”बहुत कठिन डगर पनघट की”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ़
बस्तर में तो बारिश होना ही है। चिंता छोड़ो… गंगरेल भर लेने दो। यह बात लोगों की जुबां में होता है,लेकिन कई दफा यह सच साबित नहीं होता। हालांकि इस बार 97 प्रतिशत तक भरे गंगरेल जलाशय से कहावत सच साबित हो रहा है।
महानदी का प्रथम सोंढूर बांध लबालब है। इसके साथ नदी पर दूसरे बांध जो कांकेर जिले में स्थित है,दूधावा जलाशय। तीसरे नंबर पर आता है,पं. रविशंकर शुक्ल महानदी जलाशय परियोजना जो गंगरेल के नाम विख्यात है।
महानदी पर चौथा सबसे बड़ा जलाशय परियोजना है, जो उड़ीसा स्थित है। संबलपुर से 15 किमी स्थित यह हीराकुंड बांध को सबसे बड़ा बांध का गौरव प्राप्त है, जिसकी लंबाई 25.8 किमी है। यह देश में प्रारंभिक परियोजनों में से एक है। इसकी ऊंचाई तकरीबन 200 फीट है।
महानदी पर बनायी गयी बांध परियोजनाओं में गंगरेल छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा है, यहां से भिलाई स्टील प्लांट को जल देना तो आरक्षित है ही इसके साथ यहां की कृषि के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित अन्य नगरों की प्यास बुझा रही है।
वहीं दूधावा जलाशय की बात की जाये तो कांकेर जिले के सबसे बड़े बांध की श्रेणी में है। लेकिन दुखद बात यह है कि जितना केनाल गंगरेल का लगातार हुआ इसके एवज में दूधावा केनाल का विस्तार नाममात्र हुआ है। दूधावा के निचले रकबा जो चारामा विकासखंड के तांसी जैसे गावों तक किये जाने किसानों की मांग लगातार की जा रही है,जिसके बाद अंततः जल गंगरेल कैचमेंट एरिया में ही समाहित होना है। लेकिन अभी तक इन मांगों को दरकिनार किया जाता रहा है। उच्च राजनीतिक महात्वाकांक्षा का अभाव कहें या जो भी पर दूधावा केनाल का जिले के ही गावों में विस्तार न होना किसी दंश से कम नहीं है।
भानुप्रतापपुर के विधायक एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी द्वारा दूधावा के जल को तांसी तक लाने के लिए इनके प्रयासों से बजट में भी लाया जा चुका है,जहां केनाल सर्वे के लिए 80 लाख रूपये बजट सत्र में पास किया जा चुका है। लेकिन इसका परिणाम अभी तक किसी को नहीं पता। बावजूद इसके स्वयं अपना दर्द समझते हुए स्थानीय विधायक प्रदेश के मुखिया को बड़े भईया के रूप में हमेशा मांग करते आ रहे हैं,लेकिन लेकिन लोगों को लगता है कि बहुत कठिन है,डगर पनघट की।
क्योंकि दूधावा बांध के विस्तार हेतु किसानों की मांग की यह कहानी अब की नहीं अपितु तब की है, जब तात्कालीन कृषि मंत्री अरविंद नेताम के जमाने में दूधावा बांध से केनाल के माध्यम क्षेत्र में पानी लाने की मांग उठी थी। और संभवतया तब भी सर्वे हुआ था, लेकिन मामला सिफर रहा।
इस तरह कई पीढ़ी गुजर भी गई लेकिन दूधावा केनाल विस्तार की कहानी इसी तरह ठंडी पड़ी हुई है। कांकेर जिले में रेल लाये जाने की मांग की तरह जब-जब चुनाव आते हैं सियासी गलियारों में इस विषयों पर बड़ी-बड़ी बातें की जाती है,लेकिन अंततः आम जनता को झूनझूना ही मिलता रहा है।