध्यान इस ओर है और बताया जा रहा है कि इस स्कूल में अब अंग्रेजी माध्यम की कक्षाएं लगायी जा रही है।
न जाने कितने इस स्कूल के प्राचार्य रहे और इस स्कूल में शिक्षा का स्तर के साथ स्कूल का नियम कायदा बनाये रखा। आज हम नमन करते हैं उन शिक्षकों,शिक्षिकाओं को जिन्होंने इसी स्कूल में अध्यापन कराया लेकिन वे इस दुनियां में नहीं रहे। ऐतिहासिक धरोहर को समेटे कांकेर नगर में इस ऐतिहासिक भवन के साथ पुरातात्विक धरोहरों को निहारने जरूर कांकेर पधारें।
छत्तीसगढ़ के राजधानी मुख्यालय रायपुर से महज 130किलोमीटर पर है यह सुरम्य कांकेर नगर। इसके साथ साथ आसपास की प्राकृतिक जगहों का भी सैर करें। गांडागौरी पहाड़ी में स्थित माता की साक्षात अद्भुत पहचान कराती धरोहर,महाभारतकालीन युग को प्रतिबिंबित करती उड़कुड़ा पहाड़ी में स्थित ऋषि की तपोस्थली,रामवाटिका नाथियानवागांव, जलप्रपात तो आगे केशकाल घाटी होकर आप बस्तर को नजदीक से निहार एवं समझ पाएंगे।