कविता

”बासी ” श्रीमती रानी शर्मा साहित्यकार समाजसेवी कांकेर छ.ग.

‘बासी ”
हमर छत्तीसगढ़िया बासी,बड़ गुनकारी।
बिदेसी मन जेकर गुन ला गावत हे।
अमरीका के वैज्ञानिक बासी के ,
पौष्टिकता के गुन ला खोजत हे।
कोनो कहत हे,
बासी मे अब्बड़ कार्बोहाइड्रेट हे।
कोनो कहत हे,
खनिज के हे भंडार।
बासी हमर बर हे अमृत समान।
ऐला बनाय बर तेल लगे न आगी।
रात कुन के बात बचके ,
ओमे डार दे पानी,बनगे बासी।
रोज बिहिनिया ले उठथन ।
बासी म नून गोंदली डार के खाथन।
पसिया ल पी के काम म जाथन।
बासी खाय ले लू धरे न घाम।
बी,पी,मे घलो आथे बड़ काम।
हमर छत्तीसगढ़िया बासी,बड़ गुनकारी।

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