”जय सद् गुरू”
तन थका, मन हारा था।
चहुँ ओर घोर निराशा था।
तब,जय सद् गुरू ने संभाला था
जीवन में खुशियों का फूल खिलाया था।
सद् गुरू सूर्य समान।
ज्ञान का उजास भरे।
सूर्य जग सारा रौशन करे।
सद् गुरू अज्ञानता का तिमिर दूर करे।
सद् गुरू शीतल समीर।
दूर करे सारे पीर।
सद् गुरू शशि की शीतल चाँदनी।
जगत कल्याण की छेड़े रागनी।
सद् गुरू ज्ञान की ज्योति।
शिष्यों को बांटे भक्ति की मोती।
सद् गुरू योग गुरू योगीश्वर।
जप,तप,ध्यान,साधना का दे मंत्र।
जीवन के भव तापों से करें मुक्त।
सद् गुरू वैदिक ज्ञान का सागर।
सामाजिक कुरीतियाँ करे दूर।
मानव जीवन के सत्य बोध कराते।
दीन दुःखी की सेवा का पाठ सिखाते।
नर में ही नारायण बसते।
सत्य,सनातन धर्म रक्षक।
ज्ञान,विज्ञान,गीता के उपदेशक।
सद् गुरू होते हैं देवतुल्य महान।
सद् गुरू के चरणों में बारंबार नमन।