कविता

”हरियाला सावन” श्री राजेश शुक्ला”काँकेरी” शिक्षक साहित्यकार,कांकेर

साहित्यकार परिचय- श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”

जन्म- 10 दिसंबर 1964

माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला

शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.

प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)

सम्मान-

सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234

 

”हरियाला सावन”

शुष्क धरा की प्यास बुझाने,
बनकर आया प्याला सावन।
बिखराता हरियाली देखो,

 

हरा-भरा हरियाला सावन।
कालिमा से बदलियों की,
परत बन गई है नभ में।

 

इसी कालिमा से किसान को,
देता है उजियाला सावन।
पंक-पंक हो गए रास्ते,

 

खेत हो गए हरे-भरे।
इन सबसे मतलब न रखता,
मस्ती में मतवाला सावन।

 

अन्न भी देता,जल भी देता,
देता जीवन धरती को।
पोषण करता है हम सबका,

 

धरती का रखवाला सावन।
हम कुुछ भी न करते हैं,
इस प्यारे सावन के लिए।

 

फिर भी देता जीवन सबको,
कितना भोला-भाला सावन।
पेड़ लगाएँ रोपें वन,

 

हम इस सावन की खातिर।
पर्यावरण के असंतुलन से,
बन जाता है ज्वाला सावन।

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!