लघुकथा

”परिवर्तन” श्री विजय वर्धन वरिष्ठ साहित्यकार लहेरी टोला भागलपुर बिहार

साहित्यकार परिचय – विजय वर्धन

माता-पिता –स्वर्गीया सरोजिनी देवी, स्वर्गीय हरिनंदन प्रसाद

पत्नी – श्रीमती स्तुति रानी

जन्म – 10 .10. 1954

शिक्षा –बी .एस .सी .ऑनर्स, एम. एस. सी, बी. एड.

प्रकाशन – दो पुस्तकें प्रकाशित
1. मेरा भारत कहां खो गया
2. हमारा प्यारा भागलपुर

सम्मान- विभिन्न संस्थाओं से सम्मानित

संप्रति -भारतीय स्टेट बैंक से अवकाश प्राप्त

सम्पर्क – लहेरीटोला,भागलपुर,बिहार मोबाइल -9204564272

 

”परिवर्तन”

 

ललित और गजेंद्र सहपाठी थे। ललित पढ़ने में बड़ा मेधावी था पर गजेंद्र का मन पढ़ने में ज्यदा नहीं लगता था। वह किसी प्रकार से वर्गोंन्नति पा जाता था। चंचल प्रक्रिती का होने के कारण उसे प्रत्येक शिक्षक से झिडकियां सुननी पड़ती थी, किन्तु उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया।

 

इतना ही नहीं वह ललित को सदा तंग भी किया करता था। शान्त स्वभाव का होने के कारण ललित उसकी हरकतों को झेल लेता पर कभी भी उसकी शिकायत नहीं करता। शनिवार का दिन था। स्कूल में जल्दी छुट्टी हो गई। गजेन्द्र ने अपने साथियों के साथ स्कूल से थोड़ी दूर पर स्थित एक तालाब में धमा चौकड़ी मचाने की योजना बनाई। कई साथियों के साथ गजेंद्र तालाब की ओर जाने लगा। उसने ललित को भी चलने को कहा। ललित ने कहा परीक्षा सिर पर है। अतः मैं नहीं जाऊंगा। गजेंद्र ने कहा तुम तो तेज विद्यार्थी हो, तुम्हें क्या चिन्ता।

 

एक घंटा मौज मस्ती करोगे तो तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। बहुत आग्रह करने पर ललित तैय्यार हो गया। तालाब के किनारे पहुंचने पर सभी साथियों ने अपने अपने शर्ट उतारे और पानी में कूद गये पर ललित किनारे पर ही बैठ कर कुछ पढ़ता रहा। अचानक गजेंद्र जोर से चिल्लाया  बचाओ ,बचाओ। मैं डूब रहा हूँ। ललित ने आव देखा न ताव, झट से तालाव में कूद गया क्यों कि उसे बहुत अच्छी तरह तैरना आता था।

 

उसने गजेंद्र को अपने दोनों हाथों से उठाया और जमींन पर लिटा दिया। कुछ देर बेहोश रहने के बाद जब गजेंद्र को होश आया तब साथियों ने कहाआज अगर ललित नहीं होता तो तुम्हारा बचना मुस्किल था। गजेंद्र का सिर शर्म से झुक गया। उस दिन से उसकी शैतानी भी बंद हो गई और वह ललित का सबसे विश्वसनीय मित्र बन गया। अब दोनों एक साथ स्कूल जाते और क्लास में अगल बगल बैठते।

 

गजेंद्र ललित का सबसे बड़ा सहयोगी बन गया। ललित भी उसे पढ़ाई में मदद करने लगा। आगे चलकर ललित डॉक्टर बना। गजेंद्र तो बड़ा आदमी नहीं बन सका। उसे एक सरकारी ऑफिस में नौकरी मिल गई जिससे उसकी जिंदगी अच्छी तरह से कटने लगी। आज भी दोनों मित्र वफादार दोस्त हैं और एक दूसरे के घर आते जाते हैं।

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