आलेख

‘पराये की याद दिलाती,बैग’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ

विवाह पूर्व बिना थैला लिए हीरो बन कर घुमने वाला ‘पुरूष’ विवाह के दूसरे दिन से थैला रखना सीख जाता है। गृहस्थी संचालन के लिए हमेशा दुनिया से संचालन की वस्तुएं लाने की जद्दोजहद करता हुआ आदत में शुमार हो जाता है, थैला। तो वहीं विवाह बाद घर परिवार की लाडली परी विवाह के बाद दुनियां की सारी जिम्मेदारियों के साथ बैग रखती है। जब-जब वह मायके जाती है,वह बैग उसे उस घर से ‘पराएपन’ का एहसास दिलाता है।

वाहन जैसे ही पिता की देहरी पर पहुंचता है, छोटे भाई बहन जीजी के आने की खुशी में बैग के सामान उतारने लग जाते हैं। जी हां वही बैग जिसमें मा,बाप और अपने भाई बहन को मुंह मीठा भी कराना है,गांव की अन्य घनिष्ठ लोगों को भी पास ‘पड़ोस’ वालों को देना है। उसी बैग में महज कुछ दिन रूकने के लिए अपनी साड़ी और कुछ सामानें। बैग लिए जब गांव में आती है तो उन्हें आसपास की औरतें सगा आने की बातें करती है,टंच दिया जाता है,ससुराल से क्या लायी हो! कभी-कभी तो बैग उन्हें टीस भी देता है कि अब तुम इस घर की नहीं हो।

बैग संदेश देना चाहता हो कि उसके अतिरिक्त यहां अब ज्यादा कुछ नहीं है,क्योंकि महज कुछ दिन के लिए आयी हो और उन्हें उठा कर चल दोगी। कभी-कभी यही बैग बेटी को उस गहरे अतीत में लेकर जाता है, जिसकी याद आंखों में आंसु ला देती है।

कहां वो बचपन से विवाह पूर्व तक का दौर जहां वो ‘राजकुमारी’ बन घर की अर्थ व्यवस्था का संचालन करती और कहां आज ये खुद के बैग जो हर वक्त याद दिलाती है कि तुम्हें यहां रूकना नहीं है। देखें कि यु ही बेटी कुछ ही दिन मायके में रूके तो यह भी चर्चा होने लगती है कि अमुक दिन आयी है और शायद कल अपने घर जा रही है। कुल मिलाकर वजनमायके’ वाली घर में नहीं है,वजन तो दूसरों को है,शायद! लेकिन गौर करने की बात कि खुद वो किसी की बेटी है। खुद भी ऐसा ही बैग लेकर मायके जाएंगी। सच! बैग पराये की याद दिलाती है।

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